सफल होगी भाकपा नेता की यह कामना!
विनोद कर्ण
17 मार्च 2024
Begusarai : ‘अंतिम इच्छा’… मरने से पहले की कोई खास इच्छा! प्रायः हर इंसान की ऐसी कोई न कोई इच्छा होती ही है. डा. भोला सिंह (Dr. Bhola Singh) बेगूसराय के बड़े नेता थे. सांसद-विधायक, मंत्री, विधानसभा के उपाध्यक्ष – सब कुछ बने. इसके बावजूद उनकी एक इच्छा अधूरी रह गयी थी. बेगूसराय का सांसद बनने की इच्छा. नवादा से सांसद थे. उनकी ‘अंतिम इच्छा’ थी कि एक बार बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र (Begusarai Lok Sabha constituency) का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल जाये तो संसदीय जीवन सफल व सार्थक हो जायेगा. भाजपा नेतृत्व ने उनकी वह इच्छा पूरी कर दी. 2014 में बेगूसराय का सांसद बन गये, सुकून मिला.ऐसा कि बेगूसराय का सांसद रहते ही स्वर्ग सिधार गये. भाकपा (CPI) के बहुचर्चित वयोवृद्ध नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह (Shatrughan Prasad Singh) की भी ऐसी ही कुछ इच्छा है. उसे ‘अंतिम इच्छा’ कह सकते हैं.
खुद लगा रहे हैं जोर
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह एक बार बलिया (अब विलोपित) से भाकपा के सांसद रहे हैं. उसके बाद लाख कोशिशों के बावजूद बेगूसराय का सांसद नहीं बन पाये हैं. लोगबाग चर्चा करते हैं कि उनकी भी ‘अंतिम इच्छा’ बेगूसराय का सांसद बनने और डा. भोला सिंह की तरह अंतिम सांस तक जमे रहने की है. अभी मौका है, संभवतः यह आखिरी मौका ही होगा. इसका लाभ उठाने के लिए 82 वर्ष की आयु में भी वह अपने तई खूब जोर लगा रहे हैं. जोर इसलिए कुछ अधिक लगा रहे हैं कि इस बार चूक गये तो फिर अगले चुनाव यानी 2029 में इस लायक रहेंगे भी कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. यह तो रही उनकी अपनी कोशिश. भाजपा (B J P) नेतृत्व की तरह उनकी आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए भाकपा नेतृत्व पिघलता भी है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा.
ठोक रखी है दावेदारी
भाकपा बिहार में महागठबंधन (grand alliance) का घटक है. वैसे तो संसदीय चुनाव में इसका दावा तीन सीटों का है, पर सिर्फ एक बेगूसराय की सीट से ही इसे संतोष करना पड़ जा सकता है. मधुबनी (Madhubani) और बांका (Banka) के लिए जोर शायद ही चल पायेगा. बेगूसराय के लिए भाकपा में दावेदार अनेक हैं, पर विश्लेषकों को संसदीय चुनाव लड़ने का दमखम उम्र अधिक रहने के बावजूद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह में ही दिखता है, अन्य किसी में नहीं. प्रायः सभी दूसरे घटक दलों की आभासी ताकत के भरोसे कूदते नजर आ रहे हैं महागठबंधन में बेगूसराय की सीट भाकपा के कोटे में जाने की प्रबल संभावना के बीच राजद और कांग्रेस (Congress) ने भी अपनी दावेदारी ठोक रखी है. 2019 में भाकपा महागठबंधन का हिस्सा नहीं थी. राजद और भाकपा दोनों के उम्मीदवार मैदान में उतर गये . दोनों हार गये . भाकपा दूसरे और राजद तीसरे स्थान पर अटक गया था.
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संभावना तनिक भी नहीं
उस समय अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों वाले मुकाबले में भाजपा के गिरिराज सिंह से 04 लाख 31 हजार 217 मतों के विशाल अंतर से मुंह की खा गये बहुचर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) भाकपा के उम्मीदवार थे. वर्तमान में कांग्रेस के दमदार नेता हैं. पर, बेगूसराय से कांग्रेस की उम्मीदवारी मिलने की संभावना तनिक भी नहीं है. इसलिए भी नहीं कि कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी भाकपा को किसी भी सूरत में नहीं सुहायेगी. वैसे, 2019 की फजीहत को दृष्टिगत रख कन्हैया कुमार खुद भी इस क्षेत्र से चुनाव लड़ना नहीं चाहेंगे. जहां तक शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की बात है तो उनका लम्बा राजनीतिक जीवन रहा है. लम्बे समय तक वह बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे हैं.1996 में बलिया से सांसद निर्वाचित हुए थे. वर्तमान में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष हैं. बरौनी तेलशोधक कारखाना मज़दूर यूनियन (Barauni Refinery Workers Union) के भी अध्यक्ष हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि शिक्षकों की समस्याओं को लेकर वह हमेशा संघर्षरत रहते हैं.
आगे – आगे देखिये…!
सामान्य समझ है कि स्वच्छ एवं ईमानदार छवि के कारण पार्टी से इतर भी उनकी अपनी एक अलग पहचान है. बेगूसराय की राजनीति की गहन जानकारी रखने वालों की समझ है कि इस बार संसदीय चुनाव में उम्मीदवारी मिलने पर शत्रुघ्न प्रसाद सिंह अपनी ‘अंतिम इच्छा’ को भावनात्मक रूप दे मतदाताओं के इसबीच घूम जायेंगे तो फिर बड़ी आसानी से भाजपा के जनाधार में सेंध लग जा सकती है. वैसी स्थिति में परिणाम का रुख भी बदल जा सकता है. इसके बरक्स भाकपा का उम्मीदवार कोई दूसरा हुआ तो चुनाव की तस्वीर कुछ भिन्न हो जा सकती है. वैसे, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की राह निरापद है, ऐसी बात भी नहीं. उनकी बढ़ी उम्र को आधार बना संभावना समाप्त कराने वाले भी सक्रिय हैं. खूब सक्रिय हैं. आगे-आगे देखिये होता है क्या!
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