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तो इसलिए मंत्रियों को महत्व नहीं देते अफसर

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राजनीतिक विश्लेषक
26 अगस्त 2021

पटना. यह एक पूर्व मंत्री का दरबार है, जो कानून के बड़े जानकार भी हैं. आम आदमी अगर उनसे किसी कानूनी मसले पर राय ले तो उसके एवज में फीस लेते हैं. आदमी अपना है, वह खुद फुर्सत में हैं तो राय देने के बदले कोई रकम नहीं लेते हैं. चाय-काफी के साथ मुफ्त में अपनी राय देते हैं. कानून के क्षेत्र में उनका बड़ा नाम है. यश है. खूब धन भी है. इसलिए महत्वपूर्ण विभाग में मंत्री रहने के बावजूद कभी आरोप नहीं लगा. छुट्टी वाले दिन के उस दरबार का ऐच्छिक मगर विचारणीय विषय यह था कि राज्य सरकार के अफसर मंत्रियों को भाव क्यों नहीं देते हैं. एकाध को छोड़ दीजिये तो बाकी मंत्रियों के रोने का स्थायी विषय यही है कि विभाग के सबसे बड़े अफसर उनकी बातों को इस कान से भी नहीं सुनते हैं, जिसे सुनकर वे दूसरे कान से उड़ा सकें. ताकि अगले को पता चला कि एक कान से ही सही अफसर ने मंत्री की बात कम से कम सुनी तो सही. पिछली सरकार के एक मंत्री तो इस पीड़ा में दल से अलग हो गये कि विभाग के प्रधान सचिव पदभार ग्रहण करने के बाद उनके कक्ष या आवास पर जै रामजी कहने भी नहीं आये.

पूर्व मंत्री ने सूत्र में बता दिया कि अफसर किन मंत्रियों की बात सुनते हैं. उस पर अमल भी करते हैं. पहले नम्बर पर ऐसे मंत्री आते हैं, जिनके बारे में मार्केट में चर्चा रहती है कि साहब मतलब सुशासन बाबू से उनका करीबी रिश्ता है. रोज सुबह या शाम उनकी सुशासन बाबू से टेलीफोन पर बातचीत होती है या मुलाकात होती है. हालांकि, मंत्री चौधरीजी का पिछला कार्यकाल इस मामले में दुखदायी रहा. उनकी रोज सुशासन बाबू से मुलाकात होती है. दुखदायी यह कि वह जिन अधिकारी से त्रस्त थे, वह अधिकारी भी साहब के आवास के ही निवासी हैं. इसे अपवाद मान लिया जाये. बाकी मामलों में यह सूत्र पूरी तरह काम करता है. दूसरा यह कि मंत्री को फाइल पढकर टिप्पणी लिखने की सलाहियत हो, जिससे अफसर के मन में यह बात बैठ जाये कि हम इस मंत्री को चरा नहीं सकते हैं. बस, इन दो श्रेणी के अलावा किसी मंत्री की बात अफसर नहीं मानते. भले ही कोई मंत्री बड़े साहब के यहां जाकर फरियाद करें, फर्क नहीं पड़ता है. इसलिए कि साहब को मंत्रियों से अधिक अफसरों पर भरोसा है.

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