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विपक्षी एकजुटता : एक हुए हैं तो अलग होंगे ही, यही है उनका चरित्र !

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अविनाश चन्द्र मिश्र
18 जुलाई 2023
Patna : विपक्षी दलों में एकजुटता की कवायद भारतीय राजनीति (Indian Politics) के लिए गौर करने वाली कोई बड़ी नयी पहल नहीं है. इस देश में विपक्षी नेताओं, विशेष कर समाजवादियों के बार-बार जुड़ने और बिखरने का लंबा इतिहास है. यह कहा जाये कि उनमें ये दोनों प्रक्रियाएं साथ-साथ चलती हैं तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. उनका एक होना जितना सुनिश्चित नहीं उससे कहीं अधिक अलग होना होता है. एक हुए, तो अलग होंगे ही. यही चरित्र है उनका.क्या हो जाये अतीत पर नजर डालें तो उनका मिलन और टूटन मुख्यतः इसलिए होता रहा है कि उनकी एकजुटता किसी नीति और सिद्धांत को लेकर नहीं, आमतौर पर स्वार्थ के लिए हुआ करती है. स्वार्थ का टकराव फिर बिखराव का कारण बन जाता है.

बस यही है नयापन
तकरीबन तीन दशकों से बिखरे समाजवादी मूल के नेता कुछ अन्य दलों के साथ मिल इन दिनों फिर उस इतिहास (History) को दुहराने का प्रयास कर रहे हैं, पूर्व की तरह नीति-सिद्धांत और मुद्दाविहीन प्रयास. इसमें नयापन इतना ही है कि पहले इस पहल को आमतौर पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के विकल्प के रूप में पेश किया जाता था, इस बार इनकी एकजुटता सिर्फ भाजपा के खिलाफ हो रही है और उसमें कांग्रेस भी शामिल है. अभियान की कमान एक तरह से उसके ही हाथ में आ गयी है. बेंगलुरु (Bengaluru )की बैठक में यह शीशे की तरह साफ हो गया. यहां गौर करने‌ वाली बात है कि समाजवाद (Socialism) और धर्मनिरपेक्षता (Secularism) जैसे पुराने मुद्दों के अप्रभावी और अप्रासंगिक हो जाने के बाद उनके पास न कोई बड़ा एजेंडा है और न सुस्पष्ट नीति जिससे कि इन्हें भाजपा के विकल्प के रूप में देखा-समझा जा सके.

बेंगलुरु बैठक का एक दृश्य.

सवाल स्वाभाविक है
आलोचकों की बात छोड़ दीजिये, अभियान के अगुवा ही कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को सत्ता से बाहर करने‌ के लिए यह कोशिश हो रही है.‌ नरेन्द्र मोदी के सत्ता से बाहर हो जाने के बाद देश की‌ शासन- व्यवस्था क्या और कैसी होगी, इस पर सब मौन हैं. इसलिए इसकी विश्वसनीयता और सार्थकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है. एकजुटता की कवायद में जुटे विपक्षी चेहरों में ज्यादातर परिवारवादी (familialist), भ्रष्टाचार- आरोपित और कुशासन के प्रतिरुप हैं. कुछ के अपने-अपने राज्य में मजबूत जनाधार जरूर हैं, पर राष्ट्रीय स्तर पर उनकी स्वीकार्यता नहीं है, छवि सर्वग्राह्य नहीं है.


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पुनरावृत्ति की आशंका
सिर्फ एक नीतीश कुमार हैं जिनकी छवि कभी निर्विवाद-निष्कलंक मानी जाती थी, अलग सोच, दृष्टि और दर्शन था. भ्रष्टाचार मुक्त ईमानदार राजनीतिक चरित्र भी !‌ पलटी मार प्रवृत्ति और उच्चाकांक्षा ने सब गुण…कर दिया . यही वजह है कि विपक्षी एकजुटता के लिए व्याकुल नेताओं में वह भी‌ शामिल हो गये हैं. वैसे, जिस मंशा से ऐसा कर रहे हैं वह पूरी हो पायेगी इसमें संदेह‌‌ है. विपक्षी एकजुटता का मुद्दा राष्ट्रहित से जुड़ा नहीं है, उसमें शामिल राजनीतिक दलों एव नेताओं के अपने-अपने स्वार्थ और मकसद हैं, जो नरेन्द्र मोदी के सत्ता से हट जाने के बाद 1977 एवं 1989 के अनिश्चितता भरे राजनीतिक हालात की पुनरावृत्ति की आशंका पैदा करते हैं. बेंगलुरू की बैठक से पूर्व दिल्ली (Delhi) से संबंधित अध्यादेश पर कांग्रेस और आप (AAP) में झुकने – झुकाने का जो खेल हुआ उसमें उसकी झलक दिख जाती है.

#tapmanlive                                                                                                   चित्र : सोशल मीडिया

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