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सदमे में शांता शाही : विषाद बढ़ा दिया परिजनों ने!

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महर्षि अनिल शास्त्री
28 अक्तूबर, 2021

GOPALGANJ : कृष्णा शाही का नाम जरूर याद होगा. कांग्रेस (Congress) की दिवंगत नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री कृष्णा शाही (Krishna Shahi) का नहीं, गोपालगंज जिले के हथुआ (Hathua) के ‘दुस्साहसी’ भाजपा नेता (BJP Leader) कृष्णा शाही का. दुस्साहसी इस रूप में कि स्थानीय सरगनाओं से तो वह बेखौफ लोहा लेते ही थे, जेल में बंद बाहुबली सतीश पांडेय (Satish Pandey) से टकराने में भी वह भय नहीं खाते थे. इस कारण क्षेत्रीय स्तर पर ही सही, उनकी भी पहचान बाहुबली की ही थी.

जुलाई 2017 में विरोधियों ने सुनियोजित तरीके से उन्हें ठिकाना लगा दिया. मौत के मामले को ऐसे घटिया आरोपों में लपेट दिया कि सामान्य सहानुभूति परिजनों व करीबियों में ही सिमट-सिकुड़ गयी. कृष्णा शाही की पत्नी हैं शांता शाही (Shanta Shahi). इनका सिंदूर पति के निर्मम विरोधियों ने धो दिया तो बाद की जिन्दगी में तबाही परिवार के लोगों ने घोल दी. विशेष कर दिवंगत कृष्णा शाही के बड़े भाई यानी शांता शाही के जेठ उमेश शाही (Umesh Shahi) ने.

कृष्णा शाही ने बनवाया था मुखिया
ऐसा आरोप और किसी का नहीं, शांता शाही का ही है. जो कृष्णा शाही की मौत के कुछ माह बाद से ही गाहे-बगाहे सार्वजनिक करती रहती हैं. मामला अभी हथुआ प्रखंड की चैनपुर पंचायत के मुखिया चुनाव का गर्म है. शांता शाही उसी पंचायत की हैं. इस पंचायत से पहले उमेश शाही मुखिया निर्वाचित होते थे. 2016 में मुखिया (Mukhiya) का पद महिला (सामान्य) के लिए हो गया. कृष्णा शाही तब जीवित थे. उन्होंने अपनी पत्नी शांता शाही को चुनाव लड़वा दिया. वह निर्वाचित भी हो गयीं.

ऐसा उमेश शाही की सहमति से हुआ या उनसे बगैर राय-विचार के, यह नहीं कहा जा सकता. अवसर उमेश शाही की पत्नी को क्यों नहीं मिला, यह भी नहीं. 2016 में शांता शाही का मुकाबला व्यास यादव (Vyash Yadav) की पत्नी इंदू देवी (Indu Devi) से हुआ. इंदू देवी 673 मतों से पिछड़ गयीं. जानकारों की मानें तो कृष्णा शाही की मौत के बाद शांता शाही का जेठ उमेश शाही से विवाद कुछ अधिक गहरा गया. परिवार (Pariwar) के अन्य सदस्यों के साथ भी. इतना कि इस बार उमेश शाही ने अपनी बहन यानी शांता शाही की ननद बबीता कुमारी को उनके खिलाफ मैदान में उतार दिया.

दिल नहीं पसीजा पंचायत वासियों का
चुनाव में कृष्णा शाही की ‘शहादत’ को इस आक्रामकता से भुनाया कि शांता शाही की सहानुभूति मिलने की उम्मीद धरी रह गयी. शांता शाही ने अपने दो छोटे-छोटे बेटों और एक बेटी के साथ घर-घर घूमी, लेकिन पंचायतवासियों का दिल उनके पक्ष में नहीं पसीजा. ‘बहन जी बनाम भाभी जी’ के इस संघर्ष में वह पिछड़ गयीं. जीत बबीता कुमारी की हो गयी. इससे धारणा को बल मिला कि पारिवारिक विवाद में शांता शाही की जो भूमिका है, वह गांववालों को नागवार लगती है.

वैसे, एक तबके का कहना रहा कि माहौल शांता शाही के पक्ष में था. लेकिन, चुनाव अभियान के दौरान उमेश शाही पर हुए कातिलाना हमले से हालात अचानक बदल गये. आरोपों के मुताबिक किसी पुराने विवाद को लेकर वह हमला गांव के ही यशवंत राय के परिजनों ने किया था. उन सबका जुड़ाव कुचायकोट के जदयू विधायक अमरेन्द्र कुमार पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय (Amrendra Kumar Pandey urf Pappu Pandey) से रहने की बात कही जाती है. उमेश शाही अब भी अस्पताल में ही हैं. लोग यह जानना जरूर चाहेंगे कि मुखिया पद के चुनाव में शांता शाही के खिलाफ अपनी पत्नी को नहीं उतार उन्होंने बहन को क्यों उम्मीदवार बनाया? वह भी शादीशुदा बहन को जिनकी ससुराल सीवान जिले के मैरीटांड़ में है?


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उमेश शाही ने चली सधी चाल
लोग जो समझें, उमेश शाही ने बिल्कुल सोच-समझकर ऐसा किया. शांता शाही के मुकाबले अपनी पत्नी को मैदान में उतारते, तो लाख कोशिशों के बावजूद वह उन्हें (शांता शाही) शिकस्त नहीं दे पातीं. बहन बबीता कुमारी (Sister Babita Shahi) को उतारकर उन्होंने चुनाव अभियान को भावनात्मक मोड़ दे दिया. बहन की ससुराल भले सीवान जिला (Siwan District) में हो, वह रहती हैं चैनपुर में ही. यह जानकारी खुद उमेश शाही ने ही दी.

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