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नाट्य उत्सव : तब भी अटूट है मंचन का सिलसिला

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राजेश कुमार
28 अक्तूबर 2023

पंडारक (पटना): गांव में कुछ ही फासले पर दो स्थायी व्यवस्थित मंच निर्मित हैं. हिन्दी नाटक समाज (Hindi Drama Society) और किरण कला निकेतन ने अलग-अलग समय में इसका निर्माण कराया है. पंडारक पूर्वी पंचायत में पूर्वांचल दुर्गा पूजा समिति के सौजन्य से निर्मित किरण कला निकेतन के स्थायी मंच का गांव की अन्य नाटक मंडलियां – पुण्यार्क कला निकेतन, आजाद कला परिषद, आजाद कला निकेतन – भी आवश्यकतानुसार इस्तेमाल करती हैं. शारदीय नवरात्र के दौरान दोनों मंचों पर लगभग एक सप्ताह तक नाटकों का मंचन हुआ करता है. कभी-कभी बाहर की मंडलियां भी आती हैं. उमाकांत शर्मा पूर्वांचल दुर्गापूजा समिति के अध्यक्ष और अधिवक्ता आनंद मोहन प्रसाद सिंह सचिव हैं.

पुण्यार्क कला निकेतन
इस नाट्य संस्था के अध्यक्ष की जिम्मेवारी फिलहाल रामनरेश सिंह संभाल रहे हैं. मनोज कुमार सिंह सचिव और विजय आनंद रंग निर्देशक हैं. डा. रविशंकर, राजेश कुमार पायलट, विशाल आनंद, पप्पू कुमार, अभिषेक आनंद, राकेश कुमार डब्ल्यू, विकास कुमार आदि लगभग दो दर्जन रंगकर्मी इस संस्था से जुड़े रहे हैं. उनमें वीणा गुप्ता भी हैं. वीणा गुप्ता मूलतः मसौढ़ी की रहने वाली हैं. इस बार दशहरा के अवसर पर पुण्यार्क कला निकेतन ने पूर्वांचल दुर्गा पूजा समिति रंगमंच (Stage) पर पांच दिवसीय नाट्य उत्सव के प्रथम दिन ‘बहादुर शाह’ और पांचवें दिन हीर रांझा का मंचन किया. नाट्य उत्सव (Theater Festival) के दूसरे दिन आजाद कला परिषद ने ‘दलाल’, तीसरे और चौथे दिन किरण कला निकेतन ने क्रमशः ‘आबरू’ और ‘बिदेशिया’ का मंचन किया.

नुक्कड़ नाटक का एक रोचक दृश्य.

सरकार का सहयोग नहीं
पंडारक की समृद्ध नाट्य परंपरा की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होती है, परन्तु आर्थिक सहयोग के मामले में सरकार की दृष्टि से यह अब तक प्रायः ओझल है. सामान्य समझ है कि सामाजिक सहयोग नहीं होता तो यहां का रंगमंच भी वक्त के गर्भ में दफन हो गया रहता. तकरीबन एक सौ दस वर्षों की रंग यात्रा के बाद भी सरकारी स्तर का सहयोग छिटपुट में ही सिमटा है. समाज से इतर आर्थिक सहयोग (Economic Cooperation) की बाबत प्रेमशरण शर्मा ने कभी बताया था कि पूर्व मंत्री विजय कृष्ण ने अपने विधायक काल में दो बार एक-एक लाख रुपये की राशि रंगमंच को दी थी. जद(यू) के विधान पार्षद नीरज कुमार ने पांच लाख रुपये का आश्वासन दिया था. उस आश्वासन का क्या हुआ नहीं मालूम.

दर्शकों की उदासीनता
बहरहाल, आर्थिक समस्या अपनी जगह है, नाट्य संस्थाओं को दर्शकों की निरंतर कम होती संख्या कुछ ज्यादा निराश करती दिख रही है. आमतौर पर ग्रामीण मंचों पर पहले धार्मिक (Religious) एवं ऐतिहासिक तथ्यों (historical facts) तथा हास्य-व्यंग्य पर आधारित नाटकों को महत्व मिलता था. बाद में सामाजिक सरोकारों से जुड़े नाटकों का भी मंचन होने लगा. इसके बावजूद दर्शकों की उदासीनता बरकरार है. सुकून की बात यह है कि प्रतिकूल होते हालात में भी रंगकर्मियों का उत्साह बना हुआ है. रंगकर्म जिंदा है और नाटकों के मंचन का सिलसिला अटूट है. पंडारक में ही नहीं, दशहरा, दीपावली एवं छठ पर्व के अवसरों पर आस-पास के गांवों में प्रायः हर साल तीन सौ से अधिक नाटकों का मंचन होता है.


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ऐसा हो पायेगा क्या?
गौर करनेवाली बात यह भी कि ग्रामीण नाटक मंडलियों में आंतरिक द्वंद्व जो हो, नाट्य मंचन के मामले में प्रतिद्वंद्विता नहीं, प्रतिस्पर्धा की भावना रहती है. यही मुख्य वजह है कि कलाकारों को अपनी प्रतिभा निखारने का बेहतरीन अवसर उपलब्ध हो रहा है. नाट्य विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार एवं संबद्ध प्रतिष्ठान यहां की नाट्य संस्थाओं को आर्थिक परेशानियों से उबार ले, तो खुद को नाटक विधा की आधुनिक तकनीकी (Modern Technological) से जोड़ ये इस संपूर्ण इलाके को समर्थ सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में स्थापित कर दे सकती हैं. लेकिन, बड़ा सवाल है कि ऐसा हो पायेगा क्या?  (समाप्त)

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