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ऐसे नहीं बेच सकते पैतृक जमीन : सर्वाेच्च अदालत का बड़ा फैसला

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तापमान लाइव ब्यूरो

13 नवम्बर 2024

New Delhi : यह हर जागरूक नागरिक को मालूम है कि देश में इस तरह का कानून पहले से लागू है. यह अलग बात है कि उस पर अमल प्रायः नहीं होता है. इधर, सर्वाेच्च अदालत (supreme court) ने संबंधित कानून को नये सिरे से व्याख्यायित किया है. अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में उसने स्पष्ट किया है कि यदि कोई हिन्दू (Hindu) उत्तराधिकारी अपनी पैतृक कृषि भूमि (ancestral agricultural land) का हिस्सा बेचना चाहता है,तो इसमें उसे परिवार के सदस्य को प्राथमिकता देनी होगी.

इसके तहत सुनाया फैसला

सर्वाेच्च अदालत ने हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 22 के तहत यह फैसला सुनाया है. फैसला पारिवारिक संपत्ति (Parivarik Sampatti) की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया है. इसमें पारिवारिक संपत्ति के बाहरी व्यक्तियों के हाथ में जाने से रोकना सुनिश्चित किया गया है. सर्वाेच्च अदालत का फैसला हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के नाथू और संतोष से संबंधित मामले में आया है.मामला कुछ यूं है.

इस मामले में आया फैसला

लाजपत की मृत्यु के बाद उसकी कृषि भूमि उसके दो पुत्रों नाथू और संतोष के बीच बंट गयी. संतोष ने अपने हिस्से की जमीन एक बाहरी व्यक्ति को बेचने का निर्णय किया. नाथू अदालत की शरण में चला गया. धारा 22 के तहत प्राथमिकता का दावा किया. निचली अदालत और उच्च न्यायालय दोनों ने नाथू के पक्ष में निर्णय दिया. सर्वाेच्च अदालत ने भी इस निर्णय को बरकरार रखा.


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परिवार में बनाये रखना

न्यायाधीश यूयू ललित और एमआर शाह की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 22 का उद्देश्य परिवार में ही संपत्ति को बनाये रखना है. इसके अनुसार, पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी (Paitrk Sampatti Ke Uttaradhikari) के लिए यह बाध्यता है कि वह किसी बाहरी व्यक्ति को संपत्ति बेचने से पहले अपने परिवार के किसी सदस्य को ही बेचने की पहल करे.

क्या है उत्तराधिकार कानून

हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 22 कहती है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत किये होती है, तो उसकी संपत्ति स्वाभाविक रूप से उसके उत्तराधिकारियों में बंट जाती है. उत्तराधिकारियों में कोई अपना हिस्सा बेचना चाहता है, तो कानून के अनुसार उसे अपने परिवार के बाकी उत्तराधिकारियों को प्राथमिकता देनी होगी.

काश्तकारी अधिकार का मामला

सर्वाेच्च अदालत ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि धारा 4(2) के खात्मे से यह नियम प्रभावित नहीं होगा. धारा 4(2) का संबंध काश्तकारी अधिकारों से है, जो पारिवारिक भूमि की बिक्री या स्वामित्व से भिन्न है.

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