राजनीति : फंस गये लालू प्रसाद की कूट चाल में नीतीश कुमार…!
विष्णुकांत मिश्र
15 जुलाई 2023
Patna : भाजपा (BJP) के शांतिपूर्ण ‘विधानसभा मार्च’ में शामिल निहत्थे-निर्दाेष नेताओं-कार्यकर्त्ताओं पर सत्ता शीर्ष निर्देशित निर्मम लाठी प्रहार और जहनाबाद (Jehanabad) के भाजपा नेता की मौत पर उठा बवंडर लम्बे समय तक राजनीति को हिलकोरता रहेगा. अंतिम परिणति क्या होगी, यह वक्त बतायेगा. वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के राजग (NDA) में लौटने की जो आभासीघ्घ् संभावनाएं आकार लिये हुए थी, इस प्रकरण के बाद करीब – करीब समाप्त हो गयी है. करीब – करीब इसलिए किघ् राजनीति संभावनाओं का खेल है. इसमें कब क्या हो जायेगा , यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. पर, भाजपा नेताओं – कार्यकर्ताओं पर पुलिस की बर्बरता के बाद नीतीश कुमार के राजग से पुनर्जुड़ाव की संभावना उक्त उद्धरण का अपवाद है.
न इधर के न उधर के…
भविष्य में कभी जदयू (JDU)का जुड़ाव हो तो वह अलग बात है, नीतीश कुमार को भाजपा अब शायद ही गले लगा पायेगी. नीतीश कुमार भी उस ओर रुख करने का नैतिक बल नहीं जुटा पायेंगे. गौर कीजिये, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने कुछ दिनों पूर्व कहा था कि नीतीश कुमार अब कहीं नहीं जायेंगे. स्थिति वैसी ही बन गयी है. वैसे स्थिति बन गयी है या बना दी गयी है, विवेचना का एक अलग विषय है. बहरहाल, राजद के बहुचर्चित विधान पार्षद सुनील सिंह (Sunil Singh) की गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात और उस पर नीतीश कुमार के आग बबूला हो जाने को राजनीति इससे जोड़ कर देख रही है. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार कीघ् बेबसी उस मुलाकात का एक परिणाम है. अभी और परिणाम आने हैं. विश्लेषकों की समझ है कि देर सबेर स्थिति ऐसी बन जायेगी कि वह न इधर के रह पायेंगे और न उधर के ! एक तरह से कहा जा सकता है कि ऊपरी तौर पर जो दिख रहा हो, नीतीश कुमार जाने – अनजाने लालू प्रसाद की कूट चाल में बुरी तरह फंस गये हैं. इससे निकल पाना अब उनके लिए बहुत आसान नहीं होगा.सत्ता संचालन में स्वभाव के विपरीत लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) की मर्जी माननी होगी.
बात जदयू में टूट की
पटना (Patna) में विपक्षी दलों की ‘एकजुटता बैठक’ में कांग्रेस के अघोषित सुप्रीमो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एवं राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बढ़े हस्तक्षेप और महाराष्ट्र में शरद पवार (Sharad Pawar) की राकांपा (NCP) में बड़ी टूट के मद्देनजर मीडिया में छाये दो आधारहीन सुर्खियों ने राजनीति को सरगर्म कर रखा था. एक जदयू की राजग में वापसी और दूसरीघ् इसी पार्टी में राकांपा जैसी बड़ी टूट के अनुमानों ने. प्रस्तुति ऐसी कि ‘यह लै अपनी लकुटि कमरिया….’ कहते हुए नीतीश कुमार महागठबंधन (Mahagathbandhan) से बस निकलने ही वाले हैं. सुर्खियां परोसने वालों को इतनी भी समझ नहीं कि भाजपा समर्थकों की भावनाओं को नजरअंदाज कर नीतीश कुमार की वर्तमान हैसियत में राजग में वापसी भाजपा के लिए आत्मघाती हो जाती. राकांपा सरीखी बड़ी टूट की बात इसलिए आधारहीन है कि इस राज्य के राजनीतिक एवं सामाजिक समीकरण और परिस्थितियां महाराष्ट्र (Maharashtra) जैसे राज्यों से भिन्न हैं.
क्या हासिल होता भाजपा को ?
जदयू में टूट की आशंका को हवा किसी और ने नहीं, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने ही दी. इसको इस रूप में समझिये. लगभग साल भर पहले राजद नेताओं के भ्रष्टाचार उजागर होने के बावजूद नीतीश कुमार ने नैतिकता को नाले में डाल उनका दामन पकड़ा था . राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और उनके कतिपय परिजनों के कथित भ्रष्ट आचरण को लेकर वह 2017 में महागठबंधन से अलग हुए थे. उसी भ्रष्टाचार (Corruption) और भ्रष्टाचारियों से पुनः गठजोड़ कर बैठे. इस बाबत उनका तर्क रहा कि भाजपा नेतृत्व उनकी पार्टी जदयू को नेस्तनाबूद करने की साजिश रच रहा था. हो सकता है भाजपा की ऐसी कोई साजिश रही हो, पर यहां सवाल यह उठता है कि जदयू के कतिपय सांसदों- विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल कर लेने से बिहार (Bihar) में सांसद-विधायक की संख्या में थोड़ी बढ़ोतरी के अलावा भाजपा को क्या हासिल होता? नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार को केन्द्र में प्रचंड बहुमत है. दो-चार सांसदों के जुड़ने या अलग होने से सरकार की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है.
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तोड़ने की साजिश किसलिए ?
बिहार में जदयू के 45 विधायक हैं. यहां के सामाजिक समीकरण के मद्देनजर दो-तिहाई टूट की कल्पना कोई नासमझ ही कर सकता है. काफी मशक्कत से 10-20 विधायक टूट भी जाते तो क्या सिर्फ 76 विधायकों की संख्या वाली भाजपा सत्ता में आ जाती? कांग्रेस (Congress) के कुछ विधायकों को तोड़ने के बाद भी वैसा नहीं होता. तो फिर जदयू को तोड़ने की साजिश किसलिए? पटना में भाजपा के सरकार विरोधी मार्च में शामिल सांसदों-विधायकों एवं वरिष्ठ नेताओं- कार्यकर्त्ताओं पर अकारण लाठी प्रहार के बाद जदयू में राकांपा जैसी टूट हो जाये तो वह चौंकने – चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी. हालांकि, अब भी ऐसा कोई आसार नहीं दिख रहा है. 2024 के चुनाव में संभावना संवारने के मकसद से कुछ सांसद- विधायक इधर से उधर हो जायें तो वह अलग बात होगी.
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