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जैसी बहे बयार… बदल गये वंशवाद पर!

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विष्णुकांत मिश्र

07 जुलाई 2024

Patna : प्रकृति का चक्र है कि वक्त बदलता है तो परिस्थितयां बदल जाती हैं. तदनुरूप आदमी भी बदल जाता है. उसके जज्बात बदल जाते हैं, आचरण बदल जाते हैं. कभी खुशी से तो कभी मजबूरी में, आदमी को बदलना पड़ता ही है. राजद (RJD) के ‘स्वाभिमानी’ समाजवादी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) को भी वक्त के अनुरूप बदलना पड़ गया. कैसे और किस रूप में, यहां उस पर प्रकाश डाला जा रहा है. आज से चौबीस साल पहले जगदानंद सिंह के व्यक्तित्व में राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) और कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) के आदर्शों की स्पष्ट झलक दिखती थी, अब घपले – घोटालों के अपवादों को छोड़़ लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के उसूलों से वह प्रभावित नजर आते हैं. खासकर राजनीति में परिवारवाद (Familism) पर उनकी अवधारणा लगभग उलट गयी है.

बदलाव ही बदलाव

चौबीस साल पहले का प्रसंग याद कीजिये और उसकी तुलना वर्तमान से कीजिये तो उनमें बदलाव ही बदलाव नजर आयेगा.प्रसंग विधानसभा चुनाव में रामगढ़ (Ramgarh) से राजद की उम्मीदवारी का है. रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र जगदानंद सिंह का मजबूत गढ़ रहा है.1985 से 2005 तक के छह चुनावों में उनकी लगातार जीत हुई थी. 2009 में वह बक्सर (Buxar) से सांसद निर्वाचित हो गये तब इस क्षेत्र की विरासत उन्होंने अपने पुत्र को नहीं, कर्पूरी ठाकुर के आदर्श का अनुसरण कर राजनीति के विश्वस्त सहयोगी अम्बिका सिंह यादव (Ambika Singh Yadav) को सौंप दी. तर्क यह कि पुत्र को अवसर उपलब्ध कराने से वंशवाद (Vanshavad) को बढ़ावा मिलेगा, सामान्य कार्यकर्ता निराश होंगे. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उनके बेटे को उम्मीदवारी देने का दबाव बनाया, पर कोई असर नहीं पड़ा.


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खूब सुर्खियां मिली थीं

सियासत पर छायी वंशवाद की बेल के बीच जगदानंद सिंह के इस आदर्श को राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियां मिलीं. कुछ लोगों ने इसे लालू प्रसाद पर कटाक्ष माना. जो हो, जगदानंद सिंह लम्बे समय तक इस पर कायम नहीं रह पाये. बीच के घटनाक्रम में सुधाकर सिंह (Sudhakar Singh) पिता से बगावत (Rebellion) कर 2010 के चुनाव में भाजपा (B J P) का उम्मीदवार (Candidate) बन गये. इसे अपनी शान से जोड़ जगदानंद सिंह ने रामगढ़ (Ramgarh) में लाठी गाड़ कर राजद प्रत्याशी अम्बिका सिंह को जीत दिलवा दी. राजनीति चकित रह गयी कि भाजपा का उम्मीदवार रहते सुधाकर सिंह 18 हजार 551 मतों में सिमट गये. उस हार के बाद लम्बे समय तक पिता और पुत्र के रास्ते अलग रहे. अम्बिका सिंह यादव 2009 के उपचुनाव और 2010 के चुनाव, दोनों में निर्वाचित हुए.

विडम्बना देखिये

2014 में जगदानंद सिंह बक्सर संसदीय क्षेत्र में पराजित हो गये. उस हार से परिस्थितियां पूरी तरह बदल गयी. 2015 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में सुधाकर सिंह को भाजपा की उम्मीदवारी नहीं मिली. उनकी जगह अशोक कुमार सिंह (Ashok Kumar Singh) को उम्मीदवार बनाया गया. अम्बिका सिंह यादव को उन्होंने चित कर दिया. विडम्बना देखिये,2009- 10 में जिस अम्बिका सिंह यादव के लिए जगदानंद सिंह ने वंशवाद का सिद्धांत बघारा था, 2020 में उन्हीं को हाशिये पर धकेल अपने उसी पुत्र को राजद की उम्मीदवारी दिलवा दी जिनकी महत्वाकांक्षा (Ambition) उस वक्त उफान खा रही थी. लोगों को हैरानी इस बात पर कुछ अधिक हुई कि ऐसा उन्होंने प्रदेश राजद का अध्यक्ष रहते किया. देर से ही सही, सुधाकर सिंह ने रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पिता की विरासत संभाल ली.

बदकिस्मती ही कहेंगे

2020 में राजद में उपेक्षित अम्बिका सिंह यादव बसपा (BSP) का उम्मीदवार बन गये. बदकिस्मती ऐसी कि 189 मतों के मामूली अंतर से मात खा गये. सुधाकर सिंह को 58 हजार 083 मत मिले तो अम्बिका सिंह यादव को 57 हजार 894 मत. वर्तमान में राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद की संतानों की तरह प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र भी राजनीति में सक्रिय हैं. विश्लेषकों की समझ में अभी की राजनीति का जो चरित्र है उसमें उनकी इस सक्रियता को किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं कहा जा सकता है. जगदानंद सिंह के चार पुत्र हैं. बड़े पुत्र दिवाकर सिंह सरकारी सेवा में हैं. उनके बाद वाले सुधाकर सिंह पिता की राजनीतिक विरासत (Political Legacy) संभाल रहे हैं. रामगढ़ से विधायक और मंत्री रहने के बाद बक्सर से राजद के सांसद निर्वाचित हुए हैं.

राजद की उम्मीदवारी तय

सुधाकर सिंह के ही विधानसभा की सदस्यता छोड़ने से रामगढ़ में उपचुनाव (By-election) होना है. जगदानंद सिंह के दो और पुत्र राजनीति में बेहतर मुकाम के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं. तीसरे पुत्र डा. पुनीत कुमार सिंह (Dr. Puneet Kumar Singh) गया स्नातक क्षेत्र से विधान परिषद का चुनाव लड़ चुके हैं. राजद उम्मीदवार के रूप में हार का मुंह देखना पड़ गया था. सबसे छोटे पुत्र अजीत कुमार सिंह (Ajit Kumar Singh) जदयू के प्रदेश महासचिव थे. लगभग डेढ़ माह पूर्व उससे अलग हो गये. रामगढ़ में उपचुनाव की स्थिति बनी, उम्मीदवारी की चाहत लिये लालू प्रसाद के जन्म दिन पर राजद में शामिल हो गये. उपचुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है. घोषित होती है तो अजीत कुमार सिंह को राजद की उम्मीदवारी (Candidacy) मिलेगी, इसे तय माना जा सकता है.

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