तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

यह ‘व्यथा-कथा’ है दो दिवंगत बड़े नेताओं के पुत्रों की …

शेयर करें:

अरविन्द कुमार झा
16 सितम्बर, 2021

Patna. यह ‘व्यथा-कथा’ है बिहार के दो धुरंधर दिवंगत नेताओं के पुत्रों की. समाजवादी धारा के कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) युग के सादगी पसंद शिष्ट व शालीन जननेता डा. रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghubansh Prasad Singh) के पुत्र सत्यप्रकाश सिंह (Satyaprakash Singh) और कांग्रेस के मजबूत स्तंभ रहे सदानंद सिंह (Sadanand Singh) के पुत्र शुभानंद मुकेश (Shubhanand Mukesh) की.

‘व्यथा-कथा’ शब्द पर इन दोनों को और उनके समर्थकों को आपत्ति हो सकती है, परन्तु राजनीति इसी नजरिये से इसे देख रही है. समाजवाद को समर्पित डा. रघुवंश प्रसाद सिंह ताउम्र राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के साथ रहे. संबंधों के इस लंबे काल के दौरान राज्य में कई तरह के राजनीतिक उतार-चढ़ाव हुए.

समाजवादी परछाई वाले दलों में बिखराव-जुड़ाव हुए. और भी कई तरह की बातें हुईं. हर परिस्थिति में डा. रघुवंश प्रसाद सिंह पूरी दृढ़ता के साथ उनके निष्ठावान बने रहे, कभी कदम डगमगाये नहीं. पर, जीवन के आखिरी पड़ाव पर लालू प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र तेजप्रताप यादव (Tejpratap Yadav) का उनके साथ जो निंदनीय-भर्त्सनीय व्यवहार हुआ, एक बार नहीं अनेक बार हुआ उससे उनकी आस्था खंडित हो गयी.

खासकर अस्पताल में इलाजरत रहने के दौरान किये गये तीखे कटाक्षों ने उनकी भावना को चोटिल कर दिया. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की ‘विवशता’ से भी वह काफी दुखी हुए. अवसाद के ऐसे ही क्षणों के बीच उनकी सांसें ठहर गयीं. उस दुखद हालात में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) द्वारा दिखायी गयी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हमदर्दी ने राजनीतिक विरासत संभालने उतरे डा. रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को जद(यू) की ओर मुखातिब कर दिया.

अश्विनी चौबे को सम्मानित करते सत्यप्रकाश सिंह.

बिहार विधानसभा का 2020 का चुनाव सामने था. चुनावी लाभ के लिए सत्यप्रकाश सिंह को आनन-फानन में जद(यू) की सदस्यता ग्रहण करा दी गयी. संभवतः इस आश्वासन के साथ कि विधानसभा चुनाव में संभावना भले नहीं बन रही हो, विधान परिषद में जगह जरूर उपलब्ध करा दी जायेगी.

विधानसभा का चुनाव संपन्न हो गया. नीतीश कुमार की सरकार फिर से सत्ता में आ गयी. पर, सत्यप्रकाश सिंह भुला दिये गये. विधानसभा चुनाव के बाद JDU नेतृत्व ने कई लोगों को विधान परिषद की सदस्यता दिलवायी. सत्यप्रकाश सिंह पर ध्यान नहीं गया. यहां तक कि सांगठनिक पदों के मामले में भी उनकी उपेक्षा कर दी गयी. किसी भी रूप में कोई महत्व नहीं मिला. लोगबाग इस पूरे प्रकरण को भूल गये. लेकिन, सत्यप्रकाश सिंह को सबकुछ याद रहा. इंतजार डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की प्रथम पुण्यतिथि का था.

सोमवार 13 सितम्बर 2021 को वह अवसर आ गया. सत्यप्रकाश सिंह ने प्रथम पुण्यतिथि पर मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) में वृहत श्रद्धांजलि सभा आयोजित किया. लोजपा को छोड़ करीब-करीब सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया.

Lojpa के नेताओं को शायद इसलिए आमंत्रित नहीं किया कि वैशाली की लोजपा सांसद वीणा देवी (Veena Devi) और उनके पति निवर्तमान विधान पार्षद दिनेश सिंह (Dinesh) के व्यवहारों से डा. रघुवंश प्रसाद सिंह को काफी कष्ट पहुंचा था. खासकर, वैशाली संसदीय क्षेत्र में वीणा देवी के उनके खिलाफ मैदान में उतर जाने से.

श्रद्धांजलि सभा के मुख्य आकर्षण राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) थे. जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh urf Lalan Singh) के भी आने का कार्यक्रम था. किसी कारणवश नहीं आ पाये. प्रदेश जद(यू) के अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) ने उनकी कमी पूरी की. भाजपा से केन्द्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे (Ashwini Chaube) और बिहार के भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री रामसूरत राय (Ramsurat Ray) आदि थे.

आयोजन में तेजस्वी प्रसाद यादव का एक व्यवहार वहां मौजूद लोगों को खल गया. केन्द्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे श्रद्धांजलि अर्पित करने खड़ा हुए ही थे कि बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव समारोह से उठकर चले गये. उनके इस आचरण को शिष्टाचार के प्रतिकूल माना गया. जो हो, इस आयोजन के जरिये सत्यप्रकाश सिंह ने राजनीति को अपनी अहमियत का अहसास तो करा ही दिया है.

सदानन्द सिंह और शुभानन्द मुकेश

उधर, Congress के दिग्गज नेता सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश को दुख पार्टी नेतृत्व के व्यवहार से है. यह कि सदानंद सिंह के दिल्ली में इलाजरत रहने के दौरान न तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कोई सुध ली और न उनके पुत्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ही.

बिहार कांग्रेस के इस बड़े नेता का कुशल क्षेम पूछने पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं गया. यहां तक कि मदद की मांग पर भी पार्टी नेतृत्व ने कोई ध्यान नहीं दिया. इसका उन्होंने सार्वजनिक इजहार भी किया. विश्लेषकों की समझ में यह पीड़ा शुभानंद मुकेश को जद(यू) की राह पकड़ा दे तो वह चौंकने-चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी.

अपनी राय दें