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मुजफ्फरपुर : सहनी बनाम सहनी से बन जायेगी राह आसान !

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राजकिशोर सिंह
03 सितम्बर 2023

Muzaffarpur : बिहार की राजनीति में जो परिदृश्य उभर रहे हैं उसमें पूर्व मंत्री मुकेश सहनी  के राजग (NDA) से जुड़ाव की संभावना लगभग समाप्त हो गयी है. ऐसा इसलिए कि मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं. राजग से जुड़ने की पहली शर्त संभवतः उनकी यही है. लम्बे समय से इस क्षेत्र पर काबिज भाजपा को यह मंजूर नहीं है. ऐसा स्वाभाविक भी है. अपने मजबूत गढ़ में वह खुद किसी को घुसपैठ कैसे करा दे? वह भी वैसे शख्स की जिसकी राजनीति में विश्वसनीयता संदिग्ध (Suspicious) है, अपना कोई परिणामदायक जनाधार नहीं है. जो कुछ है वह पानी के बुलबुले समान जातीय उफान है. अजय निषाद वर्तमान में मुजफ्फरपुर से भाजपा (BJP) के सांसद हैं.

मुकेश सहनी के लिए नहीं
सामान्य समझ में सांसद के रूप में उनकी उपलब्धि संतोषजनक (Satisfactory) नहीं है. इस आधार पर 2024 के संसदीय चुनाव में उन्हें हाशिये की राह धरा दी जाये, तो वह अलग बात होगी. मुकेश सहनी के लिए भाजपा नेतृत्व ऐसा शायद नहीं करेगा. विश्लेषकों (Analysts) का मानना है कि क्षणिक लाभ के लिए भाजपा उनकी ही शर्त पर मुकेश सहनी को गले लगाती है, तो उसे उसका आत्मघाती निर्णय माना जायेगा. भाजपा की शर्त पर जुड़ाव और अन्य कोई क्षेत्र दिये जाने का कुछ दूसरा मतलब होगा. इन सबके मद्देनजर यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि मुकेश सहनी की किसी भी रूप में भाजपा से बात नहीं बनी तब वह क्या करेंगे? महागठबंधन के दरवाजे पर मत्था टेकेंगे, किसी संभावित तीसरे मोर्चे का हिस्सा बनेंगे या फिर ‘एकला चलो’ की राह पकड़ेंगे?

एकलौता विकल्प
ज्यादा संभावना सत्ता में औकात से अधिक हिस्सेदारी के मुद्दे को लेकर राजद (RJD) और अप्रत्यक्ष रूप से तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) पर पीठ में छुरा घोंपने का आरोप मढ़ महागठबंधन से अलग हुए मुकेश सहनी पुनर्जुड़ाव के लिए उसके समक्ष गिड़गिड़ा सकते हैं. विश्लेषकों की मानें, तो अभी वह जातीय समर्थन की बयार जरूर बांध रहे हैं, राजनीति में भाव बनाये रखने के लिए उनके पास यही एकलौता विकल्प है. ‘क्षमादान’ मिल जाता है, तो मुजफ्फरपुर से महागठबंधन की उम्मीदवारी की संभावना (Possibility) भी जग जा सकती है. मुजफ्फरपुर की चुनावी राजनीति की गहरी समझ रखने वालों का तर्क है कि मुकेश सहनी या फिर इसी बिरादरी के दूसरे किसी भी नेता को महागठबंधन की उम्मीदवारी मिलती है, तो पूर्व के चुनावों की तरह इस बार भी वह भाजपा की राह आसान बना दे सकती है.


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वीआईपी के हिस्से में गयी तब…
वैसे ,चुनावी राजनीति का अपना अलग रंग होता है. किस क्षण कौन सा रंग पकड़ लेगा, दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है. 2019 में जदयू (JDU) रहित महागठबंधन में यह सीट वीआईपी (VIP) के कोटे में गयी थी. मुकेश सहनी ने स्वजातीय समर्थन की बाबत खूब पैंतरेबाजी की थी. सब हवा में रह गयी.इस क्षेत्र को लेकर वह कितने गंभीर थे इसको इस रूप में आसानी से समझा जा सकता है. उन्होंने राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र से बेगूसराय (Begusarai) निवासी राजमोहन चौधरी को उम्मीदवार बना दिया. आशंका के अनुरूप भाजपा प्रत्याशी अजय निषाद (Ajay Nishad) से चार लाख से अधिक मतों के अंतर से वह मात खा गये. लोग कहते हैं कि इस बार भी महागठबंधन में यह सीट वीआईपी के हिस्से में गयी तो थोड़ा बहुत उलटफेर के साथ परिणाम 2019 जैसा ही आ सकता है.

बदल गया है समीकरण
मुजफ्फरपुर पहले सवर्ण बर्चस्व वाला क्षेत्र था. पिछले परिसीमन में सामाजिक और राजनीतिक समीकरण बदल गया. अब यह पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा बहुल हो गया है. ऐसे में सवर्ण समाज की चुनावी दाल किसी अप्रत्याशित ‘लहर’ में ही गल सकती है. सामान्य हालात में नहीं. इसके मद्देनजर दोनों ही बड़े गठबंधनों के उम्मीदवार आमतौर पर पिछड़ा या अतिपिछड़ा समाज से ही होते हैं. बहुलता अतिपिछड़ा समाज की है. परिणामस्वरूप प्राथमिकता उसे ही मिलती है.

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