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सुरसंड : शायद ही उठा पायेगा जदयू इतना बड़ा जोखिम

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मदनमोहन ठाकुर

01 दिसंबर 2024

Sitamarhi : सीतामढ़ी जिले के सुरसंड (Sursand) विधानसभा क्षेत्र की सियासत करवट ले रही है. इससे पुराने चुनावी अखाड़ियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही हैं. उम्मीदवारी के दोहराव को लेकर पांव तले की जमीन खिसकती महसूस हो रही है. सियासत के करवट लेने के कारण कई हैं, पर मुख्य रूप से स्थानीयता का मुद्दा दो पुराने अखाड़ियों के लिए परेशानी का सबब बनता दिख रहा है. स्थानीयता से मतलब विधानसभा क्षेत्र से बाहर के होने से है. दस वर्षों से ‘बाहरी विधायक’ झेल रहे सुरसंड का अनुभव बहुत कसैला है. खासकर 2015 से 2020 के बीच का अनुभव. तब अबु दोजाना राजद के विधायक थे.

नयी दावेदारी ने उड़ा रखी है नींद
यह कसैलापन दोनों पुराने अखाड़ियों की राह रोक दे, तो अचरज की वह कोई बात नहीं होगी, ऐसा राजनीति के विश्लेषकों का मानना है. दोनों के दलों में उम्मीदवारी की नयी मजबूत दावेदारी ने भी उनकी चिंता बढ़ा रखी है. विकल्प के तौर पर उभर रही जन सुराज पार्टी (Jan Suraj Party) से कुछ उम्मीद बंधती भी है तो वहां पहले से मारामारी की स्थिति है. उम्मीदवारी की आस लिये पूर्व मंत्री सीताराम यादव (Sitaram Yadav) इस पार्टी में शामिल हुए हैं. परन्तु, उपचुनावों में जन सुराज पार्टी के बुरा हाल से उनकी दावेदारी में ठिठुरन-सी भर गयी है. सुरसंड क्षेत्र अभी जदयू के कब्जे में है.

जदयू में बदलाव के आसार
राजनीति महसूस कर रही है कि जदयू (JDU) में बदलाव के आसार डा. इकरा अली (Dr. Ekra Ali) के पार्टी से जुड़ाव से पैदा हुए हैं. डा. इकरा अली दिवंगत पूर्व मंत्री शाहिद अली खान (Sahid Ali Khan) की पुत्री हैं. कारण जो रहा हो, शाहिद अली खान के निधन के बाद डा. इकरा अली और उनकी मां शमा अली (Shma Ali) के जदयू से जुड़ने के चार वर्षीय प्रयास को पार्टी नेतृत्व महत्व नहीं दे रहा था. इन वर्षों के दौरान डा. इकरा अली और शमा अली खान की जदयू के बड़े नेताओं से मुलाकात-बात भी हुई, परन्तु बात नहीं बन पायी. लेकिन, वक्त बदला तो उसी जदयू ने पूरे सम्मान के साथ डा. इकरा अली को पार्टी में शामिल कर लिया.


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नरम क्यों पड़ गया रुख
यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर डा. इकरा अली को लेकर जदयू नेतृत्व का रूख अचानक इस कदर नरम क्यों पड़ गया? विश्लेषकों का मानना है कि डा. इकरा अली का जदयू में जिस गर्मजोशी से स्वागत हुआ है उसका सीधा अर्थ है कि किसी विशेष मकसद से उन्हें पार्टी में शामिल कराया गया है. वह मकसद 2025 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सुरसंड से जदयू का उम्मीदवार बनाना हो सकता है. 05 जनवरी 2018 को उनका निधन हो गया. सुरसंड की उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए डा. इकरा अली ने खूब जोर लगाया. 2020 में एनडीए के घटक ‘हम’ की उम्मीदवारी पाने की पुरजोर कोशिश की. कामयाबी नहीं मिली. जीतनराम मांझी ने शायद कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया.

हो जा सकता है पत्ता साफ
जदयू से जुड़ने के बाद डा. इकरा अली की सुरसंड से उम्मीदवारी की उम्मीद जगी है. आधार संभवतः यह कि वर्तमान जदयू विधायक दिलीप राय (JDU MLA Dilip Rai) का पत्ता एनडीए (NDA) सरकार के शक्ति परीक्षण में उनकी कथित संदिग्ध भूमिका को लेकर साफ हो जा सकता है. क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. फिलहाल जदयू के नेताओं व कार्यकर्त्ताओं के एक तबके का मानना है कि दिलीप राय के विकल्प के रूप में ही डा. इकरा अली को जदयू में शामिल कराया गया है. परन्तु, एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो ऐसी संभावना को सिरे से खारिज करता है.

दिलीप राय में है दम
उस तबके के मुताबिक स्थानीय नहीं रहने के बावजूद दिलीप राय का सुरसंड विधानसभा क्षेत्र में जो जनाधार है और आम अवाम के बीच जो प्रभाव है, उसको देखते हुए उन्हें एकबारगी बेदखल कर देने का जाखिम जदयू नेतृत्व शायद ही उठाना चाहेगा. विश्लेषकों की समझ में ऐसा इसलिए भी नहीं करना चाहेगा कि इस क्षेत्र का सामाजिक समीकरण विधायक दिलीप राय के अनुकूल है. उन्हें हाशिये पर डालने का मतलब अपने पांव में खुद कुल्हाड़ी मार महागठबंधन यानी राजद को ‘वाक ओवर’ देने के समान हो जा सकता है.

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