बेगूसराय : नहीं दिख रहा आसान, ढह न जाये गुमान !
आर. शिवकुमार
16 मई 2024
Begusarai : बेगूसराय में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है. गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) उसके प्रत्याशी हैं. भाजपा के लिए यह क्षेत्र कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि गिरिराज सिंह की जीत के लिए अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने की थी. समापन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने किया. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की चुनावी सभा हुई .केन्द्रीय मंत्री नितीन गडकरी (Nitin Gadkari) भी आये और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा (Himant Vishwa Sharma) भी. इतने बड़े-बड़े धुरंधरों के जोर लगाने के बाद भी संशय की स्थिति बनी हुई है. मतदान के बाद भी इत्मीनान नहीं है, तो आखिर क्यों?
इसलिए मिली उम्मीदवारी?
राजनीति ने महसूस किया कि मुंगेर (Munger) की तरह बेगूसराय में भी चुनाव (Election) के दौरान अगड़ा पिछड़ा की आग भड़काने की भरपूर कोशिश हुई. कहते हैं कि महागठबंधन के रणनीतिकारों ने इसी मकसद से गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) के खिलाफ पूर्व विधायक अवधेश राय (Awadhesh Ray) को भाकपा की उम्मीदवारी दिलवायी थी. अवधेश राय बेगूसराय जिला भाकपा के सचिव हैं. जीवन के आखिरी पड़ाव पर भी उम्मीदवारी की चाहत रखने वाले बुजुर्ग भाकपा नेता पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह (Shatrughan Prasad Singh) के खासमखास माने जाते हैं. उनकी उम्मीदवारी से शत्रुघ्न प्रसाद सिंह संतुष्ट हो गये. संतुष्टि इस रूप में भी मिली कि चुनाव अभियान की कमान संभालने का अवसर मिल गया.
असंतोष दिखा राजद में
अवधेश राय की उम्मीदवारी पर महागठबंधन (Mahagathbandhan) में कोई सवाल नहीं उठा. पर, राजद (RJD) में अंदरूनी असंतोष अवश्य दिखा. राजद कार्यकर्ताओं के एक तबके को पिछले चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार रहे तनवीर हसन (Tanvir Hasan) को एकबारगी हाशिये पर डाल देना नागवार गुजरा. हालांकि, इस असंतोष का महागठबंधन की चुनावी सेहत पर कोई असर नहीं दिखा. वैसे, राजनीतिक (Political) हलकों में चर्चा हुई कि राजद नेतृत्व ने जिस तरह 2019 में तनवीर हसन को मैदान में उतार तब के भाकपा उम्मीदवार कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) की हार और गिरिराज सिंह की जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया था, इस बार अवधेश राय को भाकपा का उम्मीदवार बनवा, करीब-करीब वैसा ही कुछ कर दिया है. इस चर्चा में सच्चाई कितनी है, कह नहीं सकते.
भाकपा ने नहीं किया
वैसे, इतिहास बताता है कि बेगूसराय में भूमिहार (Bhumihar) समाज से ही भाकपा के उम्मीदवार हुआ करते थे. पहली बार अवधेश राय के रूप में यादव (Yadav) समाज से उम्मीदवार उतारा गया . इसे चुनावी मुकाबले को अगड़ा पिछड़ा का रूप देने की पहल के तौर पर देखा-समझा गया. यहां यह समझ लेने की जरूरत है कि अवधेश राय की उम्मीदवारी के पीछे अगड़ा पिछड़ा करने-कराने की भाकपा की अपनी न कोई रणनीति थी और न उसने ऐसा कोई प्रयास किया. कहा जाता है कि राजद (RJD) ने उनकी उम्मीदवारी को अपने लिये अवसर बना लिया. लेकिन, लाख कोशिशों के बावजूद उसकी मंशा फलीभूत नहीं हो पायी. कह सकते हैं कि ‘जंगलराज’ का दर्द सीने में दबा रखे गैर यादव पिछड़ों और अत्यंत पिछडों ने फलीभूत नहीं होने दिया. मामला ‘माय’ में सिमट कर रह गया.
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भीतरघाती भूमिका
उससे बाहर निकला भी तो सिर्फ मल्लाहों को आकर्षित कर पाया. अन्य जातियों और वर्गों में कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. जहां तक मतदान (Voting) की बात है तो अवधेश राय को ‘माय’ का मुकम्मल समर्थन मिला. वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं-समर्थकों और महगठबंधन के अन्य घटक दलों के समर्थकों का साथ तो था ही, भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह से खार खाये एनडीए (NDA) समर्थकों की भीतरघाती भूमिका से भी कुछ न कुछ मजबूती मिली. मतों की संख्या की दृष्टि से निर्णायक की हैसियत रखने वाले सामाजिक समूहों में यादव और मुस्लिम अवधेश राय के लिए समर्पित नजर आये तो अपशब्दों से सिक्त शिकवा-शिकायतों को पुड़िया में बांध भूमिहार समेत सवर्ण समाज के तमाम लोग भी मतदान केंद्रों पर डटे दिखे.
अटूट रहा ‘लवकुश’
मतदान केंद्रों पर गहरी नजर रखने वालों के मुताबिक गैर यादव पिछड़ों में थोड़ा बहुत इधर-उधर को छोड़ कुशवाहा (Kushwaha) समाज लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के पिछड़ावाद से प्रभावित नहीं दिखा. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के ‘लवकुश’ को लगभग अटूट बनाये रखा. बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में धानुक समाज की बड़ी आबादी है. वामपंथी मिज़ाज के धानुक (Dhanuk) मतदाता महागठबंधन की ओर थे. अन्य नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार से प्रभावित नजर आये. वैसे, इस समाज के डा. रामबदन राय (Rambadan Ray) भी निर्दलीय उम्मीदवार थे, कितने मतों को आकर्षित कर पाये, उनके सिवा दूसरा कोई नहीं बता सकता.
महागठबंधन का साथ दिया
मल्लाहों में मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) की अच्छी पैठ दिखी. दूसरी तरफ पासवान (Paswan) बिरादरी पर चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पकड़ नहीं के बराबर नजर आयी. लोग कहते हैं कि अधिसंख्य ने महागठबंधन का साथ दिया. मल्लाहों को छोड़ अत्यंत पिछड़ा वर्ग और पासवानों को छोड़ दलित वर्ग में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के प्रति आकर्षण था. विशेष कर इन वर्गों की महिलाएं चमत्कृत थीं. अगड़ा पिछड़ा की कहीं कोई बात नहीं थी. टक्कर कांटे की है. परिणाम किसके पक्ष में जायेगा, दावे के साथ कोई नहीं कह सकता है. भाजपा (BJP) में इत्मीनान गायब रहने का यही बड़ा कारण है.
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