कौमुदी महोत्सव : समंदर कोई कहता है, कोई कतरा समझता है…
तापमान लाइव ब्यूरो
29 अक्तूबर 2023
Hajipur : विचारहीनता के इस दौर में साहित्य हमें आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण की प्रेरणा देता है. यह साहित्य ही है, जिसने संवेदना और सहानुभूति को बचाकर रखा है. बाजारवाद के बेहद भ्रामक (Misleading) समय में लोग छल-प्रपंच की मुश्किलें खड़ी करते हैं. तब साहित्य ही है, जिसने अधिकार और प्रतिकार की चेतना जगाये रखी. उक्त बातें वरिष्ठ लेखक और राजनीति शास्त्र के पूर्व प्राध्यापक डा. व्रजकुमार पांडेय ने कहीं. वह प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘किरण मंडल’ द्वारा शनिवार को शरद पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित छिहत्तरवें ‘कौमुदी महोत्सव’ की अध्यक्षता कर रहे थे.
तब परिस्थितियां कुछ और थीं
डा. व्रजकुमार पांडेय ने किरण मंडल की सुदीर्घ संस्कृति-निष्ठा और साहित्य-परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि पचहत्तर-छिहत्तर वर्ष पूर्व जब हाजीपुर में इस संस्था की नींव डाली गयी थी, तब की सामाजिक परिस्थितियां और थी, मनुष्य की चेतना (Human Consciousness) में इतना ह्रास नहीं हुआ था. उन्होंने उन दिनों के बौद्धिक समाज को सार्वजनिक क्षेत्र का हितैषी बताते हुए कहा कि साहित्य को उन दिनों मर्यादित आचरण (Decent Conduct) का निर्णय देने वाला माना जाता था.
साहित्य साहस भी देता है
हाजीपुर में आयोजित इस कार्यक्रम का विषय प्रवेश कथाकार-कवि और संस्था के संयुक्त सचिव अश्विनी कुमार आलोक ने कराया. किरण मंडल के महासचिव एवं ‘किरण वार्ता’ पत्रिका के संपादक डा. शैलेन्द्र राकेश ने कवियों एवं श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य अपने समय की विषमताओं से लड़ने का साहस देता है, मनुष्य की निजी परिस्थितियां साहित्यिक मंचों से व्याख्यायित होकर देश – काल के साथ संवाद (Dialogue) करती हैं.
सम्मानित किया
समस्तीपुर की कवयित्री सीमा ने कार्यक्रम का रम्यतापूर्वक संचालन किया. ‘सामाजिक सदाचार में साहित्य की भूमिका’ विषय पर प्रसिद्ध शिक्षाविद रामेश्वर द्विवेदी ने व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि साहित्य हमें आपादमस्तक बदल देता है, मनुष्य बनने की सामान्य शर्तों से जोड़े रखता है, रिश्तों के रंग-रूप समझाता है. इस अवसर पर कोलकाता (Kolkata) की कवयित्री और स्त्री समाज के लिए संवेदनशील कार्यकर्ता आरती सिंह ने डा. व्रजकुमार पांडेय को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया.
कवि गोष्ठी में प्रेमकिरण
कवि गोष्ठी में पटना के प्रसिद्ध शायर प्रेम किरण ने अपनी ग़ज़ल में वक्त के संकटों से जूझते सामान्य लोगों का पक्ष रखा-
नदी की तेज रवानी में बह गये कुछ लोग
जो रह गये किनारे उदास रहते हैं
घरों में आग लगाकर जो मुस्कुराते थे
सुना है अब वे शरारे उदास रहते हैं.
बक्सर के वरिष्ठ गीतकार डा. रामरक्षा मिश्र विमल ने प्रेम, समर्पण और चेतना के अनेक गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
ऐसी आंखें भी सचमुच हो सकती हैं क्या
मैं जो देखूं, तुम भी उसको देख सकोगे
आपका शहर मुबारक आपको…
वरिष्ठ उद्घोषक बैद्यनाथ पंडित प्रभाकर ने अपनी कविताओं में गांव और शहर की आपसी प्रतिस्पर्द्धाओं के चित्र खींचे-
आपका शहर मुबारक आपको
है प्यारा हमको गांव
प्रसिद्ध शायर डा. बद्र मोहम्मदी ने अपनी ग़ज़लों में गंभीर अवसरों की अर्थवत्ता का महत्त्व बताया-
रख-रखाव खानदानी और है
हो कुंआ गहरा तो पानी और है
दिन में लगती रातरानी और है
उसका सच, उसकी कहानी और है
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपनी कविताओं में सच्चरित्र मनुष्य की प्रतिबद्धताएं व्यक्त कीं-
तुम्हें मुबारक रश्मि दूधिया चकाचौंध वाली
हम तो दियना – बाती तम में जलते जायेंगे
गरदुनिया यह एक सपना है…
डा. शैलेन्द्र राकेश ने सांसारिक व्यामोह की जरूरतों पर कविता कहीं-
गर दुनिया यह एक सपना है
सपनों में मुझको रहने दो
अश्विनी कुमार आलोक की ग़ज़ल में प्रेम और ईश्वर के लिए आदरभाव व्यक्त हुआ-
न जाने कौन है जिसने
मोहब्बत को बना डाला
समंदर कोई कहता है,
कोई कतरा समझता है.
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तनिक भी कम नहीं हुए पीढ़ीगत जोश, जज्बा और जुनून
तब भी अटूट है मंचन का सिलसिला
अन्य की बात छोड़िये, खुद पर भी विश्वास नहीं उन्हें!
इनकी भी हुई प्रशंसा
आरती सिंह, साक्षी गोस्वामी, रामेश्वर द्विवेदी ,सीमा के काव्यपाठ की भी प्रशंसा की गयी. देर रात तक चली इस कविगोष्ठी (Poetry Seminar) में डा. ओमप्रकाश चौरसिया, विनय चंद्र झा, रामनाथ शर्मा, सरोज कुमार, अनिल लोदीपुरी ,सुमन कुमार, मनोज कुमार, विजय कुमार भास्कर, जामुन शर्मा, योगेन्द्र शर्मा, भोला प्रसाद, आजाद कुमार समेत बड़ी संख्या में शहर के गण्यमान्य लोग उपस्थित थे.
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