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झामुमो का चुनावी मंच : जोहार से ज्यादा गूंज रहा अस्सलाम वालेकुम!

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तापमान लाइव ब्यूरो

12 नवम्बर 2024

Ranchi : झारखंड (Jharkhand) का चुनावी परिदृश्य इस बार बहुत कुछ बदला-बदला सा दिखता है. बदलाव अनेक तरह के परिलक्षित हैं, पर राजनीति का ध्यान महागठबंधन (grand alliance), विशेष कर झामुमो (JMM) का चुनावी मंच खींच रहा है. हर कोई वाकिफ है कि झामुमो के शीर्ष नेताओं के चुनावी भाषणों की शुरुआत आमतौर पर ‘जोहार’ (Johar) से होती थी. पर, सभा मंच से ‘जोहार’ अब करीब- करीब गायब है. उसकी जगह ‘अस्सलाम वालेकुम’ (Asalam Valekum) ज्यादा गूंज रहा है.

कांग्रेस-राजद नेताओं के मुख से भी

अधिकतर नेताओं के मुख से ‘जोहार’ की जगह ‘अस्सलाम वालेकुम’ ही निकल रहा है. सिर्फ झामुमो के नेताओं के मुख से ही नहीं, कांग्रेस (Congress) और राजद (RJD) के नेता भी बड़ी संजीदगी से ‘अस्सलाम वालेकुम’ बोल रहे हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि इस ‘बदलाव’ पर किसी का ध्यान नहीं गया. नजर राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की गयी. ऐसा बदलाव क्यों हुआ, इसका खुलासा उन्होंने एक्स पर अपने पोस्ट में किया. दिलीप मंडल ने क्या कुछ कहा, उनके ही शब्दों में जानिये:

सवाल अनेक हैं

झारखंड मुक्ति मोर्चा के मंच से इस चुनाव में जोहार से ज्यादा ‘अस्सलाम वालेकुम’ सुनाई दे रहा है. पार्टी के टॉप नेता खुलेआम ये नारा लगा रहे हैं. ऐसा क्यों हुआ? झारखंड का 15 प्रतिशत वोट जेएमएम का सबसे टिकाऊ वोट बैंक कैसे बन गया? महतो और मंडल वगैरह कहां चले गये? आदिवासियों का एक बड़ा हिस्सा क्यों चला गया?

जमीन का झगड़ा

झारखंड आंदोलन के साथ मुस्लिमों के संबंध को इसी बात से समझिये कि इस आंदोलन के दौरान सबसे बड़ी हिंसा संथाल परगना के चिरूडीह (Chirudih) में हुई थी जिसमें मरने वाले मुसलमान (Muslim) थे. उस समय कांग्रेस झारखंड आंदोलन (Jharkhand Movement) का दमन करती थी और मुसलमान कांग्रेस के साथ थे. जमीन का झगड़ा जगह-जगह हो रहा था.

यह है शिकायत

चिरूडीह हिंसा में वारंट होने के कारण 21 जुलाई 2004 को शिबू सोरेन को मनमोहन कैबिनेट (manmohan cabinet) से निकाल दिया गया क्योंकि मनमोहन सरकार मुसलमानों को नाराज नहीं कर सकती थी. चिरूडीह में आदिवासियों (tribals) की मुख्य शिकायत आज भी यही है कि उनकी जमीन मुसलमानों द्वारा हड़प ली गयी. आदिवासी लड़की से शादी करके ये काम होता है.


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मांझी-महतो-मंडल समीकरण

दरअसल झारखंड मुक्ति मोर्चा विभिन्न समुदायों और जातियों का समूह था. 1984 में जब जेएमएम बना तो आगे चलकर इसके तीन खूंटे बने. शिबू सोरेन (Shibu Soren) , निर्मल महतो (Nirmal Mahato) और सूरज मंडल (Suraj Mandal) . निर्मल दा पार्टी अध्यक्ष थे. ये मांझी-महतो-मंडल समीकरण था. यही जेएमएम की आत्मा थी. मुसलमान उस समय कांग्रेस के साथ थे, जिसका झारखंड आंदोलन से टकराव था. कांग्रेस सोरेन समेत सभी झारखंड नेताओं को जेल भेज चुकी थी.

इसलिए बोल रहे हैं…

लेकिन, 1990 में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के साथ आते ही ये मांझी-महतो-मंडल समीकरण टूटने लगा. 15 प्रतिशत एकजुट मुस्लिम जुटने के बाद जेएमएम ने पहले मंडल और फिर कुर्मी और कुशवाहा को छोड़ दिया. आज जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी में इन जातियों का कोई महत्वपूर्ण नेता नहीं है. अब मुसलमान ही जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी का सबसे भरोसेमंद वोट बैंक है. इसलिए इसके नेता जोहार से ज्यादा ‘अस्सलाम वालेकुम’ बोल रहे हैं.

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