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बस, होने ही वाला है पालाबदल का बड़ा खेल!

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अशोक कुमार
21 जून, 2022

PURNEA : जोड़-तोड़ और दलबदल राजनीति के मूल तत्वों में समाहित हो गये हैं. परिणामस्वरूप इसका कोई मतलब नहीं रह गया है. बड़े नेताओं के ऐसे आचरण पर संबद्ध दलों में बेचैनी और आम लोगों को हैरानी अवश्य होती है. छोटे स्तर के नेताओं के पाला बदल को कोई नोटिस भी नहीं लेता है. इन दिनों सीमांचल (Simanchal) में एक संभावित बड़े दलबदल की खूब चर्चा है. अब यह सिर्फ शिगूफा है या इसमें सच्चाई भी है, दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. वैसे, इस आम धारणा को एकबारगी खारिज भी नहीं किया जा सकता कि जब कहीं धुआं उठता है तो कहीं न कहीं आग भी जरूर रहती है. मतलब कि बिना आग के धुआं नहीं उठता है.

इस वजह से अटका है मामला
दलबदल की बात ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के विधायकों को लेकर हो रही है. कहा जा रहा है कि इसके कुल जमा पांच विधायकों में से चार दल बदलने को बेताब हैं. समझ संभवतः यह कि भावनाओं के जिस उफान पर सवार हो विधायक (MLA) बन गये वह अब लगभग समाप्त हो गया है. राजनीति में हैसियत बनाये रखने के लिए ठोस ठांव तलाशना आवश्यक हो गया है. हालांकि, प्रत्यक्ष रूप में फिलहाल ऐसा कुछ परिलक्षित नहीं है. लेकिन, कुछ लोगों का कहना है कि RJD में जायें या JDU में, के सवाल पर दलबदल रूका हुआ है.

कांग्रेस और राजद पर भी है गिद्ध दृष्टि
टूटने-जुड़ने की बात सिर्फ AIMIM में ही नहीं हो रही है. 2024 के संसदीय चुनाव की बाबत खुद को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस (Congress) और राजद (RJD) के नेताओं पर भी राजनीति की गिद्ध दृष्टि जमी है. इन दोनों दलों में टूट आसान नहीं देख फिलहाल एआईएमआईएम को लक्षित किया जा रहा है. 2020 में अप्रत्याशित ढंग से एआईएमआईएम के पांच विधायक निर्वाचित हुए थे. बहादुरगंज (Bahadurganj) से अंजार नईमी, कोचाधामन (Kochadhaman) से इजहार असफी, बायसी (Bayasi) से रूकनुद्दीन अहमद, अमौर (Amaur) से अख्तरुल ईमान और जोकीहाट (Jokihat) से शाहनवाज आलम. उसकी इस सफलता से राजनीति चौंक गयी थी.

ढीले पड़ गये हैं तेवर
एआईएमआईएम को यह उपलब्धि मुस्लिम (Muslim) मुद्दों पर मुखरता की वजह से हासिल हुई थी. उन मुद्दों में तीन तलाक से लेकर नागरिकता कानून तक, सब कुछ शामिल था. मुद्दे अब भी हैं, पर तेवर कुछ ढीले पड़ गये हैं. संभावित दलदबदल का आधार इसे ही माना जा रहा है. अख्तरुल ईमान (Akhtarul Iman) एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं. बिहार (Bihar) में पार्टी को पांव जमाने का आधार इन्होंने ही प्रदान किया था. सच यह भी है कि इन्हें भी नयी पहचान इसी पार्टी से मिली है. पार्टी सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के प्रति अब भी निष्ठावान हैं. इसलिए उनके दल बदलने की बात नहीं होती. शेष चार विधायकों को लेकर चर्चाएं उठती हैं और दब भी जाती हैं.

बताते हैं राजनीतिक शिगूफा
अख्तरुल ईमान एवं अन्य विधायक दलबदल की किसी भी संभावना से साफ इनकार करते हैं. महज शिगूफा मानते हैं. अख्तरुल ईमान का कहना है कि यह राजनीतिक दुष्प्रचार है, एआईएमआईएम की राजनीति को दबाने का प्रयास है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने एआईएमआईएम के कब्जे वाली सीटों पर नजर जमा रखी है. लेकिन, किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला है. दूसरी तरफ विश्लेषकों का मानना है कि दलबदल अभी हो या 2024 के संसदीय चुनाव के वक्त, इसे होना है. अभी राजद में जायें या जदयू में, इस पर मतैक्य नहीं बन पाने के कारण मामला ठहरा हुआ है. जानकारों के मुताबिक ये चारो विधायक दल बदलने के लिए संभवतः तैयार हैं. चार की संख्या में हैं, इसलिए पांच सदस्यीय विधायक दल में दलबदल के लिए दो तिहाई की अनिवार्यता स्वतः हासिल है.


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राजद और जदयू दोनों की है नजर
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि विधायकों की संख्या बढ़ाने के लिए RJD और JDU दोनों उन पर डोरे डाल रहे हैं. हो सकता है कि इन बातों में कोई दम नहीं हो, आधारहीन हो, पर ऐसा कहा जाता है कि रूकनुद्दीन अहमद (Rukanuddin Ahmad) और शाहनवाज आलम (Shahnawaz Alam) का जदयू के प्रति झुकाव है तो अंजार नईमी (Anjar Naimi) और इजहार असफी (Ijhar Asfi) को राजद से लगाव है. रूकनुद्दीन अहमद तो कम, शाहनवाज आलम किसी भी सूरत में राजद से जुड़ने के पक्ष में नहीं हैं. इसका कारण भी है. 2020 के चुनाव में सीटिंग रहने के बावजूद राजद नेतृत्व ने उनकी उपेक्षा कर उनके भाई पूर्व सांसद सरफराज आलम (Sarfaraj Alam) को जोकीहाट से उम्मीदवार बना दिया था. यह उन्हें अब भी साल रहा है. शाहनवाज आलम उसको भूल जायें तो राजद में इन चारो का शानदार स्वागत हो जा सकता है.

जदयू फेंक रहा मंत्रिपद का चारा
इसी तरह इनके लिए जदयू ने भी पलक पांवरे बिछा रखे है. लेकिन, सवाल यहां यह है कि इन दोनों में से जिस किसी भी दल में शामिल होते हैं तो उन्हें हासिल क्या होगा? ‘माय’ छिन्न-भिन्न है. लाख कोशिशों के बावजूद जदयू का जिताऊ जनाधार नहीं बन पाया है. मंत्री-पद के लोभ में पड़ जायें तो वह अलग बात होगी, जदयू के भाजपा से जुड़े रहने की स्थिति में उनके पांव शायद ही उस ओर बढ़ पायेंगे. वैसे, नुपूर शर्मा (Nupur Sharma) प्रकरण पर असदुद्दीन ओवैसी के तेवर इनके पांव रोक दे तो वह अचरज की बात नहीं होगी.

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