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हाल यही था…. कटिहार में भाजपा के महत्वाकांक्षी नेताओं का

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अशोक कुमार
18 मार्च 2024

Purnea : ‘गाछे कटहल ओठे तेल’ काफी चर्चित लोकोक्ति है. इतना कि अर्थ बताने की शायद जरूरत नहीं. तब भी बता दे रहे हैं. कटहल अभी पेड़ में ही लटका है और लोग खाने के लिए ओठ में तेल लगा रहे हैं. कटिहार (Katihar) संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा पाल रखे भाजपा (BJP) नेताओं की स्थिति बहुत कुछ ऐसी ही थी. इस संसदीय क्षेत्र पर जदयू (JDU) काबिज है. दुलालचंद गोस्वामी (Dulalchand Goswami) उसके सांसद हैं. इस हिसाब से राजग (NDA) में स्वाभाविक दावा जदयू का बनता था. सीटों की अदला-बदली होने पर बात कुछ और होती. लेकिन, वैसा हुआ नहीं, सीट जदयू के ही हिस्से में रह ‌गयी. जदयू महागठबंधन में था तब राजग में कटिहार के भाजपा के हिस्से में रहने की प्रबल संभावना थी. उसी को दृष्टिगत रख चाहुक नेताओं ने चुनाव की प्रारंभिक तैयारी शुरू कर दी थी. पर, जदयू के राजग (NDA) में लौटते ही हालात पूरी तरह बदल गये. तब उन सब‌की आस संभावित अदला बदली पर अटक गयी. अदला बदली भी नहीं हुई.


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मुश्किल होता चयन करना
भाजपा के लिए बहुत अच्छा हुआ. नहीं तो अंतर्कलह गहरा जाता. दावेदार अनेक थे. परन्तु, अप्रत्यक्ष तौर पर जोर आजमाइश पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Tarkishor Prasad) और विधान‌ पार्षद अशोक अग्रवाल (Ashok Agrawal) के बीच‌ होती दिख रही थी. दोनों की दावेदारी के आधार इतने मजबूत थे कि उम्मीदवार उतारने का अवसर मिलने पर इनमें से किसी एक का चयन करना उसके लिए मुश्किल हो जाता. कटिहार से चार बार भाजपा के विधायक (MLA) निर्वाचित हुए तारकिशोर प्रसाद अपनी व्यवहार कुशलता और मृदुभाषी व मिलनसार स्वभाव को आधार बना दावेदारी पेश कर रहे थे. संसदीय चुनाव (Parliamentary Election) लड़ने की उनकी चाहत बहुत पुरानी है. राजग की नयी सरकार में मंत्री (Minister) नहीं बनाये जाने से उनकी उम्मीदवारी की‌ संभावना को बहुत मजबूत माना जा रहा था. तारकिशोर प्रसाद को उम्मीद थी कि अपने उपमुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने कटिहार में विकास के जो काम कराये हैं, उसका जनता पर काफी प्रभाव है. इसका लाभ उन्हें संसदीय चुनाव में मिल सकता था. सब खत्म हो गया.

अब क्या करेंगे अग्रवाल?
उधर कटिहार स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के विधान पार्षद अशोक अग्रवाल (Ashok Agrawal) ने संसदीय चुनाव में उतरने की पुरजोर तैयारी कर रखी थी. उनका दावा था कि कटिहार संसदीय क्षेत्र भाजपा (BJP) के कोटे में गया तो उम्मीदवारी उन्हें ही मिलेगी, किसी दूसरे को नहीं. अशोक अग्रवाल इस क्षेत्र से लगातार तीन बार विधान पार्षद निर्वाचित हुए हैं. उनकी पत्नी उषा अग्रवाल (Usha Agrawal) अभी कटिहार नगर निगम की महापौर हैं. इससे स्पष्ट है कि क्षेत्र में परिणाम के रुख को मोड़ने वाली उनकी पकड़ है. भाजपा की उम्मीदवारी तो अब नहीं मिल पायेगी. ऐसे में जिस अक्खड़ मन मिजाज के वह हैं उसमें उनकी नाउम्मीदी राजग की कब्र खोद दे, तो वह हैरान करने वाली बात नहीं होगी. लगभग ऐसी ही परिस्थितियों में‌ 2019 में‌ अशोक अग्रवाल निर्दलीय कूद गये‌ थे. भाजपा नेतृत्व को तो उन्होंने पीठ पर हाथ ही नहीं रखने दिया, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बमुश्किल मना पाये थे. इस बार क्या करते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

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