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सहरसा : न जाने कब दोमुंही राजनीति से निजात मिलेगी…!

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राजकिशोर सिंह
27 अक्तूबर 2023

Saharsa : तीन दफे शिलान्यास और दर्जन भर से अधिक बार निविदा निकलने और रद्द होने के बाद कुछ दिन पूर्व नये सिरे से निविदा निकली तब सहरसा की तरसती आंखों में बसे 30 वर्षीय सपने के साकार होने की उम्मीदों की कोपलें फूट पडीं. बंगाली बाजार रेलवे ओवरब्रिज पर छायी दोमुंही राजनीति की धुंध के छंटने की संभावना को आकार मिलने लग गया. लेकिन, अंततः यह भी भ्रम ही साबित हुआ. रेलवे ओवरब्रिज (Railway Overbridge) के स्वीकृत एलाइंमेंट (नक्शा) का मामला अदालत में पहुंच गया और निविदा की कार्यवाही अटक गयी. हालांकि, इस शहर के लिए यह कोई पहला कड़वा अनुभव नहीं है. किसी न किसी रूप में अड़चनों का क्रम बना ही रहता है. बनते-बिगड़ते आसार के मद्देनजर इस क्रम को अंतहीन कहें, तो वह कोई अतिश्योक्ति (Exaggeration) नहीं होगी.

जाम फंसता है तब…
रेलवे लाइन के आर पार बसे शहर की गतिविधियों को चार गुमटियां अक्सर ठहरा देती हैं. उनमें मुख्य पूरब बाजार और बंगाली बाजार की गुमटी है. स्थानीय भाषा में लोग इसे रेलवे ढाला कहते हैं. चूंकि यह गुमटी सहरसा रेलवे स्टेशन के बगल में है. इसलिए वहां जाम फंसता है तो फिर जल्दी मुक्ति नहीं मिल पाती है. लगभग संपूर्ण शहर की यातायात व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है. प्रमंडलीय मुख्यालय की हैसियत रखने वाले सहरसा को सड़क जाम से त्राण दिलाने का यह मुद्दा सामान्य समझ में तीन दशक से अधिक समय से स्थानीय कुछ नेताओं की कुत्सित मानसिकता (Evil Mentality) की वजह से उलझा हुआ है. बंगाली बाजार रेलवे ओवरब्रिज की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही थी. 1990 से इसकी मांग उठने लगी थी, पर आवाज बहुत धीमी थी. दिल्ली के कानों तक नहीं पहुंच पाती थी.

अभियान का असर
पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना ने 1992 में इस मांग को मुखरता दी. इसके लिए जोरदार अभियान चलाया. उसका असर हुआ. सहरसावासियों की भावनाओं और जरूरतों को संजीदगी से महसूस करते हुए 1996 में आमान परिवर्तन से संबंधित एक योजना के शिलान्यास के सिलसिले में सहरसा आये तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने 09 करोड़ की लागत से बंगाली बाजार रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण की घोषणा की. इससे संपूर्ण कोशी अंचल हर्षित हो उठा. परन्तु, यह छलावा ही साबित हुआ. इस रूप में कि इसके लिए न कोई योजना बनी और न धन की व्यवस्था हुई. सब कुछ मौखिक था, हवा में रह गया.


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हैरान रह गये लोग
इस सरकारी फरेब का खुलासा सन् 2000 में हुआ. उस वक्त दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) रेल राज्यमंत्री थे. पूर्व की घोषणा की हकीकत को सामने रख उन्होंने बंगाली बाजार रेलवे ओवरब्रिज का शिलान्यास किया तो लोग हैरान रह गये. समझ नहीं पाये कि रामविलास पासवान ने हवाई घोषणा क्यों की थी? दरअसल यह सब कागज पर भी नहीं, हवा में हो रहा था, जमीन पर कुछ भी नहीं. दिग्विजय सिंह ने भी सिर्फ शिलान्यास भर किया. उसके आगे कुछ नहीं. पांच साल बाद 2005 में तब के सांसद शरद यादव (Sharad Yadav) के आग्रह पर तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने दूसरी बार इसका शिलान्यास किया. इसके बाद भी सहरसा का दुर्भाग्य से पीछा नहीं छूटा.

तब भी नहीं मिली स्वीकृति
लालू प्रसाद (Lalu Prasad) जैसे तब के दिग्गज नेता के शिलान्यास करने के बावजूद न निर्माण की विधिवत स्वीकृति मिली और न कोई काम शुरू हुआ. 2014 में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार के सत्ता में आने से पहले मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार थी. उसी समय इस रेलवे ओवरब्रिज के लिए नयी पहल हुई. तत्कालीन रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chaudhary) ने तीसरी बार इसकी आधारशिला रखी. आजाद भारत का संभवतः यह पहला रेलवे ओवरब्रिज होगा जिसका तीन बार शिलान्यास हुआ. एक बार केन्द्रीय मंत्री ने और दो बार केन्द्रीय राज्य मंत्री ने आधारशिला रखी. लेकिन, इसके निर्माण के लिए एक ईंट तक नहीं जोड़ी जा सकी.

लहरायी थीं 75 हजार मुट्ठियां
लोग बताते हैं कि पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना इस मुद्दे को लेकर लगातार संघर्षरत रहे हैं. ‘ओवरब्रिज का निर्माण, रेल समस्या का निदान’ का नारा बुलंद करते हुए उन्होंने 2011 में अपनी मुहिम को नयी गति दी. 2013 में सहरसा में रैली आयोजित की. ऐसा बताया जाता है कि उसमें तकरीबन 75 हजार लोग शामिल हुए थे. कहते हैं कि जनभावना के उसी ज्वार को देखते हुए 2014 में अधीर रंजन चौधरी ने शिलान्यास किया था. 55 करोड़ की योजना बनायी गयी थी. पर, उसका भी कोई मतलब नहीं निकला. केन्द्र में सरकार बदल गयी, योजना अटक गयी!

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