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अंतर्कथा मुजफ्फरपुर की: सबहिं करावत ‘नेताजी’ गुसाईं !

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विष्णुकांत मिश्र
26 जुलाई 2023

Muzaffarpur : मुजफ्फरपुर नगर निगम (Muzaffarpur Municipal Corporation) के पूर्व महापौर समीर कुमार (Sameer Kumar) की हत्या के तकरीबन पौने पांच साल बाद जमीन के बड़े कारोबारी आशुतोष शाही (Ashutosh Shahi) की हत्या हो गयी. इन दो हत्याओं के बीच और भी कई हत्याएं हुईं, शहर में कोई सिहरन नहीं हुई. लेकिन, उक्त दो हत्याओं से सामान्य लोग ही नहीं, पाताल लोक (Underworld) भी कांप उठा. हत्या-दर-हत्या का खूनी सिलसिला शुरू होने की आशंका गहरा गयी. समीर कुमार और आशुतोष शाही की हत्या किसने और क्यों की, निर्धारण पुलिस और अदालत को करना है. परन्तु, प्रारंभिक अनुसंधान में इनसे जुड़े जो तथ्य सामने आये और आ रहे हैं उससे यह लगभग स्थापित हो गया है कि मुजफ्फरपुर नगर और आसपास के क्षेत्रों में जमीन, विशेषकर विवादित जमीन की खरीद-बिक्री (Property Dealing) का बहुत बड़ा अवैध तंत्र खड़ा हो गया है.

पूंजी लगी है बड़ों-बड़ों की
इस अवैध तंत्र से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजनीतिज्ञों, अपराधी सरगनाओं एवं दबंग लोगों का तो जुड़ाव है ही, प्रबुद्ध वर्ग की श्रेणी में आने वाले धनलोलुप चिकित्सकों, प्राध्यापकों, अधिवक्ताओं एवं व्यवसायियों की भी किसी न किसी रूप में गहरी संलिप्तता है. ऐसा बताया जाता है कि इन सबने इस धंधे में बहुत बड़ी पूंजी लगा रखी है. कुछ के इससे सीधा जुड़ाव रहने की बात भी कही जाती है. एक अनुमान के मुताबिक विभिन्न क्षेत्रों के सौ से अधिक वैसे तथाकथित प्रभावशाली लोग इससे जुड़े हैं, जो जिले की तमाम व्यवस्थाओं को मनमाफिक हांकते हैं. इनमें दो-चार वैसे भी हैं, जो एक समय में मजफ्फरपुर में ‘बादशाहत’ कायम कर रखे ‘नगरपिता’ के रूप में चर्चित पूर्व मंत्री स्वर्गीय रघुनाथ पांडेय (Raghunath Pandey) सरीखी ‘हैसियत’ पाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं.

तब भी रचते हैं कुचक्र
वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक हालात में वैसी हैसियत नामुमकिन है. इस हकीकत को बखूबी समझते हुए भी वे अपनी आकांक्षा की पूर्ति के लिए सरगनाओं के सहयोग से दहशत फैला दबंगता कायम रखने का कुचक्र रचते रहते हैं. राजग (NDA) की सरकार में नये सिरे से ताकतवर हुए ‘राजनीतिज्ञ व्यवसायी’ के कारोबारी पुत्र, एक बहुचर्चित विधान पार्षद, एक पूर्व विधान पार्षद के करीबी रिश्तेदार आदि की गतिविधियों को इसी नजरिये से देखा जा रहा है. कहा जाता है कि बहुत कुछ ऐसी ही उच्चाकांक्षा समीर कुमार और आशुतोष शाही की भी थी. हालांकि, उसे हासिल करने के लिए इन्हें अभी बहुत पापड़़ बेलने पड़ते.

मनोज कुमार और हरप्रीत कौर.

वह भी अपवाद नहीं
एक समय में शहर को हलकान रखने वाले एक पूर्व बाहुबली विधायक ने भी ऐसी कोशिश की थी. प्रोपर्टी डीलिंग के धंधे से वह अब भी जुड़े हैं. पर, होड़ में शामिल नहीं हैं, ऐसा शहर के लोग बताते हैं. वैसे, सामान्य समझ है कि समीर कुमार की हत्या के बाद ‘नेताजी’ के नाम से चर्चित एक स्थानीय बड़ी शख्सियत की ‘बादशाहत’ लगभग कायम हो गयी. समीर कुमार बाधक थे. रास्ते से हटा दिये गये. कुछ दिक्कत आशुुतोष शाही के रूप में पेश आ रही थी. उन्हें भी दूर कर दिया गया. आगे क्या होगा, नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, इस आशंका को एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता कि ‘बादशाहत’ की होड़ में आने वाले दिनों में समीर कुमार एवं आशुतोष शाही जैसे और भी शख्स की बलि चढ़ायी जा सकती है. जो हालात हैं उसमें ‘नेताजी’ को भी इसका अपवाद नहीं माना जा सकता है.

है दूसरा कोण भी
पुलिस के अनुसंधान का निष्कर्ष जो हो, पूर्व महापौर समीर कुमार की हत्या की साजिश उक्त महत्वाकांक्षियों में से ही किसी ने रची थी. मुजफ्फरपुर शहर की धड़कनों पर गहरी नजर रखने वालों की मानें तो जिसने समीर कुमार की हत्या करवायी थी, उसी ने आशुतोष शाही का काम तमाम करा दिया. समीर कुमार को प्रोपर्टी डीलिंग के कारोबार में वर्चस्व की खातिर मौत की नींद सुला दी गयी. बताया जाता है कि सिर्फ एक भूखंड नहीं, शहर के कई कीमती भूखंडों को लेकर अन्य दबंग धंधेबाजों से उनकी सींगें फसी थीं. इस धंधे में उनका अपना एक मजबूत सिंडिकेट था. कहते हैं कि उसी सिंडिकेट (Syndicate) के कुछ विश्वासघाती सदस्यों ने करोड़ों रुपये की बेईमानी की मंशा के तहत उनकी जघन्य हत्या करा दी. कथित रूप से इसमें दूसरे मजबूत प्रतिद्वंद्वी (Competitor) सिंडिकेट के अघोषित संचालक की भी भूमिका रही. आशुतोष शाही की हत्या में उस भूमिका का दोहराव हुआ. हालांकि, इसमें एक दूसरा कोण भी है.


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तब नप जाती गर्दन
आशुतोष शाही की हत्या के बाद यह चर्चा फिर से होने लगी है कि समीर कुमार की हत्या के मामले में ‘नेताजी ’ की गर्दन नप जाती. सत्ता और सियासत के तमाम प्रभावशाली ‘दरबारों’ में मौजूदगी बनाये रखने की वजह से बच गयी. याद होगा, प्रारंभिक अनुसंधान में मिले साक्ष्य व सबूत के आधार पर मुजफ्फरपुर की तत्कालीन वरीय पुलिस अधीक्षक हरप्रीत कौर (SP. Harpreet Kaur) ने उन्हें दबोचने की मुकम्मल तैयारी कर ली थी. कुछ अन्य रसूखदारों को भी. पुलिस का हाथ उन संदिग्ध गर्दनों तक पहुंचता उससे कुछ ही घंटा पूर्व हरप्रीत कौर का तबादला हो गया. शहर सन्न रह गया. कहा जाता है कि हरप्रीत कौर का आनन-फानन में तबादला नहीं होता, तो अचंभित करने वाली उनकी कार्रवाई से सत्ता और सियासत में भूचाल आ जाता. तत्काल साख बचाने के लिए सत्ताशीर्ष ने ऐसा कर दिया, पर इससे तथाकथित सुशासन के ‘कानून अपना काम करेगा’ के दावे की धज्जियां उड़ गयीं.

शायद ही कभी कुछ बिगड़ेगा
हरप्रीत कौर की जगह दरभंगा के तब के ‘सत्ताप्रिय’ पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार (SP. Manoj Kumar) की मुजफ्फरपुर में पदस्थापना हो गयी. ऐसा कहा गया कि हरप्रीत कौर का तबादला सत्ता पक्ष से जुड़े दो स्थानीय धुरंधरों-‘नेताजी’ और उस दौर में बड़े राजनीतिज्ञ के रूप में उभरे शख्स के दबाव में हुआ. चर्चा है कि हत्या की वजह जो रही हो , उसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इन दोनों धुरंधरों की संदिग्ध भूमिका थी. शहर के लोग अब यह मानकर चल रहे हैं कि सत्ता का प्रिय बने रहने के तमाम गुणों से परिपूर्ण ‘नेताजी’ का शायद ही कभी कुछ बिगड़ेगा. खतरा प्रतिद्वंद्वियों से भी नहीं है. इसलिए कि करीब-करीब सभी सरगना उनके ही ताल पर थिरकते हैं.

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