आ गये अच्छे दिन…? इतरायेगी फिर चूड़ी गली!
देवव्रत राय
14 मई 2024
Patna : कदमकुआं की चूड़ी गली… सामाजिक न्याय की राजनीति (Politics) के दौर में खूब इतराती थी यह गली. इतराने-इठलाने का कारण भी था. सत्ता की हनक ! इसी चूड़ी गली में तब की सरकार के ‘छाया मुख्यमंत्री’ डा. रंजन प्रसाद यादव (Dr. Ranjan Prasad Yadav) रहते थे. अपने पुश्तैनी मकान में. उनकी पहचान उस जमाने के अति शक्तिशाली मुख्यमंत्री लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के ‘सखा’ के रूप में स्थापित थी. वैसे, वह उनके खासमखास रणनीतिकार थे. राजद (RJD) के कार्यकारी अध्यक्ष तो थे ही, राजद संसदीय बोर्ड के भी अध्यक्ष थे. राज्यसभा के सदस्य भी. रुतबा उनका मुख्यमंत्री आवास (CM House) से लेकर चूड़ी गली तक पसरा था. ऐसे में गली का गुलजार रहना स्वाभाविक था.
लगता था दरबार
वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे उस कालखंड को इस रूप में याद करते हैं, डा. रंजन प्रसाद यादव के पटना में रहने पर हर सुबह और हर शाम वहां ‘दरबार’ लगता था. ‘रात्रिकालीन महफ़िल’ भी जमती थी. प्रायः हर वर्ग के खास-खास धुरंधरों का जुटान होता था. सियासत के अलावा शासनिक-प्रशासनिक, शैक्षणिक, चिकित्सा और पत्रकारिता के क्षेत्र के चुनिंदे लोग जमते थे. एक-दूसरे पर भरोसा इतना कि लालू प्रसाद ने अघोषित तौर पर उच्च शिक्षा की कमान उन्हें सौंप रखी थी. विश्वविद्यालयों के सामान्य शिक्षक से लेकर कुलपति तक ‘दंडवत’ की मुद्रा में हाजिरी बजाते थे. डा. रंजन प्रसाद यादव तब पटना विश्वविद्यालय में महज डिमोंस्ट्रेटर थे. इस बुनियाद पर इतना बड़ा रुतबा! लोग हैरान थे.
कहानी है काफी रोचक
बनाये नहीं लेकिन, इसे उनका दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इस अकल्पित रुतबे को लम्बे समय तक बनाये नहीं रख पाये. महत्वाकांक्षा ऐसी जगी कि रुतबा-रुआब ढहने और चूड़ी गली के सूना पड़ जाने का कारण बन गयी. ऐसा क्यों और कैसे हुआ इसकी बहुत रोचक कहानी है. अपने समय के चर्चित पत्रकार शिवकुमार राय (Shivkumar Ray) के मुताबिक हुआ यह कि बहुचर्चित चारा घोटाले में जेल जाने की नौबत आने पर लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री का पद त्याग दिया. सच या झूठ तब चर्चा खूब हुई थी कि डा. रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद की मुख्यमंत्री पद की विरासत पाने की भरपूर कोशिश की.
नहीं बिगाड़ पाये कुछ
लेकिन, इस मामले में लालू प्रसाद का विश्वास डा. रंजन प्रसाद यादव पर नहीं जमा. विरासत उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी (Rabri Devi) को सौंप दी. 25 जुलाई 1997 को राबड़ी देवी रसोई घर से उठ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गयीं. डा. रंजन प्रसाद यादव मुंह ताकते रह गये. राजद (RJd) के उस दौर के नेताओं की बातों पर विश्वास करें, तो लालू प्रसाद के जेल में रहने के दौरान भी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करने की कोशिश की गयी थी. लालू प्रसाद को भनक लगी तो उन्हें राजद से बाहर कर दिया गया. तब से लगातार 27 वर्षों तक वह लालू प्रसाद की राजनीति की जड़ में मट्ठा डालते रहे. एक बार संसदीय चुनाव में उन्हें हार का स्वाद चखाने के अलावा कुछ बिगाड़ नहीं पाये.
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खिल गयी मुस्कान
थक हार कर 09 मई 2024 को फिर से लालू प्रसाद के शरणागत हो गये. यानी राजद में लौट आये. उनकी ‘घर वापसी’ से चूड़ी गली में स्वाभाविक मुस्कान खिल गयी है. लम्बे अरसे बाद दिन बहुरने की आस जग गयी है. तो क्या वाकई राजद में उनके लौटने से चूड़ी गली के दिन फिर जायेंगे? पटना विश्वविद्यालय में डा. रंजन प्रसाद यादव के सहपाठी रहे वरिष्ठ पत्रकार महेश कुमार सिन्हा (Mahesh Kumar Sinha) की मानें तो वैसा अब संभव नहीं है. इसलिए कि ‘न वह देवी रही, न वह कड़ाह रहा’. परिवर्तित स्वरूप वाले राजद में डा. रंजन प्रसाद यादव का जिस हल्के-फुल्के अंदाज में स्वागत हुआ उससे कोई बड़ी हैसियत मिलने की संभावना नहीं बनती है.
रूतबा लौटा भी तो…
इसकी तस्दीक इससे भी होती है कि स्वागत करने वालों में लालू-राबड़ी परिवार का कोई चेहरा नहीं था. हालांकि, बाद में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से उनकी आत्मीय मुलाकात हुई. जहां तक चूड़ी गली की बात है, तो डा. रंजन प्रसाद यादव अब वहां नहीं, बेली रोड में आरपीएस मोड़ के समीप रंजन पथ में रहते हैं. राजद के सत्ता में आने पर देवयोग से उनका रुतबा लौटा भी तो उसकी चमक रंजन पथ में बिखरेगी. चूड़ी गली को अनुभूति भर ही हो पायेगी . उसके अलावा कुछ नहीं.
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