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तिलक मैदान से बाहर नहीं दिखती कहीं कांग्रेस

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अरविन्द कुमार झा
30 अगस्त 2021

मुजफ्फरपुर. 2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त बिजेन्द्र चौधरी और कांग्रेस ने जब एक दूसरे को ‘वरण’ किया था तब सिर्फ आम लोग ही नहीं, राजनीति भी चकित रह गयी थी. जिसकी राजनीति कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर टिकी हो उसका उसी पार्टी के समक्ष दंडवत की मुद्रा में समर्पण हैरान करने वाली बात तो थी ही.

हालांकि, मूल्यविहीन राजनीति के वर्तमान दौर में इसका कोई मायने-मतलब नहीं है. तब भी सिद्धांत की राजनीति का दंभ भरने वाले बिजेन्द्र चौधरी के लिए यह नैतिक पतन सरीखा है. कांग्रेस से उनका जुड़ाव किसी नीति या सिद्धांत के लिए नहीं हुआ. विशुद्ध रूप से यह स्वार्थ आधारित है. इसलिए न कांग्रेसी संस्कार में वह रच-बस पा रहे हैं और न कांग्रेस ही उन्हें आत्मसात कर पा रही है.

ऐसा बिजेन्द्र चौधरी के आचरणों से बार-बार प्रमाणित भी हो रहा है. गौर से देखियेगा, उनमें और उनके इर्द-गिर्द ऐसा कुछ नजर नहीं आयेगा जिससे लगे कि वह कांग्रेस के विधायक हैं. यहां तक कि उनके लेटर हेड में भी नहीं. उसमें ‘बिजेन्द्र चौधरी, नगर विधायक, मुजफ्फरपुर’ लिखा है. एक तरह से यह मान सकते हैं कि कांग्रेस के प्रति उनमें ‘लाल कपड़े’ जैसा भाव अब भी भरा ही हुआ है.

इसको इस रूप में भी समझिये, अपने वाहन में कांग्रेस का झंडा वह सिर्फ तिलक मैदान जाने के क्रम में ही लगाते हैं. वह भी जिला कांग्रेस कार्यालय परिसर में प्रवेश करते वक्त लगा लेते हैं और परिसर से बाहर निकलते-निकलते निकाल लेते हैं. आम लोगों की बात छोड़ दें, इन सब से मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस को भी ऐसा महसूस हो रहा है कि बिजेन्द्र चौधरी ने इसे एक पड़ाव भर मान रखा है. हकीकत में वैसा है भी. वह परिस्थितियों के कांग्रेसी हैं. पर, जब हैं और जब तक हैं, उन्हें कांग्रेसी दिखना चाहिए.

लेकिन, वह दूर-दूर ही रहते हैं. समय से विधिवत सूचना दिये जाने के बावजूद कांग्रेस के दलीय कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति नहीं के बराबर होती है. स्वतंत्रता दिवस, स्वाधीनता दिवस, गांधी जयंती आदि अवसरों पर भी वह नदारद रहते हैं. पार्टी का जिला मुख्यालय तिलक मैदान उनके दर्शन को तरसते रहता है. कभी-कभी ही उनका दरस हो पाता है. वह भी मरणी-हरणी संबंधित कार्यक्रमों में ही.

विश्लेषकों का मानना है कि बिजेन्द्र चौधरी के कांग्रेस से जुड़ाव का असर इस रूप में भी हुआ है कि पार्टी के जो अपने थे, 2020 के चुनाव में उन्हें (बिजेन्द्र चौधरी) उम्मीदवार बनाये जाने से पराये हो गये. दूसरी तरफ बिजेन्द्र चौधरी कांग्रेस से जुड़कर भी दूर-दूर हैं ही.

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