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तो यह अंतर है लालू प्रसाद और नीतीश कुमार में!

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विशेष प्रतिनिधि
14 मई 2023

PATNA : नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के व्यक्तित्व में ढेर सारे अंतर हैं. दोनों को लंबे समय से जानने वाले लोग इनके बारे में कई बातें बताते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि लालू प्रसाद (Lalu Prasad) को याद नहीं रहता है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भूलते नहीं हैं. अब याद रखने और भूलने की अलग-अलग व्याख्या है. लालू प्रसाद को यह याद रहता है कि किसने कब और कितना अहसान किया. मगर, वह इस बात को याद नहीं रखते कि किसने, कब और कितना नुकसान किया. वह किसी की बुराई को याद नहीं रखते हैं, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण खुद नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने लालू प्रसाद को मिट्टी में मिलाने का कोई उपक्रम नहीं छोड़ा. लेकिन, जब कभी लड़खड़ाये, लालू प्रसाद ने अपना मजबूत कंधा सामने कर दिया. इससे न सिर्फ उनकी इज्ज्त बची, बल्कि लड़खड़ा कर गिरने से भी बच गये. इधर नीतीश कुमार के व्यक्तित्व में भी दोनों पहलू है. किसने अहसान किया, ये याद नहीं रखते हैं. लेकिन, किसने चुनौती दी, इसे वह कभी नहीं भूलते हैं.


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उदहारण कई हैं 
दिवंगत जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes) और शरद यादव (Sharad Yadav) तो बड़े नेता थे, जिन्होंने नीतीश कुमार को समझाने की कोशिश की और बुरी तरह अपमानित हुए. उन्होंने अपने साथ टेढ़ा व्यवहार करने वाले छोटे नेताओं को भी नहीं छोड़ा. दूर मत जाइये. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) को ही लीजिये. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि अगर ललन सिंह नहीं रहते तो नीतीश कुमार इस समय पूर्व सांसद वाला पेंशन उठा रहे होते. आज से चौदह साल पहले उन्होंने ललन सिंह को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था. भला कहिये कि भाजपा (BJP) को न्यौता देकर विजय गायब करने के कारण जब अकेले पड़ गये तो उन्हें ललन सिंह की याद आयी.

गच्चा दे दिया 
फिर भी नीतीश कुमार ने पुरानी बातों को याद रखा. ललन सिंह को केंद्र में मंत्री (Minister) बनने का बड़ा मन था. सब कुछ तय हो गया था. नये कपड़े भी बन गये थे. ऐन मौके पर नीतीश कुमार ने गच्चा दे दिया. नीतीश कुमार को इस मुकाम पर पहुंचाने में संजय झा (Sanjay Jha) का भी बड़ा योगदान रहा है. संजय झा वही हैं, जिन्होंने भाजपा के साथ उनकी दोस्ती पक्की करवा दी थी. वह भी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) हारने के बाद छह महीने तक एक अणे मार्ग से निर्वासित कर दिये गये थे. संकट बढ़ा तो बुलाये गये. ऐसे कई उदाहरण हैं.

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