तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

साइबर ठगी : रक्तबीज की तरह उग रहे अड्डे

शेयर करें:

राजकिशोर सिंह
29 जुलाई 2023

Jamtara : समाजष्शास्त्रियों  (Sociologists) का मानना है कि इस इलाके के भटके लोगों में अपराध विरासती कुसंस्कार की तरह घुसा हुआ है. काल और परिस्थिति के अनुरूप अपराध का तरीका बदलता रहता है. इलाके की आपराधिक गतिविधियों की गहन जानकारी रखनेवालों के मुताबिक 80 के दशक में करमाटांड़ वैगन ब्रेकिंग, नशाखुरानी, ट्रेन में छीना-झपटी और लूट आदि के लिए बदनाम था. उस दौर में इसे ‘वैगन ब्रेकिंग स्टेशन’ की कुख्याति मिली हुई थी. 2004 में स्मार्ट फोन (Smart Phone) आया तब अपराध की शैली बदल गयी. नयी पीढ़ी का दिमाग साइबर क्राइम में खपने लग गया. शुरुआत 2008 में मोबाइल फोन से बैलेंस की चोरी से हुई. धंधेबाजों द्वारा लोगों से सौ रुपया लेकर 200 से 300 रुपये तक के बैलेंस दिये जाते थे.

साइबर क्राइम के अदृश्य अड्डे
हालात ऐसे थे कि अच्छे-अच्छे लोग भी आधे में दोगुना बैलेंस या रिचार्ज कराने लग गये थे. धंधेबाजों को खूब कमाई होने लगी थी. देखते-देखते जामताड़ा- करमाटांड़ (Karmatand) इलाका साइबर क्राइम के अदृश्य अड्डे के रूप में चर्चित हो गया. ऐसा कि हर दूसरे- तीसरे दिन देश के विभिन्न राज्यों के अलग- अलग हिस्से से पुलिस ऑनलाइन ठगी (Online Fraud) का सुराग तलाशने पहुंचने लगी. हालात ऐसे बन गये कि देश में कहीं भी इस तरह का कोई मामला सामने आता, तो पुलिस और जांच एजेंसियों का रुख खुद-ब-खुद जामताड़ा-करमाटांड़ की ओर हो जाता था. इसलिए कि ऐसे अधिकतर मामले वहीं के धंधेबाजों से जुड़े होतेेे थे. धीरे-धीरे ठगी के बदले तौर-तरीके सेे युक्त ऐसे अनेक अड्डे बिहार (Bihar) में भी उग गये हैं. देश के कुछ दूसरे हिस्सों में भी.

जामताड़ा का एक गांव.

भूमिगत प्रशिक्षण केन्द्र
जामताड़ा और करमाटांड़ में साइबर क्राइम (Cyber Crime) के कई भूमिगत ट्रेनिंग सेंटर संचालित हैं. कुछ लोग इसे ‘साइबर क्राइम का विश्वविद्यालय’ मानते हैं. ट्रेनिंग सेंटर पर शातिर प्रशिक्षकों द्वारा सात दिनों से लेकर एक माह तक ऑनलाइन ठगी के गुर सिखाये जाते हैं. झारखंड (Jharkahnd) और बिहार के ही नहीं, देश के अन्य शहरों से बगैर किसी मेहनत के कम समय में अधिकाधिक धन पाने की लालसा लिये गुमराह बेरोजगार युवक प्रशिक्षण पाने आते हैं. परिणामतः जामताड़ा और करमाटांड़ के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी साइबर क्राइम के कई छोटे-बड़े अड्डे अस्तित्व में आ गये हैं. झारखंड में देवघर (Deoghar) और धनबाद (Dhanbad) में इसका जड़ जम रही है. दीर्घकाल तक सफेद दाग मिटाने के गोरखधंधे को लेकर सुर्खियों में रहे बिहार के नवादा (Nawada) जिले का कतरीसराय भी इस अपराध का बहुत बड़ा अड्डा बन गया है. आसपास के जिलों में भी इसका तेज फैलाव हो रहा है.

ठग विद्या आधारित समृद्धि
स्थानीय लोगों की मानें तो करमाटांड़ थाना क्षेत्र के दर्जनों गांवों के घर-घर में इस क्राइम के प्रशिक्षक हैं. पड़ोस के नारायणपुर थाना क्षेत्र के भी दर्जनाधिक गांवों की चर्चा इस रूप में होती है. हालांकि, ऐसे तमाम गांवों में ईमानदारी और मेहनत की कमाई से जीवन यापन करने वाले लोग भी खूब हैं.ऐसी हरकतों से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता-रिश्ता नहीं है. जामताड़ा-करमाटांड़ मुख्य सड़क से करीब दो किलोमीटर अंदर बसे इन गांवों में आठ-दस साल पहले तक दरिद्रता का अट्टहास गूंजता था. आवास के नाम पर ज्यादातर बाशिंदों की झोपड़ियां थीं या फिर मिट्टी के घर थे. आज हालात पूरी तरह बदल गये हैं. ठग विद्या आधारित समृद्धि की मुस्कुराहट चतुर्दिक फैली हुई है. अब तो दूर-दूर तक निर्यात भी होती है.


ये भी पढें :
साइबर ठगी : कलंक ढो रहा करमाटांड़ !
‘अवांछित हरकत’ से छीन गयी मुस्कान, महापौर हलकान !
आदित्य सचदेवा प्रकरण: नीतीश कुमार के लिए अग्निपरीक्षा!


रातें भी होती हैं रंगीन
अधिसंख्य झोपड़ियों और मिट्टी के घरों की जगह कोठीनुमा भवन खड़े हो गये हैं. उनमें तमाम आधुनिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं. अधिकतर ‘कोठियों’ में अंग्रेजी शराब के बार भी हैं. हर कमरा वातानुकूलित है. घर के सामने चमचमाती महंगी गाड़ियां खड़ी रहती हैं. कुछ भवनों के दरवाजों में सेंसर लगे हुए हैं. रिमोट कंट्रोल से दरवाजा खुलते और बंद होते हैं. नगदी के रूप में लाखों रुपये रहते हैं. घर के अंदर और बाहर सीसीटीवी (CCTV) का जाल है. ऐसा प्रतीत होता है कि जामताड़ा और करमाटांड़ में धन की अदृश्य बारिस हो रही है. तभी तो अय्यासी पर पानी की तरह पैसे बहाये जाते हैं. धंधेबाजों के अमूमन हर घर में देर रात तक पार्टियां चलती रहती हैं. कोलकाता (Kolkata) से आयीं नर्तकियां थिरकती हैं, जाम छलकते हैं. ठुमके पर नोटों की गड्डियां उड़ती हैं.

#tapmanlive

अपनी राय दें