‘अवांछित हरकत’ से छीन गयी मुस्कान, महापौर हलकान !
राजेश पाठक
28 जुलाई 2023
Chhapra : छपरा नगर निगम की बहुचर्चित महापौर राखी गुप्ता (Rakhi Gupta) पर राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) की गाज आखिरकार गिर ही गयी. आठ माह पूर्व नवम्बर 2022 में राखी गुप्ता ने सीधे चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर महापौर (Mayor) का पद संभाला था. बड़े – बड़े सपने संजोये थे, सब धरे रह गये. इसे खुद के द्वारा बुलाया गया दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अपने इस नये दायित्व को वह पूरी तरह समझ भी नहीं पायी थीं कि महापौर के पद से हाथ धोना पड़ गया. राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनावी हलफनामे में तथ्य छिपाने के आरोप में उनके निर्वाचन को अवैध करार दिया, उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया. राखी गुप्ता और उनके पति वरुण प्रकाश (Varun Prakash) ने लाख जतन किये, ढेर सारे तर्क रखे, कोई फर्क नहीं पड़ा.
तब फजीहत नहीं होती
चालाकी कहें या नासमझी या फिर धन की बदौलत असंभव को संभव बना देने का गुरुर, कानून (Law) को ठेंगा दिखाने की करतूत ही उनके गले की फांस बन गयी . दिलचस्प बात यह कि ऐसी शर्मनाक स्थिति अपने ही पुत्र को अपनी संतान नहीं मानने के कारण पैदा हुई. राखी गुप्ता पुत्र को अपनी संतान मान लेतीं, तो छपरा नगर निगम के महापौर का पद भले हासिल नहीं होता, समाज में ऐसी फजीहत नहीं झेलनी पड़ती. यह शीशे की तरह साफ है कि इस रूप में जान बूझकर उन्होंने अपनी जगहंसाई करायी है. मामला तीन संतान रहते महापौर पद का चुनाव लड़ने और जीतने से जुड़ा है. कानून दो संतान वालों को ही ऐसे चुनाव लड़ने की पात्रता दे रखा है. इससे अधिक वालों को नहीं.
कौन हैं राखी गुप्ता?
यहां यह जानना भी जरूरी है कि ऐसी ‘चुनावी नादानी’ करने वाली राखी गुप्ता आखिर हैं कौन? छपरा नगर निगम (Chhapra Municipal Corporation) की 42 वर्षीया ‘अयोग्य महापौर’ राखी गुप्ता छपरा के सरकारी बाजार (आजाद रोड) की रहने वाली हैं. उनके 40 वर्षीय व्यवसायी पति वरुण प्रकाश की सामाजिक पहचान भी है. वरुण प्रकाश के पिता श्रीप्रकाश (Sriprakash) सर्राफ शहर के बड़े व्यवसायी थे. श्रीप्रकाश ऑर्नामेंट्स के नाम से स्वर्णाभूषण का अच्छा खासा विश्वसनीय व्यवसाय था. व्यवसाय अब भी है, लेकिन दो भागों में बंटा है. स्वर्गीय श्रीप्रकाश सर्राफ के दो पुत्र हैं. वरुण प्रकाश और अरुण प्रकाश. दुनिया की जो रीति है उसी के अनुरूप श्रीप्रकाश ऑर्नामेंट्स भी विभाजित है.अरुण प्रकाश की पत्नी हैं चांदनी प्रकाश. वह भी पढ़ी-लिखी इंजीनियर हैं. राखी गुप्ता की तरह सामाजिक सक्रियता बनाये रखती हैं. भाइयों के आपसी संबंध जो हों, जेठानी और देवरानी के बीच अघोषित प्रतिद्वंद्विता दिखती रहती है. शहर के लोग ‘तीन संतान विवाद’ को इस प्रतिद्वंद्विता से भी जोड़कर देख रहे हैं.वरुण प्रकाश और राखी गुप्ता की दो पुत्रियां श्रीयांशी प्रकाश एवं शिवांशी प्रकाश तथा एक पुत्र श्रीश प्रकाश है. यानी तीन संतान हैं.
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कानून का उल्लंघन
04 अप्रैल 2008 से प्रभावी बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 (Bihar Municipal Act 2007) की धारा 18 में प्रावधान है कि दो से अधिक संतान के माता-पिता नगर निकाय का चुनाव नहीं लड़ सकते. राखी गुप्ता के मामले में इस कानून का उल्लंघन हुआ. ऐसा राज्य निर्वाचन आयोग का निष्कर्ष है. राखी गुप्ता का तर्क है कि उनकी सिर्फ दो पुत्रियां हैं. एक पुत्र भी हुआ था. पैदा होने के कुछ ही माह बाद उन्होंने उसे अपने एक करीबी रिश्तेदार को गोद दे दी. सबूत के तौर पर उन्होंने 4 फरवरी 2022 का एक निबंधित गोदनामा राज्य निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया था. उसमें कहा गया कि वरुण प्रकाश ने पुत्र श्रीश प्रकाश को अपनी निःसंतान मौसी उर्मिला शर्मा (Urmila Sharma) को दत्तक पुत्र के तौर पर दे दिया है. 64 वर्षीया उर्मिला शर्मा गोपालगंज शहर के पुरानी चौक की रहने वाली हैं. उनके 76 वर्षीय पति ठाकुर प्रसाद (Thakur Prasad) सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं.
लिखित प्रमाण नहीं
गोदनामा में कहा गया कि इस दंपत्ति को कोई संतान नहीं थी. दोनों ने श्रीश प्रकाश (Shrish Prakash) को गोद लेने की इच्छा प्रकट की. वरुण प्रकाश एवं राखी गुप्ता ने पूर्व में ‘दत्तक’ के तौर पर उन्हें संतान सौंपने का वचन दिया था. 01 सितम्बर 2017 को राखी गुप्ता को तीसरी संतान के रूप में श्रीश प्रकाश का जन्म हुआ. पूर्व के वचन को निभाते हुए 22 जनवरी 2018 को बसंत पंचमी के दिन वरुण प्रकाश एवं राखी गुप्ता ने अपने पुत्र को ठाकुर प्रसाद एवं उर्मिला शर्मा की गोद में डाल दिया. हालांकि, इसका उस वक्त का कोई लिखित प्रमाण नहीं है. इसकी खानापूर्त्ति 04 फरवरी 2022 को तब हुई जब राखी गुप्ता के महापौर पद का चुनाव लड़ने में ‘तीन संतान’ के बाधक बन जाने की बात सामने आयी.
आयोग ने एजखानापूर्ति माना
वरुण प्रकाश और राखी गुप्ता के तर्क जो हों, परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग ने इस गोदनामे को खानापूर्त्ति माना. वैसे भी भारतीय समाज में ऐसा बहुत कम उदाहरण होगा कि दो पुत्रियों के बाद पैदा हुए पुत्र को किसी ने दूसरे को गोद दे दिया हो. यहां तो पुत्र की चाहत में पुत्रियों की कतार लग जाती है. ऐसे में वरुण प्रकाश और राखी गुप्ता की सदाशयता संदिग्ध थी. ऐसा इसलिए भी कि ठाकुर प्रसाद 76 साल के और उनकी पत्नी उर्मिला शर्मा 64 साल की हैं. 22 जनवरी 2018 को श्रीश प्रकाश को इन दोनों ने जब गोद ली उस वक्त ठाकुर प्रसाद 71 और उर्मिला शर्मा 59 साल की रही होंगी. इतनी बड़ी उम्र में चार-पांच माह के बच्चे को गोद लेना व्यावहारिक की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरा.
विरोधियों ने प्रपंच बताया
प्रतिद्वंद्वियों का कहना रहा कि यह सब दो से अधिक संतान से संबंधित कानून से बचने के लिए राखी गुप्ता और वरुण प्रकाश का प्रपंच था. छपरा के दहियावां टोला के शत्रुघ्न राय उर्फ नन्हें राय (Shatrughan Rai urf Nanhe Rai) की पत्नी पूर्व महापौर सुनीता देवी (Sunita Devi) ने इस मुद्दे को उठाया था. अक्तूबर 2022 में संपन्न छपरा नगर निगम के महापौर पद के चुनाव में सुनीता देवी भी उम्मीदवार थीं. तीसरे स्थान पर अटक गयी थीं. राखी गुप्ता का मुकाबला रफी इकबाल (Rafi Iqbal) से हुआ था. राखी गुप्ता की तीन संतान का मुद्दा पहले भी उठा था. नामांकन के वक्त शपथ पत्र में उन्होंने दो संतान रहने की बात कही थी. पुत्रियों की चर्चा की थी, पुत्र की नहीं. प्रतिद्वंद्वियों ने उसी वक्त निर्वाचन पदाधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराया था. नगर निकाय चुनाव के निर्वाचन पदाधिकारी उपविकास आयुक्त होते हैं. सुनीता देवी तो मुखर थीं हीं, एक अन्य प्रत्याशी रीना यादव (Rina Yadav) ने भी राखी गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठायी थी. राज्य निर्वाचन आयोग ने सुनीता देवी के आवेदन को संज्ञान में लिया और राखी गुप्ता को सदमे में डालने वाला फैसला सुना दिया.
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जिम्मेवार तो वह भी हैं
दस्तावेज बताते हैं कि महापौर पद के लिए राखी गुप्ता का नामांकन 22 सितम्बर 2022 को हुआ था. उसके साथ शपथ-पत्र भी था. उसमें उनकी तीसरी संतान का जिक्र नहीं था, निर्वाचन पदाधिकारी (Election Officer) के संज्ञान में नहीं आया. यहां सवाल यह है कि अधिवक्ता वीरेन्द्र कुमार (Virendra Kumar) ने 26 सितम्बर 2022 को जब उन्हें शिकायत-पत्र के साथ सबूत सौंपा तो फिर उस पर गौर क्यों नहीं फरमाया गया? उस समय वह ध्यान दिये होते, तो न राज्य निर्वाचन आयोग का समय जाया होता और न छपरा नगर निगम के महापौर के दोबारा चुनाव की विवशता पैदा होती. तो क्या इस हालात के लिए निर्वाचन पदाधिकारी को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता?
हो गयी थी बड़ी चूक
उक्त प्रमाणों के अलावा आवेदनकर्त्ता ने एक दैनिक समाचार पत्र का 27 मार्च 2022 का अंक सबूत के तौर पर पेश किया. उसमें वरुण प्रकाश और उनकी पत्नी राखी गुप्ता के सामाजिक कार्यों का वर्णन है. उसी में वरुण प्रकाश का संक्षिप्त जीवन-परिचय है. अन्य बातों के अलावा संतान के तौर पर दोनों पुत्रियों श्रीयांशी प्रकाश एवं शिवांशी प्रकाश तथा पुत्र श्रीश प्रकाश का जिक्र है. पता नहीं कैसे वरुण प्रकाश और राखी गुप्ता ने इसे प्रकाशित कराया. गौरतलब है कि इसके प्रकाशन से पौने दो माह पूर्व इन्हीं दोनों ने 04 फरवरी 2022 को ‘गोदनामा’ कराया था. उसमें उर्मिला शर्मा और ठाकुर प्रसाद को श्रीश प्रकाश का माता-पिता घोषित कर दिया गया. फिर उक्त समाचार पत्र में वैसी चर्चा क्यों? इस तरह कहा जा सकता है कि ‘फंदा’ खुद वरुण प्रकाश और राखी गुप्ता ने तैयार कर लिया.
क्या कहता है कानून
यहां गौर करनेवाली बात यह भी है कि बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की धारा 18 के संदर्भ में निर्वाचन आयोग की ओर से जो स्पष्टीकरण-निर्देश जारी हुआ था, उसके आलोक में उक्त गोदनामे का कोई महत्व नहीं है , अर्थहीन है. यह स्पष्टीकरण-निर्देश नगर निकायों के चुनाव से पहले 02 सितम्बर 2022 को जारी हुआ था, जो जैविक एवं दत्तक संतान के संदर्भ में था. इसमें राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव मुकेश कुमार सिन्हा (Mukesh Kumar Sinha) ने स्पष्ट किया था कि दो से अधिक संतान के निर्धारण का आधार जैविक माता-पिता ही होगा. यानी जिसने जन्म दिया वही माता-पिता. इसमें दत्तक संतान की मान्यता नहीं होगी. बताया जाता है कि राज्य निर्वाचन आयोग को इस आशय का स्पष्टीकरण-निर्देश इसलिए जारी करना पड़ा कि 2012 और 2017 के नगर निकाय चुनावों में दो से अधिक संतान वाले उम्मीदवारों ने संबंधित कानून से बचने के लिए गोदनामे को अपना ‘हथियार’ बना लिया था.
जायेंगे अदालत की शरण में
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा गोदनामे को मान्यता नहीं देने के स्पष्टीकरण-निर्देश के परिप्रेक्ष्य में राखी गुप्ता का निर्वाचन नियम विरुद्ध था. राज्य निर्वाचन आयोग ने उसे अवैध करार दिया. राखी गुप्ता महापौर पद से मुक्त हो गयीं. वैसे, राखी गुप्ता और वरुण प्रकाश जल्दी हार मान जायेंगे, ऐसा नहीं दिखता. जीत हासिल हो या नहीं, मामले को वह पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) में ले जा सकते हैं. इस बीच महापौर पद के लिए नये चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है.
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