मुकेश सहनी : जनता पर भरोसा नहीं!
विशेष प्रतिनिधि
15 मई 2024
Patna : भरोसे का संकट एक तरफ का नहीं है. दोनों तरफ का है. गांव-घर के लोग आपसी बातचीत में यह कहते मिलेंगे कि भाई नेता (Leader) पर भरोसा मत कीजिये. वे क्या कहेंगे और क्या करेंगे, पता नहीं चलेगा. यह भरोसा का ही संकट है कि मतदान (Voting) के दिनों में लोग बूथ (Booth) पर जाने के बदले घर बैठना या ताश खेलना अधिक पसंद करते हैं. मामला दूसरी तरफ भी कुछ इसी तरह का है. नेताओं को भी जनता पर भरोसा नहीं रह गया है.
सबके लिए खुला था
ये जो अपने ‘सन आफ मल्लाह’ यानी मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) हैं, जनता पर भरोसा न हाेने के कारण लोकसभा (Loksabha) का चुनाव नहीं लड़े. दूसरों को लड़वा रहे हैं. खुद लड़ने का साहस नहीं जुटा पाये. सबको मालूम है कि उनका दरवाजा सबके लिए खुला था. इससे पहले वह खुद सभी दरवाजे पर ताकझांक कर आये थे. अंतिम में उसी दरवाजे में प्रवेश मिला, जहां उनके मुताबिक चार साल पहले के विधानसभा चुनाव में उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया गया था. महागठबंधन (Mahagathbandhan) के सूत्रों के मुताबिक छुरा घोंपने वालों के साथ बातचीत शुरू हुई तो आफर एक सीट का मिला. यह कहते हुए कि लीजिये, लड़ लीजिये. एमपी बनियेगा. केंद्र में अपनी सरकार बनेगी तो मंत्री (Minister) भी बन लीजियेगा.
अपनी शर्त रख दी
कहते हैं कि मुकेश सहनी एक सीट पर राजी नहीं हुए. बोले कि कम से कम पांच दे दीजिये. एक न पांच, सौदा तीन पर तय हुआ. पूर्वी चंपारण, गोपालगंज और झंझारपुर की सीटें इस शर्त के साथ दी गयी कि उम्मीदवारी कार्यकर्ता को ही देनी होगी. राजनीति (Politics) में लगभग अलग-थलग पड़ गये मुकेश सहनी ने मुख्य धारा में लौटने के ख्याल से शर्त मान ली. पर, खुद लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने की अपनी शर्त भी रख दी. यह कहते हुए कि अगले साल जब अपनी सरकार बनेगी, डिप्टी सीएम (Deputy CM) बना दीजियेगा. उधर से कहा गया – एवमस्तु.
तीसरा भी मिल गया
अब दूसरा चरण उम्मीदवारों की खोज का शुरू हुआ. उम्मीदवारी की पहली शर्त थी कि बंदा किसी पार्टी का हो, चुनाव लड़ने में हर दृष्टि से ‘सक्षम’ हो. दो सीटों के लिए ‘सक्षम-समर्थ’ उम्मीदवार आसानी से मिल गये. पूर्वी चंपारण के लिए डा. राजेश कुशवाहा (Dr. Rajesh Kushwaha) और गोपालगंज के लिए प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान (Chanchal Paswan). झंझारपुर के लिए खोज जारी रही. अंततः तीसरा उम्मीदवार भी मिल गया. झंझारपुर के लिए पूर्व विधायक गुलाब यादव (Gulab Yadav) के रूप में. लेकिन, बात बन नहीं पायी. जानकारों की मानें तो गुलाब यादव का नाम सुन राजद (RJD) नेतृत्व ने नाक-भौं सिकोड़ लिया. उम्मीदवारी पर वीटो लगा दिया.
कलंक भी नहीं लगेगा
बताया जाता है कि उस दरम्यान एक तजवीज यह आयी कि झंझारपुर से मुकेश सहनी खुद लड़ें. खुद नहीं लड़ सकते तो भाई को लड़ा दें. भाई को भी चुनाव लड़ने में दिक्कत है तो पत्नी को लड़ा दें. दो फायदा होगा. पहला यह कि परिवार में सीट रह जायेगी. दूसरा यह कलंक भी नहीं लगेगा कि अत्यंत पिछड़ों के कल्याण के लिए समर्पित उनकी पार्टी का कोई उम्मीदवार इस वर्ग का नहीं है. इसमें सच्चाई कितनी है यह नहीं कहा जा सकता, पर चर्चा कि मुकेश सहनी ने इस मुद्दे पर परिवार में विमर्श किया. खूब विमर्श किया. भाई और पत्नी दोनों तैयार नहीं हुए.
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मिल गयी उम्मीदवारी
मुकेश सहनी ने अपनी उम्मीदवारी पर भी गहन चिंतन किया. संभवतः अंतरात्मा से आवाज आयी कि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लगातार हार चुके हैं. इस चुनाव में हार की तिकड़ी लगी तो हम भी साथ नहीं देंगे. अंत में तय हुआ कि झंझारपुर (Jhanjharpur) में पहले के बदले दूसरे को उम्मीदवार बनाया जाये. गुलाब यादव को ना कह भाजपाई पृष्ठभूमि के लगभग उतने ही ‘सक्षम-समर्थ’ सुमन महासेठ (Suman Mahaseth) को अवसर उपलब्ध करा दिया गया. गुलाब यादव की ‘क्षतिपूर्ति’ करने की जिम्मेदारी के साथ उन्हें उम्मीदवारी दे दी गयी.
तब भी हैं मैदान में
उधर वीआईपी की उम्मीदवारी नहीं मिलने के बाद भी बसपा उम्मीदवार के तौर पर. गुलाब यादव (Gulab Yadav) मैदान में डटे हैं. झंझारपुर में मतदान तीसरे चरण में हो चुका है. गुलाब यादव जिस ‘हाथी’ (Elephant) पर सवार हैं उसने किसके मंसूबे को रौंद दिया है यह 04 जून 2024 को पता चल पायेगा. तब तक इंतजार कीजिये.
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