पद बड़ा, विभाग बड़ा : तब भी छिप-छिपा कर रहना पड़ा !
विशेष प्रतिनिधि
06 मार्च 2024
Patna : ‘जान बची तो लाखों पाये’ – काफी प्रचलित मुहावरा है. उसको यहां थोड़ा बदल कर पढ़िये- ‘मंत्री का पद गया तो सुकून मिला…’ ऐसा ही हो रहा है उनके साथ. सामान्य समझ है कि पद और पुरस्कार खुशी के वाहक होते हैं. ऐसे सम्मान (Samman) से अपूर्व आनंद मिलता है. मंत्री (Minister) का पद मिलने से उन्हें भी इसकी अनुभूति हुई होगी. पर, इतनी आत्मतुष्टि हरगिज़ नहीं हुई होगी, जितनी मंत्री के पद से मुक्त हो जाने के बाद महसूस कर रहे होंगे.
राजद कोटा के थे …
बात महागठबंधन की सरकार में राजद के कोटा से मंत्री रहे एक नेताजी की है. निवर्तमान मंत्रीजी एक समय में अपने क्षेत्र के बाहुबली नेता के शागिर्द हुआ करते थे. बाहुबली नेता की चलती और प्रभाव को देखकर उनके मन में विचार आया कि क्यों न राजनीति के कारोबार (Business) में भाग्य आजमाया जाये. किस्मत का साथ मिला. उछल-कूद के बाद सफलता भी मिल गयी. दूसरे प्रयास में विधायक (MLA) बन गये. उसी साल मंत्री भी बन गये. लेकिन, विभाग अच्छा नहीं था. सो जब तक खाने-कमाने का उपाय सोचते, सरकार चली गयी. बेचारे पैदल हो गये. कह लीजिये कि जनता की सेवा और उस बहाने अपनी जेब भरने का पूरा प्लान चौपट हो गया.
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रामायण के विशेषज्ञ
संयोग अच्छा कि दूसरी बार विधायक बने तो मंत्री का पद फिर मिल गया. इस बार विभाग (Department) अच्छा मिला. बजट के हिसाब से सबसे बड़ा विभाग. क्षेत्र में शोर मच गया. इस बार तो मंत्रीजी कल्याण कर देंगे. नौकरी और धन-दोनों बांटेंगे. मंत्री बनने के बाद नेताजी क्षेत्र में गये तो कई जगहों पर उनका भव्य अभिनंदन किया गया. बात भी वाजिब ही थी. मंत्रीजी ने काम करना शुरू किया. वह रामायण (Ramayan) के विशेषज्ञ हैं. परमार्थ का सुफल जानते हैं. लेकिन, कलिकाल का स्मरण करते हुए उन्होंने परमार्थ के बदले निज स्वार्थ का वरण किया. उनके दोनों हाथ, जिसके बारे में अंदाज था कि जनता को खुलकर बांटने के लिए खुलेंगे, अपनी ओर मुड़कर बटोरने लगे.
खूब डांट मिली
ट्रांसफर-पोस्टिंग का दौर चला. पूरे राज्य में हरकारा छोड़ दिये गये. हरकारों के बीच समन्वय नहीं था. एक-एक पोस्ट के लिए तीन-तीन अधिकारियों से वसूली कर ली गयी. कोहराम मच गया. इधर राजा (King) को इन सब बातों की खबर मिली. विभाग पर सख्त पहरा बिठा दिया. खूब हंगामा हुआ. मंत्रीजी धर्म ग्रंथ से लेकर संविधान (Constitution) तक की दुहाई देने लगे. अपने गार्जियन के पास जाकर रोये-गिड़गिड़ाये. गार्जियन से भी डांट मिली – हम अपने बच्चों का कैरियर (Carrier) देखें कि तुम्हारा बकवास सुने. उस डांट-फटकार के बाद उनकी मंत्री वाली हैसियत ऐसी हो गयी कि हर किसी को उन पर दया आने लगी. बेचारे घर पर रहें तो जनता उनके पास दूसरे विभाग की पैरवी लेकर पहुंच जाती थी. कहती थी कि अपने विभाग में तो आपकी चलती नहीं है. दूसरे विभाग में ही कुछ काम करवा दीजिये. उनसे यह भी नहीं हो पाता था.
रास्ता निकल लिया था
घर की भीड़ से भागकर आफिस (Office) चले जाते थे. वहां का सन्नाटा उन्हें खाने दौड़ता था. विभाग के प्रधान के डर से कोई अधिकारी-कर्मचारी उनके चैम्बर (Chamber) की तरफ झांकना भी नहीं चाहता था. हां, जनता से बचने का उन्होंने रास्ता निकाल लिया था. फोन को हमेशा बिजी मोड में रखने लगे थे. ताकि जनता (Public) के बीच यह संदेश जाये कि मंत्री जी फालतू नहीं हैं, हमेशा काम में बिजी रहते हैं. इस दयनीय हालात में मंत्री पद से मुक्ति उन्हें कितना सुकून दे रही होगी, इसकी कल्पना कीजिये…!
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