सहरसा : अटक गयीं जदयू सांसद की सांसें!
तेजस्वी ठाकुर
30 दिसम्बर, 2021
SAHARSA : ऐसा ही कुछ हुआ सहरसा जिला परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में. 20 वर्षों से जिला परिषद की राजनीति को मनमाफिक हांक रहे क्षेत्रीय जदयू सांसद दिनेश चन्द्र यादव (Dinesh Chandra Yadav) को इस बार हाथ मलने की विवशता से दो-चार होना पड़ गया. इसे सहरसा की राजनीति में उनके पांव खिसकने का संकेत मानें या महज एक सियासी संयोग, इस चुनाव में उन्हें दोहरा सदमा झेलना पड़ गया. एक तो अध्यक्ष पद के चुनाव में इच्छा नहीं चल पायी. जिस मधुलता कुमारी (Madhulata Kumari) को वह इस पद पर काबिज कराना चाहते थे, मुकाबले में काफी कमजोर साबित हुईं. मात खा गयीं.
बागी हो गये सुरेन्द्र यादव
दूसरे ‘अपना’ समझे जाने वाले सुरेन्द्र यादव (Surendra Yadav) ने उनके खिलाफ अघोषित तौर पर न सिर्फ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से सांसद द्वारा बुने गये तानाबाना को तहस-नहस कर अपनी पत्नी किरण देवी (Kiran Devi) को अध्यक्ष पद पर आसीन कराने में कामयाब हो गये. इतना ही नहीं, उपाध्यक्ष के चुनाव में भी सांसद सरपरस्त खेमे का कुछ नहीं चल पाया. मर्जी सुरेन्द्र यादव की ही चली. उपाध्यक्ष का पद उनके खेमे के धीरेन्द्र कुमार (यादव) को हासिल हो गया. मधुलता कुमारी के खेमे के संतोष यादव को निराशा ही हाथ लगी.
रितेश रंजन रहे किंग मेकर
इन सबके मद्देनजर यह कहा जाये कि इस बार ‘किंग मेकर’ की भूमिका में सांसद दिनेश चन्द्र यादव (Dinesh Chandra Yadav) की जगह जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष रितेश रंजन (Ritesh Ranjan) रहे, तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. वैसे, जिला परिषद का यह चुनाव उनके लिए भी सदमादायक रहा. उनकी मां पूर्व जिला पार्षद ललिता रंजन (Llita Ranjan) को अपने गढ़ सिमरी बख्तियारपुर (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-5) में पराजय का मुंह देखना पड़ गया. जीत 3 हजार 452 मत पाने वाली गजाला रुबाब परवीन की हुई. 2 हजार 988 मतों के साथ ललिता रंजन चौथे स्थान पर अटक गयीं.
अतिपिछड़ा पर है पकड़
अध्यक्ष-उपाध्यक्ष चुनाव में रितेश रंजन की भूमिका को इस रूप में देखा और समझा जा सकता है. 21 सदस्यीय सहरसा जिला परिषद में इस बार सर्वाधिक आठ यादव समाज के हैं. दो मुस्लिम समुदाय के. यादव समाज के जिला पार्षदों में बिखराव की स्थिति थी. इसके बावजूद इन दोनों समुदायों के जिला पार्षदों को महागठबंधन का समर्थक मान राजग के रणनीतिकार मधुलता कुमारी (Madhulata Kumari) की जीत के प्रति आशान्वित थे. विजयी होने के लिए 11 जिला पार्षदों के समर्थन की जरूरत थी. वह उन्हें हासिल दिख रहा था.
खुशफहमी में रह गया राजग
दो सवर्ण और दलित एवं अतिपिछड़ा समाज के 9 यानी11 के समर्थन का वे दावा कर रहे थे. उम्मीद इस पर भी टिकी थी कि कला-संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री आलोक रंजन (Alok Ranjan) और वन एवं पर्यावरण मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू (Neeraj Kumar Bablu) अपनी ताकत भिड़ा बेड़ा पार लगा देंगे. निगाहें मत्स्य एवं पशु संसाधन मंत्री मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) पर भी जमी थी. विशेषकर अतिपिछड़ा समाज के जिला पार्षदों के समर्थन को लेकर.
देखना चाहते थे प्रभुत्व ढहते
वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी पर इसलिए कि वह 2020 के विधानसभा चुनाव में सहरसा जिले के ही सिमरी बख्तियारपुर से राजग के उम्मीदवार थे. जैसी कि चर्चा है कि मुकेश सहनी ने इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी. आलोक रंजन और नीरज कुमार सिंह बबलू (Neeraj Kumar Bablu) के बारे में स्थानीय लोग कहते हैं कि दोनों के दोनों जिला परिषद की राजनीति में सांसद दिनेश चन्द्र यादव (Dinesh Chandra Yadav) के प्रभुत्व को ढहते देखना चाहते थे. उनकी मंशा फलीभूत हुई.
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सांसद के थे कृपा पात्र
सुरेन्द्र यादव (Surendra Yadav) की सांसद दिनेश चन्द्र यादव से निकटता को इस रूप में समझा जा सकता है कि उनकी ही ‘कृपा’ से वह (सुरेन्द्र यादव) 2006 से लेकर 2016 तक यानी दस वर्षों तक सहरसा जिला परिषद के अध्यक्ष रहे. 2016 के चुनाव में उनकी पत्नी किरण देवी मैदान में थीं. दुर्भाग्यवश पराजित हो गयी थीं. निर्वाचित होतीं तो शायद महिला (सामान्य) के लिए सुरक्षित हो गये अध्यक्ष के पद पर वही दिखतीं. उनके हार जाने का लाभ अरहुल देवी (Arhul Devi) को मिल गया.
हार गयीं अरहुल देवी
अरहुल देवी इस बार जिला परिषद का चुनाव नहीं जीत पायीं. अध्यक्ष पद की पराजित उम्मीदवार मधुलता कुमारी ने 3 हजार 600 से अधिक मतों से उनकी राह अवरुद्ध कर दी. हार निवर्तमान उपाध्यक्ष गंगा सागर कुमार उर्फ छत्री यादव की भी हुई. वह कहरा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-18) से उम्मीदवार थे. विनीत कुमार सिंह (Vinit Kumar Singh) से मात खा गये. सुरेन्द्र यादव को उम्मीद थी कि सांसद दिनेश चन्द्र यादव उनकी पत्नी किरण देवी (Kiran Devi) के अध्यक्ष बनने की राह को निरापद बना देंगे. लेकिन, सांसद के करीबी युवा जदयू नेता अमर यादव (Amar Yadav) की पत्नी मधुलता कुमारी की अध्यक्ष बनने की चाहत ने सुरेन्द्र यादव को आशंकाओं में घेर दिया.
धराशायी हो गया सांसद का मंसूबा
फिर तो उन्होंने जो खेल दिखाया वह सबके सामने है. स्थानीय राजनीति में जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष रितेश रंजन की पहचान पूर्व अध्यक्ष सुरेन्द्र यादव के धूर विरोधी की रही है. अप्रत्याशित रूप से इस बार दोनों-एक दूसरे के करीब आ गये और सांसद दिनेश चन्द्र यादव का मंसूबा धराशाही हो गया. अतिछिड़ा समाज के जिला पार्षदों पर रितेश रंजन का अच्छा खासा प्रभाव है. ऐसा 2016 के अध्यक्ष पद के चुनाव में भी दिखा था. उस चुनाव में उनकी मां ललिता रंजन (Lalita Ranjan) उम्मीदवार थीं. अरहुल देवी से मात्र दो मतों के अंतर से पिछड़ गयी थीं. सुरेन्द्र यादव के लिए धीरेन्द्र यादव का साथ मिल जाना भी सुकूनदायक रहा. जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के करीबी रहे धीरेन्द्र यादव को उपाध्यक्ष का पद हासिल हुआ.
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