नेताजी की फुसफुसाहट में उलझा ‘बच्चा’ का भविष्य
विशेष प्रतिनिधि
03 जुलाई, 2022
PATNA : राजनीति हो या परिवार, गार्जियन अपनी अगली पीढ़ी की भलाई के लिए जरूर सोचता है. नयी और पुरानी दोनों तरह की पार्टियों में परिवार के लिए बराबर का मोह है. नयी पार्टी के नेता अपनी दूसरी पीढ़ी के बारे में सोच रहे हैं. जगह भी दिलवा दे रहे हैं. उधर, पुरानी पार्टी में तीसरी पीढ़ी के लिए जुगाड़ किया जा रहा है. कुछ नेताओं की तो तीसरी पीढ़ी राजनीति (Politics) में खप भी गयी है. मगर, ऐसी तकदीर पुरानी पार्टी के हरेक नेता (Leader) की नहीं है.
ताना तो मिलता ही होगा
अब देखिए न, पुरानी पार्टी के एक नेता अपनी संतान (Children) को किसी सदन में जगह दिलाने के लिए कितनी बेचैनी (Restlessness) से कोशिश कर रहे हैं. यह नहीं कह सकते कि संतान में सदन में जाने की योग्यता नहीं है. संयोग है कि कई चुनावों में तमाम प्रयासों के बावजूद अवसर नहीं मिल रहा है. घर में तो ताना मिलता ही होगा-एक आपके पिताजी (Father) थे. जीते जी आपको मुख्यधारा में ले आये. एक आप पिता हैं, जो पावर में रह कर भी अपनी संतान के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
पांच-दस साल बाद भी वह युवा नेता के दर्जे में ही रहेगा. नेताजी तब पावर में रहेंगे ही इसकी कोई गारंटी नहीं. नेताजी के साथ परेशानी यह है कि जरूरत से अधिक मृदुभाषी हैं. पैरवी अपनी हो या दूसरे की फुसफुसा कर ही करेंगे. जबकि जमाना जोर-जोर से बोलने वाला आ गया है.
पहली कोशिश 2019 में हुई
थोड़ा उनकी कोशिशों पर गौर कीजिये. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव (Parliament Election) में ही संतान को लांच करने की तैयारी शुरू कर दी थी. नीचे से लेकर आलाकमान तक को सहमत कर दिया गया. कहा यही गया कि पुरानी पार्टी (Party) की गरिमा इसी संतान से वापस होगी. राजनीति (Politics) का चक्र ऐसा चला कि सहयोगी दल ने सीट छोड़ने से साफ मना कर दिया. यह शुरुआती कोशिश थी, इसलिए संतान को भी बुरा नहीं लगा. अगले ही साल विधानसभा (Assembly) का चुनाव होने वाला था.
समझदार है बच्चा
संतान को भरोसा दिया गया कि विधानसभा चुनाव (Election) का टिकट पक्का समझ लो. बच्चा समझदार है. समझ गया कि पहली बार विधानसभा से ही सदन यात्रा प्रारंभ करें. एक विधानसभा क्षेत्र की तलाश की गयी. सहयोगी दल को राजी कर लिया गया. कहीं से कोई रुकावट की बात नहीं थी. लेकिन, ऐन मौके पर पुरानी पार्टी (Old Party) के एक खानदानी नेता के रिश्तेदार को वहां से उम्मीदवार बना दिया गया. संतान को तसल्ली दी गयी कि विधान परिषद (Vidhan Parishad) का चुनाव जरूर लड़वा देंगे.
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करना होगा इंतजार
इसको क्या कहियेगा. विधान परिषद चुनाव (Election) की सुगबुगाहट हुई. सहयोगी दल ने उस सीट पर अपना उम्मीदवार दे दिया, जिस पर संतान ने पूरी तैयारी कर ली थी. जाहिर है, बच्चे को कम से कम दो साल और इंतजार करना पड़ेगा. दिक्कत की कोई बात इसलिए नहीं है कि संतान की उम्र अभी बीती नहीं जा रही है. पांच-दस साल बाद भी वह युवा नेता (Young Leader) के दर्जे में ही रहेगा. नेताजी तब पावर में रहेंगे ही इसकी कोई गारंटी नहीं. नेताजी के साथ परेशानी यह है कि जरूरत से अधिक मृदुभाषी हैं. पैरवी (Lobbying) अपनी हो या दूसरे की फुसफुसा कर ही करेंगे. जबकि जमाना जोर-जोर से बोलने वाला आ गया है.
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