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जयप्रकाश विश्वविद्यालय : तब पकड़ में नहीं आती निगरानी की ‘नादानी’

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विष्णुकांत मिश्र
11 नवम्बर, 2022

PATNA : ऐसी अक्षम्य करतूत बिहार की सामान्य पुलिस (Police) की होती तो शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता. सामान्य समझ में ऐसा ‘करतब’ उसकी कार्य-संस्कृति का हिस्सा बन गया है. इसलिए जब कभी इस तरह का कुछ होता है तो आमतौर पर उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. किसी भी स्तर पर कोई संज्ञान नहीं लिया जाता. इसके बरक्स, निगरानी (Nigrani) अन्वेषण ब्यूरो के कार्यों में भटकाव असंख्य आंखों को अपनी ओर खींच लेता है. गड़बड़ी के संदेह को बल मिल जाता है और साख पर सवाल उठ जाते हैं. इस परिप्रेक्ष्य में सीबीआई (CBI) जांच की मांग होने लग जाती है. निर्दोष को दोषी और दोषी को निर्दोष बताने-ठहराने के प्रयास पर अदालत में फजीहत झेलनी पड़ती है सो अलग. हाल-फिलहाल जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा (Jaiprakash University, Chhapra) से संबद्ध एक चर्चित मामले में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को ऐसे ही शर्मनाक हालात से दो-चार होना पड़ा.

मामला रामपुर कदना का
समस्त शिक्षा जगत को शर्मसार करने वाला यह मामला सारण (Saran) जिले के रामपुर कदना (गड़खा) में संचालित देवराहा बाबा श्रीधर दास डिग्री महाविद्यालय (Sridhar Das Degree College) से जुड़ा है. है तो दस साल पुराना मामला, पर अदालत के हस्तक्षेप से हुए विस्मयकारी खुलासे ने शिक्षा के इस पवित्र मंदिर में पले पाप को नये सिरे से आम नजरों में ला दिया है. महाविद्यालय (College) में कथित रूप से हुई कई करोड़ की वित्तीय गड़बड़ियों से भी इसका कुछ न कुछ संबंध है. वैसे, मूल रूप से यह त्रिस्तरीय फर्जीवाड़ा (Forgery) और निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (Nigrani investigation bureau) की कथित पक्षपातपूर्ण प्रारंभिक जांच का मामला है जिसे वित्तीय गड़बड़ी से कहीं ज्यादा गंभीर माना जा रहा है.

फर्जीवाड़े में भी फर्जीवाड़ा!
करीब-करीब स्थापना काल से ही विविध विवादों में घिरा देवराहा बाबा श्रीधर दास डिग्री महाविद्यालय जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा से संबद्ध है. वर्तमान में इसकी चर्चा तमाम नियमों, कानूनों एवं निर्देशों की खुली अवहेलना कर स्नातक (Graduate) के 2012-15 सत्र में सरकार द्वारा निर्धारित संख्या से अधिक छात्रों (Students) का नामांकन (Admission), फर्जी पंजीयन, अवैध छात्रों की परीक्षा एवं परीक्षाफल (Result) के प्रकाशन (Publishing) और इस फर्जीवाड़े की निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की प्रारंभिक जांच की विसंगतियों को लेकर हो रही है. विसंगतियां ऐसी कि उन्हें देख-सुन अदालत भी हैरान रह गयी.


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होना पड़ा शर्मसार
विसंगतियां इस रूप में है कि अदालत (Court) के आदेश पर हुई निगरानी जांच के प्रतिवेदन के आधार पर दर्ज प्राथमिकी (FIR) एवं उसी के अंतिम जांच-प्रतिवेदन में फर्जीवाड़े (Forgery) के तथ्य तो समान हैं, पर आधा दर्जन से अधिक आरोपित बदल गये हैं. निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के इतिहास (History) में संभवतः ऐसा पहली बार हुआ, कदम पीछे खींचना पड़ा. शर्मसार होना पड़ा. दोनों जांच-प्रतिवेदनों में किसको सही माना जाये? अदालत में सवाल उठा तो निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को ‘सॉरी’ के अलावा और कोई जवाब नहीं सुझा. इसका भी नहीं कि 01 अगस्त 2017 को दर्ज प्राथमिकी में बगैर ठोस सबूत के अभियुक्त बना दिये गये कतिपय सम्मानित प्राध्यापकों एवं कर्मियों की सामाजिक प्रतिष्ठा के हनन और मानसिक प्रताड़ना की भरपाई कैसे होगी?

सूत्रधार थे प्राचार्य
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की दोनों जांच के तथ्य लगभग समान हैं. फर्जीवाड़े में विश्वविद्यालय (University) के तमाम संबद्ध तत्कालीन पदाधिकारियों की संलिप्तता थी. मुख्य सूत्रधार देवराहा बाबा श्रीधर दास डिग्री महाविद्यालय (Deoraha Baba Sridhar Das Degree College) के तत्कालीन प्राचार्य प्रो. अर्जुन प्रसाद यादव (Prof Arjun Prasad Yadav) थे. बहुत कुछ ऐसी ही भूमिका कार्यकारी प्राचार्य प्रो. निरंजन कुमार (Prof Niranjan Kumar) की भी रही. निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की साख पर सवाल नामजद आरोपितों को लेकर खड़ा हुआ. इसे जांच में पारदर्शिता का अभाव कहें या प्रलोभन आधारित पक्षपात, फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेवार दिख रहे कुछ पदाधिकारियों को प्रथम जांच-प्रतिवेदन में खता-बख्श कर दिया गया. इसके बरक्स कुछ वैसे प्राध्यापकों एवं कर्मियों को नामजद कर मानसिक परेशानी में डाल दिया गया जिनका दूर-दूर तक इससे कोई वास्ता नहीं है. उन प्राध्यापकों में डा. आर पी बबलू (Dr. R. P. Bablu) भी हैं, जो वर्तमान में जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलसचिव पद का दायित्व संभाल रहे हैं. पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने इस मामले में इन्हें निर्दोष माना. साथ में कुछ अन्य को भी.

सवाल ‘इज्जत भरपाई’ का
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के दूसरे जांच-प्रतिवेदन में इसका परिमार्जन हो गया, पर पांच वर्षों तक मानसिक प्रताड़ना झेलने वाले निर्दोष प्राध्यापकों की ‘इज्जत भरपाई’ का सवाल बना ही रह गया. कहीं और साक्ष्य तलाशने की जरूरत नहीं, जांच-प्रतिवेदनों से ही यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रतिष्ठा हनन का दोष निगरानी अन्वेषण ब्यूरो का है. ऐसे में लोग यह जरूर जानना चाहेंगे कि निर्दोष प्राध्यापकों की मानसिक संतुष्टि के लिए अपने स्तर से वह कोई कारगर पहल करेगा? दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होगी?

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