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कांग्रेस के लौटे आत्मविश्वास पर पानी फेर देगी विपक्षी एकता!

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अश्विनी कुमार आलोक
23 जून 2023

Patna : बिहार (Bihar) में सत्ता परिवर्तन के खेल के साथ नीतीश कुमार  (Nitish Kumar) ने केंद्र की सरकार बदलने का जो जोखिम उठाया, यह ठीक उसी तरह है कि मोटरसाइकिल चलाते -चलाते कोई ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाये. वस्तुतः केंद्र सरकार को बदल देने के प्रयासों में लगे नीतीश कुमार यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कुछ समय पूर्व जिस कांग्रेस (Congress) का लगभग काम तमाम हो गया था, उसमें नयी जान आ गयी है. नयी जान आने से अधिक खास है आत्मविश्वास का लौटना. कर्नाटक  (Karnataka) में सफल होने के पूर्व कांग्रेस हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में सत्ता में लौट चुकी थी. हिमाचल प्रदेश कदाचित् कांग्रेस के पुनर्जीवन का वह रास्ता था, जिससे होते हुए उसने दक्षिण भारत की अपनी खोयी हुई हैसियत प्राप्त कर ली.

पारंपरिक आत्मविश्वास
भाजपा (B J P) की ये दोनों विफलताएं सिर्फ भाजपा की विफलता नहीं थी, नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की भी विफलता थी. इतने बड़े स्तर पर भाजपा की हो रही जीतों में नरेंद्र मोदी अकेले चेहरे हैं और इस चेहरे के समानांतर कोई चेहरा यदि विपक्ष में आज भी है , तो वह राहुल गांधी का चेहरा है. नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के चेहरे में अलग-अलग विशेषताएं हैं. नरेन्द्र मोदी छोटे स्तर के परिवार से उठे समर्पित भाजपाई के रूप में बहुप्रचारित हुए, तो कांग्रेस के लिए राहुल गांधी के पूर्वजों के संपत्ति दान का एक स्तंभ राहुल गांधी के समर्थन में बार-बार चमकने लगता है. राहुल गांधी का आत्मविश्वास पारंपरिक है और नरेंद्र मोदी को सिर्फ अपनी कमाई का आसरा है.

तो यह है विपक्षी एकता के लिए खतरा
राहुल गांधी देश के बहुत बड़े परिवार के वारिस हैं. गांव में भी बड़े रईसों का रसूख देर तक हावी रहता है और उन रईसों को कोई जमीनी स्तर का ऊंचा उठा व्यक्ति तुरंत झुठला नहीं सकता. यह भी सत्य है कि राहुल गांधी भले राजनीतिक स्तर पर जितने हल्के या अपरिपक्व समझे जायें, नरेंद्र मोदी के सामने वह अकेली चुनौती हैं. राजस्थान (Rajasthan) , छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की जीत के बाद कांग्रेस बहुत ऊर्जावान नहीं लग रही थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की जीत के बाद उसकी रगें सनसना उठी हैं, विपक्षी एकता को सर्वाधिक खतरा इसी से है.कांग्रेस को छोड़कर दूसरी विपक्षी पार्टियां अपनी ओर से चेहरे की घोषणा नहीं कर पा रहीं . लेकिन, कांग्रेस ही अकेली पार्टी है, जिसके पास प्रधानमंत्री पद का एक चेहरा राहुल गांधी के रूप में मौजूद है.

यह खतरा है नीतीश कुमार के लिए
नीतीश कुमार के साथ एक नकारात्मक पक्ष यह है कि उन्हें अपने राजनीतिक अनुभवों का अहंकार है. लेकिन, वह यह बार – बार भूल जाते हैं कि भाजपा के पास दूसरी पार्टियां तोड़नेवाले बड़े रणनीतिकार के रूप में अमित शाह मौजूद हैं. भाजपा ने अपने सिद्धांतों की भी अनदेखी नहीं की. अन्यथा वह बहुत पहले राजद (RJD) को खींच लेती और तब नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य धराशायी हो जाता. लेकिन, भाजपा को अपने सवर्ण मतदाताओं से अलग होने का खतरा था. इस प्रकार के अनेक खतरों से नीतीश कुमार अनेक बार खेले हैं. लेकिन, इस बार उनके लिए कांग्रेस का मनोबल लौटना बड़ा खतरा है.

नीतीश कुमार को सम्मानित करतीं ममता बनर्जी. चित्र: सोशल मीडिया.

ऐसा चाहती हैं ममता बनर्जी
कांग्रेस ने भी राहुल गांधी को उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को कर्नाटक की जीत का श्रेय दे दिया है. सच तो यह है कि कांग्रेस सिर्फ तमाशबीन की तरह विपक्षी एकता के तमाशे के बीच खड़ी हुई है. कभी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ऐसे प्रयास के लिए आगे आयी थीं. ममता बनर्जी को इस प्रकार के प्रयास का अनुभव है. वह अब पूरी तरह से पश्चिम बंगाल (West Bengal) में केंद्रित रह जाना चाहती हैं. ममता बनर्जी की शर्त है कि कांग्रेस उसके लिए बंगाल छोड़ दे. यही शर्त अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कांग्रेस के साथ दिल्ली और पंजाब (Delhi and Punjab) को लेकर रखी है. वह बदले में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) छोड़ना चाहते हैं, जहां उनकी जमानत जब्त हो चुकी है.


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अरविन्द केजरीवाल की शर्त
अरविन्द केजरीवाल को केंद्र सरकार के अध्यादेश की खिलाफत में विपक्षियों का साथ चाहिये. सबसे खास बात है कि अरविंद केजरीवाल विपक्षी एकता की इस बैठक में इसी काम से आये हैं. उनकी शर्त पहली शर्त है. इस पर कांग्रेस सहित अधिकांश पार्टियों को गुरेज है. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) कांग्रेस के साथ भी रहकर देख चुके हैं. कांग्रेस के विरोध में तो उठे ही थे. वह पूरी तरह से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व नहीं देखना चाहते. लेकिन, कांग्रेस नेहरू-इंदिरा (Nehru-Indira) की पार्टी थी और नेहरू – इंदिरा कमसे कम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में तो अप्रासंगिक नहीं होंगे.

कहां-कहां रोकेंगे नीतीश कुमार
नीतीश कुमार ने बहुत बड़ा खतरा उठाया है. यह काम इस बात का भी इशारा करता है कि वह भाजपा से डरे हुए हैं. यह डर अन्य पार्टियों में कम, नीतीश कुमार में अधिक दिखने लगा है. ये सभी पार्टियां कांग्रेस के विरोध में उठी भी थीं और कांग्रेस इन्हें आज भी प्रतिद्वंद्वी मानती है. दूसरी ओर कांग्रेस अब भी बड़ी पार्टी है, वह फिर से सफल भी होने लगी है. विपक्षी एकता के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है. नीतीश कुमार यह नहीं सोच पाये कि लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के बाद होनेवाले विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunav) में कांग्रेस को कहां-कहां रोकेंगे!

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