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पुनौरा धाम : सीता का दुर्भाग्य नहीं छोड़ रहा साथ!

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29 अप्रैल 2023 को है जानकी नवमी. यानी सीता नवमी. इस अवसर पर सीता प्राकट्य स्थल पवित्र पुनौरा धाम में परंपरा के अनुरूप भव्य जानकी उत्सव आयोजित हो रहा है. तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य की रामकथा भी.  पुनौरा धाम की धार्मिकता, पवित्रता, ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता पर आधारित आलेख की यह तीसरी किस्त है:


महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
24 अप्रैल, 2023

SITAMARHI : अयोध्या की राम जन्मभूमि की तरह सीता की यह प्राकट्य भूमि भी करीब चार सौ वर्षों से विवादों में घिरी है. मुख्यतः इस रूप में कि कुछ इतिहासकार सीतामढ़ी को जनक नंदिनी सीता (Sita) की जन्मभूमि मानते हैं, तो कुछ पुनौरा गांव (Punaura Village) को. पर, स्थापित मान्यता यही है कि मां सीता पुनौरा की पवित्र भूमि से ही प्रकट हुई थीं. 2011 में जानकी नवमी (Janaki Navami) पर सीतामढ़ी पहुंचे चित्रकूट (Chitrakut) के श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य (Swami Rambhadracharya) ने भी पुराणों का उल्लेख करते हुए कहा कि मां जानकी पुनौरा धाम में ही अवतरित हुई थीं. शासन-प्रशासन का भी ऐसा ही कुछ मानना है. वैसे, जानकी प्राकट्य स्थल को लेकर अंग्रेजों के जमाने से ही विवाद चला आ रहा है. सीतामढ़ी शहर के जानकी स्थान (Janaki Sthan) और पुनौरा गांव के पुनौरा धाम, दोनों ही जगह जानकी मंदिर है, उर्वजा कुंड भी. जानकी स्थान के महंत विनोद दास की मानें तो जानकी स्थान के मां सीता के प्राकट्य स्थल होने के उनके पास पर्याप्त प्रमाण और सबूत हैं. उनके मुताबिक पहले गुरु-शिष्य परंपरा थी. गुरु के गुजर जाने के बाद शिष्य को महंती मिलती थी.

पुण्डरीक ऋषि के मठ में है जानकी मंदिर
एक महंत के परलोक सिधार जाने के बाद महंती को लेकर उनके दो शिष्यों में विवाद खड़ा हो गया. दबंग जाति विशेष के दोनों शिष्य महंत होने का दावा करने लगे. स्थानीय साधु-संतों की मध्यस्थता व्यर्थ रही. तब मामला अदालत (Court) में पहुंच गया. महंत विनोद दास (Vinod Das) का कहना है कि लंदन (London) की प्रीवी काउंसिल ने जानकी स्थान को ही सीता प्राकट्य स्थल माना. उसके बाद अदालत में मात खा गये शिष्य ने पुण्डरीक ऋषि (Pundarik Rishi) के पुनौरा स्थित मठ में जानकी मंदिर बना लिया. वही पुनौरा मठ कालांतर में पुनौरा धाम बन गया. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि 19 वीं शताब्दी में बिरला उद्योग समूह ने जानकी स्थान मंदिर के जीर्णोद्धार की इच्छा जतायी. तत्कालीन महंत ने वैसा नहीं होने दिया. संभवतः इस आशंका में कि जीर्णोद्धार के बाद उसका नाम बिरला मंदिर (Birla Mandir) पड़ जायेगा. जानकी स्थान में निराशा मिलने पर बिरला उद्योग समूह ने पुनौरा धाम स्थित जानकी मंदिर का जीर्णोद्धार करा दिया. उसी दौरान उर्वजा कुंड (Urvaja Kund) की खुदाई में राम-जानकी (Ram-Janaki) की प्रतिमा मिली जिसे तब के महंत हीराराम दास (Hiraram Das) ने मुख्य मंदिर में स्थापित कर दिया.


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कृषि सभ्यता का विशिष्ट इतिहास
विवाद अपनी जगह है, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर है कि मां जानकी (Maa Janaki) और उनकी जन्मभूमि उपेक्षित है. इससे उसकी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पहचान लुप्त हो रही है, महत्व भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. गौर करने वाली बात यह भी है कि इस भूमि का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि यह कृषि सभ्यता का विशिष्ट इतिहास (History) भी संजोये हुए है. आम भावना है कि सीता की जन्म भूमि पुनौरा को देश के धार्मिक एवं सांस्कृतिक मानचित्र पर वही स्थान होना चाहिये जो अयोध्या (Ayodhaya) का है. आस्था आधारित यह मांग बिल्कुल जायज है. पर, इस ओर किसी सक्षम प्राधिकार का ध्यान नहीं है. बिहार सरकार (Bihar Government) ने कुछ वर्ष पूर्व विकास की बाबत कुछ पहल अवश्य की थी. उसकी कुछ झलक दिखी भी. परन्तु, अंततः वह भी सब्जबाग में सिमट गयी. इससे इस धारणा को मजबूती मिली कि सीता का दुर्भाग्य आज भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है.

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