रहस्य : क्या है चांद के अंधेरे हिस्से में?
तापमान लाइव ब्यूरो
09 मई 2023
PATNA : बात 9 अक्तूबर 2009 की है. दो टन वजन वाला एक रॉकेट 09 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चांद (Moon) की सतह से टकराया. आग इतनी निकली कि चांद की सतह सैकड़ों डिग्री सेल्सियस गर्म हो गयी. थोड़ी देर के लिए ही सही, सतह पर एक काले गहरे क्रेटेर यानी गड्ढे से ढेर सारी सफेद रोशनी निकलती दिखी. इस क्रेटर (Crater) का नाम है कैबियस. रॉकेट का टकराना कोई हादसा नहीं था. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने लूनर क्रेटर आब्जर्वेशन एण्ड सैंसिंग सेटेलाइट मिशन को जान-बूझकर चांद की सतह से टकराया था. ताकि यह पता कर सके कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से से रॉकेट के टकराने से क्या निकलता है? किस तरह की धूल या धुंआ बाहर आता है?
चांद पर दिखा पानी
नासा का ही एक दूसरा अंतरिक्ष यान रॉकेट (Rocket) के पीछे था. टक्कर के समय की तस्वीरें उतारने के लिए. इसके अलावा नासा का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर दूर से जायजा ले रहा था. बाद में जब वैज्ञानिकों ने दोनों ही अंतरिक्ष यानों की तस्वीरें देखी तो वे हैरान रह गये. उन्हें चांद की सतह पर रॉकेट की टक्कर से उठी धूल में 155 किलोग्राम पानी (Water) का भाप दिखा. वह पहला अवसर था जब चांद पर पानी दिखाई दिया था. नासा के अमेश रिसर्च सेंटर में एलक्रॉस के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर एंथनी कोलाप्रेट (Anthony Colaprete) के मुताबिक यह एक अद्भूत नजारा था. तस्वीरों को कई बार जांचा गया. हर बार एक ही नतीजा सामने आया.
बर्फ रहने की भी संभावना
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट मार्क्स रॉबिन्सन (Marx Robinson) का कहना रहा कि यह सच है कि चांद पर पानी का कोई स्रोत या संग्रह नहीं है. वहां वायुमंडल नहीं है. पर्यावरण बेहद एक्सट्रीम है. कहीं से भी पानी के बनने और टिकने का कोई आधार नहीं है. हालांकि, 25 साल पहले जब एक अंतरिक्ष यान ने चांद के ध्रुवों पर हाइड्रोजन की खोज की थी, तब यह भी संभावना जतायी गयी थी कि वहां बर्फ जमी हो सकती है. एलक्रॉस ने इस थ्योरी को प्रमाणित कर दिया.
छह लाख किलोग्राम पानी
जर्मनी स्थित मैक्स प्लैंक इन्स्टीच्यूट ऑफ सोलर सिस्टम रिसर्च के साइंटिस वैलेंटीन बिकेल के अनुसार पूरी जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि चांद पर छह लाख किलोग्राम पानी मौजूद है. इनमें से ज्यादातर हिस्सा चांद के दोनों ध्रुवों के उस भाग में है जो हमेशा अंधेरे में रहता है. इसे परमानेंटली शैडोड रीजन्स कहते हैं. वहां पर कैबियस जैसे क्रेटर्स हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती. वे हमेशा अंधेरे में रहते हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेट्री की प्लैनटरी सांइटिस्ट पार्वती प्रेम ने बताया कि कुछ परमानेंटली शैडोड रीजन्स तो प्लूटो से भी ठंडे हैं.
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रोबोट भेजने की तैयारी
इसका मतलब यह कि वहां पर बर्फ जरूर होगी. ये जिस इलाके में हैं वहां इनके पिघलने की संभावना बेहद कम है. ऐसे में यह हो सकता है कि इनके अंदर जो बर्फ मौजूद है, वह करोड़ों सालों से वैसी की वैसी ही पड़ी हो. यह भी संभव है कि यहीं से धरती पर पानी के बहने का कोई कनेक्शन हो. इस बीच नासा 2023 में चांद के इन परमानेंटली शैडोड रीजन्स की जांच करने के लिए रोबोट भेजने की तैयारी में है. ये रोबोटिक व्हीकल इन क्रेटर्स में जाकर वहां की परिस्थितियों की जांच करेंगे. पता करेंगे कि क्या सच में वहां इतनी बर्फ है.
परछाइयों में परछाइयां
इस दशक के अंत तक नासा चांद पर इंसानों को भेजने की तैयारी में जुटा है. क्योंकि चांद के अंधेरे हिस्से में क्या है यह किसी को नहीं मालूम. यह एक बड़ा रहस्य है जिसका खुलासा करने के लिए वैज्ञानिक एकजुट हो रहे हैं. एरिजोना यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट स्टूडेंट पैट्रिक ओब्रायन (Patrick O’Brien) का कहना रहा कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से में परछाइयों में परछाइयां मौजूद हैं. अंधेरा इतना है कि वहां प्राचीन बर्फ मिल सकती है. तापमान माइनस 250 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. इसलिए उस इलाके का पता लगाना बहुत जरूरी है कि क्या कभी वहां के इन स्रोतों का उपयोग इंसान अपने किसी अभियान में कर सकता है या नहीं.
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