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पुनौरा धाम : उठ जाता है बेमतलब का विवाद

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29 अप्रैल 2023 को है जानकी नवमी. यानी सीता नवमी. इस अवसर पर सीता प्राकट्य स्थल पवित्र पुनौरा धाम में परंपरा के अनुरूप सात दिवसीय भव्य जानकी उत्सव आयोजित होगा. तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य की रामकथा होगी. अन्य बड़े-बड़े लोग भी शिरकत करेंगे. पर, पुनौराधाम के हालात सुधारने की चिंता शायद ही किसी को होगी. इस धाम की धार्मिकता, पवित्रता, ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता पर आधारित आलेख की यह दूसरी किस्त है:


महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
23 अप्रैल, 2023

SITAMARHI : सीतामढ़ी-शिवहर पथ में सीतामढ़ी से लगभग पांच किलोमीटर उत्तर बसा है पुनौरा गांव (Punaura Village). भारत-नेपाल सीमा वहां से ज्यादा दूर नहीं है. त्रेता युगीन मिथिला (Mithila) का राजनगर (राजधानी) जनकपुर (Janakpur) अब नेपाल (Nepal) अधिराज्य में है. सीतामढ़ी से उसकी दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है. रामायण का गहरा ज्ञान रखने वालों के मुताबिक वृहद विष्णु पुराण में सीता प्राकट्य स्थल के जनकपुर से तीन योजन यानी 24 मील (39 किलो मीटर) दूर रहने की बात कही गयी है. इस दूरी को प्राकट्य स्थल की प्रामाणिकता का एक आधार माना जाता है. सीतामढ़ी लखनदेई नदी के तट पर बसा है. लखनदेई (Lakhandei) का पौराणिक नाम लक्ष्मणा है. धार्मिक पुस्तकों में वर्णित तथ्यों व जनश्रुतियों के मुताबिक उस कालखंड में मिथिला में जब अकाल पड़ा था तब प्रजा को उससे त्राण दिलाने के लिए ऋषि-मुनियों और पंडित-पुरोहितों के परामर्श पर राजा जनक ने मिथिला के पश्चिम भाग में स्थित इसी लक्ष्मणा नदी के तट पर ‘हलेष्टि यज्ञ’ का अनुष्ठान किया था, हल चलाया था. वहीं पुनौरा गांव है जहां बाल्य रूप में माता जानकी (Mata Janaki) अवतरित हुईं थीं. हल जोतने के समय जो डडीर (लकीर) बनती है उसे स्थानीय भाषा में सीत कहते हैं. कहीं-कहीं हल के फार को भी सीत कहा जाता है. सीत से जन्म हुआ इसलिए राजा जनक (Raja Janak) ने बालिका का नाम सीता रख दिया.


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पुण्यारण्य से पुनौरा
पुनौरा को जगत जननी सीता की प्राकट्य भूमि मानने वालों का पौराणिक दृष्टांतों पर आधारित ठोस तर्क है. उनके मुताबिक हिन्दू धर्म ग्रंथों में यह पुण्डरीक ऋषि (Pundarik Rishi) के आश्रम के रूप में वर्णित है. इस क्षेत्र को पहले पुण्यारण्य कहा जाता था. बाद में पुण्यरसा फिर पुण्यउर्परा और पुण्य रैन कहा जाने लगा. वर्तमान में यह पुनौरा के रूप में चर्चित है. सीतामढ़ी के जानकी स्थान (Janaki Sthan) की तरह वहां भी मंदिर है. मंदिर के बगल में सीताकुंड (Sita Kund) है, जो उर्विजा कुंड के रूप में ख्यात है. तकरीबन दो सौ साल पूर्व जीर्णोद्धार के क्रम में इसी कुंड से प्राप्त मूर्ति मुख्य मंदिर में स्थापित है. वहां मिथिला महाराज शीरध्वज जनक की हल चलाती प्रतिमा और सद्यःजाता सीता की बालरूप मूर्ति भी स्थापित है. खासियत यह कि वहां विशाल पिंडी के साथ जानकी मंदिर है. जानकारों के मुताबिक मां सीता (Maa Sita) के पिंडी स्वरूप की पूजा सिर्फ इसी जगह की जाती है. इस आधार पर सनातन धर्मावलंबियों में इसे धाम की मान्यता मिली हुई है-पुनौरा धाम. सीतामढ़ी के संदर्भ में व्याख्या है कि सीता के प्रकट होने के वक्त हुई भारी वर्षा से बचने के लिए राजा जनक ने एक मड़ई में विश्राम किया था. इस आधार पर उस जगह का नाम सीतामड़ई पड़ा, जो कालांतर में सीतामढ़ी (Sitamarhi) में परिवर्तित हो गया. सीतामढ़ी में जानकी (Janaki) स्थान के रूप में चर्चित उस स्थल पर ही जानकी मंदिर है.

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