मधेपुरा वीडियो प्रकरण : डीआईजी पर भारी पड़ गये डीएसपी?
मधेपुरा के बहुचर्चित वीडियो प्रकरण ने हर समझदार को झकझोर दिया था. लोग हैरान रह गये कि ऐसा पुलिस महकमे में भी होता है! हैरानी इस बात पर भी हुई कि सरकार और पुलिस मुख्यालय ने महकमे को शर्मसार करनेवाले इस मामले में गंभीरता नहीं दिखायी. ऐसा क्यों? चार किस्तों के इस आलेख में इसी ‘क्यों’ की पड़ताल की गयी है. प्रस्तुत है तीसरा अंश :
शिवकुमार राय
20 अप्रैल, 2023
MADHEPURA : कोशी प्रक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक शिवदीप लांडे (Shivdeep Lande) ने मोबाइल फोन की चोरी को लापरवाही और अनुशासनहीनता मान अमरकांत चौबे (Amarkant Chaubey) के निलंबन की सिफारिश कर दी. निलंबन की सिफारिश सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजय नारायण यादव (Ajay Narayan Yadav) की भी हुई. आरोप अमरकांत चौबे से संबंधित वीडियो वायरल करा पुलिस की छवि धूमिल करने-कराने का लगा. दोनों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की भी अनुशंसा की गयी. पर, उस अनुशंसा को पुलिस मुख्यालय ने कोई महत्व नहीं दिया. इसके बरक्स पुलिस उपमहानिरीक्षक पर ही कथित रूप से रिपोर्ट (Report) कमजोर बनाने का दबाव दिया गया, जिसे उन्होंने नकार दिया. बिहार में विधि-व्यवस्था की स्थिति बदतर क्यों बनी रहती है, इससे आसानी से समझा जा सकता है. पुलिस उपमहानिरीक्षक शिवदीप लांडे ने दोनों के निलंबन और विभागीय कार्रवाई चलाने की अनुशंसा ऐसे नहीं की थी. इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए सुपौल (Supaul) के तब के पुलिस अधीक्षक डी अमरकेश (D Amarkesh)के नेतृत्व में चार सदस्यीय समिति बनायी थी. उसमें सहरसा (Saharsa) के पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) एजाज हाफिज मणि, मधेपुरा के अंचल पुलिस निरीक्षक प्रशांत कुमार और सहरसा की महिला थानाध्यक्ष प्रेमलता भूपाश्री को रखा गया था.
जांच समिति ने पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) अमरकांत चौबे के आवास पर कॉल गर्ल बुलाये जाने के आरोप को सही नहीं पाया. यह कह उसने उसे बेबुनियाद बताया कि किसी भी रूप में ऐसा कोई साक्ष्य-सबूत नहीं मिला. जांच में यह बात सामने आयी कि वीडियो वायरल कराने में मधेपुरा के सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजय नारायण यादव की भी भूमिका थी.
आरोप का आधार नहीं मिला
जांच समिति ने पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) अमरकांत चौबे के आवास पर कॉल गर्ल बुलाये जाने के आरोप को सही नहीं पाया. यह कह उसने उसे बेबुनियाद बताया कि किसी भी रूप में ऐसा कोई साक्ष्य-सबूत नहीं मिला. जांच में यह बात सामने आयी कि वीडियो (Video) वायरल कराने में मधेपुरा के सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजय नारायण यादव की भी भूमिका थी. वीडियो कैसे बना, इसकी भी रोचक कथा है. वीडियो 30 अगस्त 2022 को सहरसा सदर थाने में बनाया गया. उस दिन न आरक्षी अधीक्षक जिला मुख्यालय में थे और न प्रभार संभाल रहे आरक्षी उपाधीक्षक (मुख्यालय) ही. उस दिन एक मामले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) में तलब किया गया था. आरक्षी अधीक्षक राजेश कुमार (Rajesh Kumar) अवकाश पर थे. प्रभार संभाल रहे आरक्षी उपाधीक्षक (मुख्यालय) अमरकांत चौबे (Amarkant Chaubey) जिलाधिकारी श्याम बिहारी मीणा (Shyam Bihari Meena) के साथ पटना गये हुए थे.
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दो दिन लग गये
आरक्षी अधीक्षक का मोबाइल फोन वह सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजय नारायण यादव (Ajay Narayan Yadav) को सौंप गये थे. बताया जाता है कि तब तक संभवतः किसी को भी आरक्षी अधीक्षक के मोबाइल (Mobile) फोन की चोरी की भनक नहीं थी. 01 सितम्बर 2022 को मीडिया के कुछ खास लोगों को जानकारी मिली. यूं कहें कि जानकारी उपलब्ध करायी गयी. उन मीडिया कर्मियों को साहस जुटाने तथा सूत्र और सच तलाशने में दो दिन लग गये. 03 सितम्बर को विवादित वीडियो (Video) वायरल हुआ. वीडियो बनाने-बनवाने में अजय नारायण यादव की भी भूमिका थी, इसका कोई प्रमाण नहीं है. लेकिन, वीडियो वायरल कराने में वह सक्रिय रहे. ऐसा जांच समिति की रिपोर्ट में वर्णित है.
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