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सीतामढ़ी : नित्यानंद राय की बढ़ी सक्रियता का रहस्य क्या?

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मदनमोहन ठाकुर
03 मई 2023

SITAMARHI : नवगठित राष्ट्रीय लोक जनता दल (रालोजद) राजग (NDA) का हिस्सा बना या भाजपा (BJP) से चुनावी तालमेल हुआ तब 2024 के संसदीय चुनाव में उजियारपुर (Ujiyarpur) क्षेत्र उसके हिस्से में जाये या नहीं, उसकी यह पहली चाहत होगी. इस पर वह दावा जता सकता है. आधार यह कि हार-जीत अपनी जगह है, कुशवाहा (Kushwaha) बहुल इस क्षेत्र में रालोजद (RLJD) सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को ‘गृह क्षेत्र’ सरीखा आनंद की अनुभूति होती है. इसको इस रूप में समझिये. 2014 में जीत उन्हें काराकाट (Karakat) संसदीय क्षेत्र में मिली थी. तब राजग में थे और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की सरपरस्ती थी. 2019 में महागठबंधन (Mahagathbandhan) की छत्रछाया में खुद को अधिक बलवान मान काराकाट के साथ-साथ उजियारपुर के अखाड़े में भी ताल ठोंक बैठे.

कुछ भी कर सकते हैं
उस वक्त की पार्टी रालोसपा (RLSP) उनकी अपनी थी. उक्त दोनों सीटें रालोसपा के कोटे में गयी थीं. कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था. दोनों जगहों से उम्मीदवार बन गये. जीत कहीं नहीं हुई. उनके करीब के लोगों का मानना है कि उजियारपुर संसदीय क्षेत्र से जीत उपेन्द्र कुशवाहा का ऐसा ख्वाब है जिसे हकीकत में बदलने के लिए वह कोई भी राजनीतिक (Political) कदम उठा सकते हैं. किसी भी तरह का सौदा या समझौता कर सकते हैं. लेकिन, लगता है कि अभी ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए इंतजार ही करना होगा. वैसे, बताया जाता है कि इस बार भाजपा (BJP) के करीब हुए हैं, तो एक शर्त राजग (NDA) में उजियारपुर से उनकी उम्मीदवारी है. परन्तु, यह शर्त शायद ही पूरी हो पायेगी. इसकी बड़ी वजह केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Ray) के वहां का सांसद रहना है. उपेन्द्र कुशवाहा के लिए काराकाट (Karakat) छोड़ा जा सकता है. सीतामढ़ी (Sitamarhi) की सीट भी रालोजद के हिस्से जा सकती है.

चेहरे कई हैं भाजपा में
राजनीति का यह सूत्र वाक्य है- इसमें कब क्या हो जायेगा, इसकी गारंटी नहीं. इस दृष्टि से यदि उजियारपुर उपेन्द्र कुशवाहा को मिल गया तब नित्यानंद राय (Nityanand Ray) का क्या होगा? उन्हें सीतामढ़ी में अवसर उपलब्ध कराया जायेगा? इधर के दिनों में सीतामढ़ी में बढ़ी उनकी सक्रियता इस सवाल को मजबूती प्रदान करती है. वैसे, एक कारण है जो नित्यानंद राय के उजियारपुर में जमे रहने को आधार देता है. वह है उस क्षेत्र के यादव (Yadav) समाज में उनका खुद का जनाधार. नित्यानंद राय के उम्मीदवार नहीं बनने पर उस जनाधार का साथ भाजपा के दूसरे या सहयोगी दल के उम्मीदवार को मिलेगा, इसकी संभावना नहीं के बराबर माना जा सकता है. सीतामढ़ी के लिए स्थानीय स्तर पर भाजपा में चेहरे तो कई हैं, पर परिणाम के रुख को मोड़ने का दमखम किसी में नहीं दिखता है. जो चेहरे हैं उनमें अन्य की तुलना में पूर्व सांसद सीताराम यादव (Sitaram Yadav) कुछ अधिक सक्रिय नजर आ रहे हैं. बढ़ी उम्र के चलते उनकी खुद की संभावना तो नहीं बनती है, पर पुत्रवधू उषा किरण (Usha Kiran) का भविष्य संवार सकते हैं. उषा किरण सीतामढ़ी जिला परिषद (Sitamarhi Zila Parishad) की अध्यक्ष रह चुकी हैं. दावेदारी परिहार की विधायक गायत्री देवी की भी है.

राजग में कोई संभावना नहीं
सीतामढ़ी संसदीय क्षेत्र से यादव समाज का ही उम्मीदवार निर्वाचित होगा, यह मिथक 2014 और 2019 के चुनावों में टूट गया. इसके मद्देनजर अवसर मिले या नहीं, क्षेत्र का सामाजिक एवं राजनीतिक समीकरण अनुकूल हो या नहीं, इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने की विधान परिषद (Vidhan Prishad) के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) की महत्वाकांक्षा लंबे समय से उफान खा रही है. अगल-बगल के लोगों की मानें, तो यह उनकी आखिरी सियासी ख्वाहिश है. देवयोग से उनकी इस महत्वाकांक्षा को मुकाम मिल गया तब सुनील कुमार पिंटू (Sunil Kumar Pintu) का क्या होगा? वर्तमान में वही इस क्षेत्र से जदयू (JDU) के सांसद हैं. राजग में इस सीट के उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोजद के हिस्से में जाने की चर्चाओं में दम है, तो सुनील कुमार पिंटू के लिए उधर संभावना लगभग समाप्त है.

महागठबंधन में उम्मीद जगी
इधर, महागठबंधन खासकर जदयू में उनकी इस रूप में उम्मीद थोड़ी जगी है कि बिहार विधान परिषद के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर के ‘निर्देशन’ में सीतामढ़ी सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक (Sitamarhi Central Co-operative Bank) के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने वाले वरिष्ठ जदयू नेता एवं अधिवक्ता विमल शुक्ला (Vimal Shukla) की ऐसी हार हुई कि उन्हें और उनके ‘चुनावी सेनापति’ को शर्मसार होना पड़ गया. विश्लेषकों की समझ है कि विमल शुक्ला की यह असफलता देवेश चन्द्र ठाकुर की संभावना को प्रभावित कर दे सकती है. देवेश चन्द्र ठाकुर के अलावा विधायक पंकज कुमार मिश्र (Pankaj Kumar Mishra), दिलीप राय (Dilip Ray), गायत्री देवी (Gayatri Devi) एवं मोती लाल प्रसाद (Moti Lal Prasad), विधान पार्षद रेखा कुमारी (Rekha Kumari) और उनके पति डा. मनोज कुमार (Dr. Manoj Kumar), राजकिशोर कुशवाहा (Rajkishor Kushwaha) आदि ने खूब जोर लगाया तो 45 सदस्यों का समर्थन मिल पाया. ये सब साथ नहीं होते, तो फिर विमल शुक्ला का क्या होता? हालांकि, वह इस ‘उपलब्धि’ से भी संतुष्ट हैं. समझ यह कि कम भले है, पर ‘विशुद्ध’ है.

और भी हैं कई दावेदार
जदयू में वर्तमान सांसद सुनील कुमार पिंटू और देवेश चन्द्र ठाकुर के अलावा और भी कई दावेदार हैं. जनाधार आधारित सबका अपना-अपना दावा है. सुरसंड (Sursand) के जदयू विधायक दिलीप राय (Dilip Ray) के दावे में दम को एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता. संसदीय चुनाव लड़ने में वह हर दृष्टि से सक्षम-समर्थ हैं. चुनावी रणनीति बनाने और जीत हासिल करने का अच्छा खासा अनुभव भी है. 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व विधायक अबू दोजाना (Abu Dojana) जैसे राजद (RJD) के आर्थिक रूप से संपन्न, समृद्ध व सबल उम्मीदवार को शिकस्त देकर 2024 के संसदीय चुनाव की बाबत अपनी दावेदारी मजबूत कर दी थी. महागठबंधन में जदयू और राजद इस सीट के दावेदार हैं. राजद इसे अपनी पुश्तैनी सीट मानता है. फिर से काबिज होना चाहता है.


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कबू खिरहर ने दिखाया दम
राजद की इस चाहत से उत्साहित पूर्व सांसद अर्जुन राय (Arjun Ray) ने अपनी उम्मीदवारी की आस लगा रखी है. वैसे, बाजपट्टी (Bajptti) के विधायक मुकेश कुमार यादव (Mukesh Kumar Yadav), विधान परिषद के चुनाव में राजद के सशक्त उम्मीदवार रहे लोकप्रिय नेता शैलेन्द्र कुमार उर्फ कबू खिरहर (Sailendra Kumar urf Kabu Khirhar) और सीतामढ़ी के पूर्व विधायक सुनील कुशवाहा (Sunil Kushwaha) की दावेदारी को दरकिनार करना राजद नेतृत्व के लिए कठिन होगा. विधान परिषद के चुनाव में कबू खिरहर ने जिस ढंग से अपना दम दिखाया और इधर सीतामढ़ी सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष पद के चुनाव (Election) में अपनी एक अलग धारा बना राजनीति को चौंकने के लिए मजबूर कर दिया, उससे उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है. जनाधार के मामले में विधायक मुकेश कुमार यादव भी किसी रूप में कमतर नहीं हैं. व्यवहार कुशल तो वह हैं ही, क्षेत्र के युवा वर्ग में उनकी काफी लोकप्रियता है. संसदीय चुनाव अभी दूर है. करीब आते-आते परिस्थितियां काफी कुछ बदल जा सकती हैं.

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