जदयू की राजनीति : खुर्शीद ने मचा दी सिकटा में खलबली
सुनील गुप्ता
07 नवम्बर 2024
Bettiah : खुर्शीद फिरोज अहमद जदयू (JDU) के नेता हैं. पश्चिम चम्पारण (West Champaran) जिले के सिकटा विधानसभा (Sikta Assembly) क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं. नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री भी रहे हैं. अल्पसंख्यक कल्याण एवं गन्ना विकास मंत्री. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के विश्वसनीय नेताओं में इनका भी नाम लिया जाता रहा है. सिकटा, मैनाटांड़ और नरकटियागंज की कुछ पंचायतों को मिला कर बना यह विधानसभा क्षेत्र भारत-नेपाल सीमा से सटा हुआ है. इस कारण इसका अपना कुछ अलग महत्व है. इस विधानसभा क्षेत्र की चर्चा अभी इसलिए कि खुर्शीद फिरोज अहमद (Khurshid Firoz Ahmed) ने नीतीश कुमार के नेतृत्व को ताउम्र शिरोधार्य रखने का संकल्प दुहराते हुए 2025 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ने की घोषणा की है. यानी जदयू में रहते हुए निर्दलीय लड़ेंगे! उनकी इस घोषणा ने सिकटा की ठहरी हुई राजनीति में भारी हलचल पैदा कर दी है.
धर्म के आधार पर होता है धु्रवीकरण
आम लोग चकित हैं कि जदयू में रहते निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा आखिर उन्होंने क्यों की है? यह कहते हुए कि अपने निर्णय से वह मुकरेंगे, तो उनकी पैदाइश में दोष होगा? इसका मतलब बिल्कुल साफ है कि उन्होंने जो कहा है उस पर अडिग रहेंगे. पहले खुर्शीद फिरोज अहमद की राजनीति की बात करते हैं. सिकटा मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. एक-दो अपवादों को छोड़ चुनावों में मतों का धु्रवीकरण धर्म के आधार पर होता है. गौर करने वाली बात यह भी कि शिकारपुर इस्टेट भी ध्रुवीकरण का एक कोण हुआ करता है. इसको इस रूप में आसानी से समझा जा सकता है.
छह बार दिलीप वर्मा जीते
आजादी के बाद 2020 तक यहां 18 चुनाव हुए. उनमें 09 चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवार की जीत हुई. शेष 09 में से 07 में शिकारपुर इस्टेट से जुड़े लोगों ने विजयश्री हासिल की. उनमें 05 बार अकेले दिलीप वर्मा जीते. फरवरी 2005 के चुनाव से अखाड़े में उतर रहे खुर्शीद फिरोज अहमद को सिर्फ दो बार कामयाबी मिली. नवंबर 2005 में कांग्रेस और 2015 में जदयू उम्मीदवार के तौर पर. 2015 में जदयू उम्मीदवार के रूप में जीत इस वजह से हो गयी कि तब वह महागठबंधन का हिस्सा था. जदयू के एनडीए में रहने के कारण 2010 और 2020 में उनकी हार हो गयी. ऐसा क्यों हुआ? खुर्शीद फिरोज अहमद बताते हैं कि उन चुनावों में उन्हें जीत हासिल करने लायक न भाजपा समर्थक हिन्दुओं का वोट मिला और न मुसलमानों का.
तीसरे स्थान पर लुढ़क गये खुर्शीद
सिकटा की चुनावी राजनीति की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इस क्षेत्र में पूर्व विधायक दिलीप वर्मा (Dleep Verma) का काफी मजबूत जनाधार है. होता यह है कि एनडीए (NDA) में उन्हें उम्मीदवारी नहीं मिलती है, तो वह निर्दलीय मैदान में कूद पड़ते हैं. इससे जदयू उम्मीदवार की खटिया खड़ी हो जाती है. 2020 में एनडीए में पूर्व की तरह जदयू की उम्मीदवारी खुर्शीद फिरोज अहमद को मिली. पूर्व की तरह दिलीप वर्मा निर्दलीय मैदान में उतर गये. खुर्शीद फिरोज अहमद तीसरे स्थान पर लुढ़क गये. 02 हजार 302 मतों के मामूली अंतर से बाजी महागठबंधन (Mahagathbandhan) के भाकपा-माले उम्मीदवार वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता के हाथ लग गयी.
हो गये चारो खाने चित
वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता को 49 हजार 075 मत मिले तो दिलीप वर्मा को 46 हजार 773 मत. खुर्शीद फिरोज अहमद 35 हजार 798 मतों में सिमट गये. दिलीप वर्मा और खुर्शीद फिरोज अहमद को मिले मतों का जोड़ 82 हजार 571 होता है. यानी निर्वाचित वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता को प्राप्त मतों से दुगुना से थोड़ा कम. ऐसा ही कुछ 2010 में हुआ था. खुर्शीद फिरोज अहमद को जदयू की उम्मीदवारी मिली थी. दिलीप वर्मा निर्दलीय लड़ गये. आशंका के अनुरूप खुर्शीद फिरोज अहमद चारो खाने चित्त हो गये. जीत दिलीप वर्मा की हुई.
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जनता की मांग पर किया फैसला
विश्लेषकों की समझ में 2025 में भी ऐसा ही कुछ होता. एनडीए में सीट जदयू के ही हिस्से में जाती. उम्मीदवारी खुर्शीद फिरोज अहमद को मिलती. दिलीप वर्मा निर्दलीय लड़ते. खुर्शीद फिरोज अहमद हार जाते. इसी हार से बचने के लिए ही खुर्शीद फिरोज अहमद ने निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया है. खुर्शीद फिरोज अहमद का कहना है कि सिकटा विधानसभा क्षेत्र की जनता की मांग पर उन्होंने यह फैसला लिया है. शक्ति प्रदर्शन के लिए उन्होंने 25 अक्तूबर 2024 को पुरुषोत्तमपुर से इनरवा के शाहपुर परसौनी तक रैली निकाली.
विरोधी बता रहे राजनीतिक नौटंकी
परसौनी में आयोजित जनसभा में ही निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की. इसी दौरान मैनाटांड़ के झुमका शेखरिया में उन्हें लड्डू से तौला गया. 2025 के विधानसभा चुनाव में खुर्शीद फिरोज अहमद के निर्दलीय लड़ने से फायदा या नुकसान किसका होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता. इसलिए कि चुनाव में अभी काफी वक्त है. वैसे, खुर्शीद फिरोज अहमद के विरोधी उनके उक्त निर्णय को राजनीतिक नौटंकी से ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं.
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