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राजपाट और कायस्थ : थोड़ी बहुत ‘हरियाली’ है भी तो भाजपा में

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
05 नवम्बर 2023

Patna : इसे संयोग ही कहा जायेगा कि 1967 में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohiya) के गैर कांग्रेसवाद से जो संविद (संयुक्त विधायक दल) युग आया उसमें भी सवर्णवाद हावी रहा. मुख्यमंत्री (Chief Minister) पद के रूप में इसका लाभ कायस्थ (Kayasth) समाज के महामाया प्रसाद सिन्हा (Mahamaya Prasad Sinha) को मिल गया. हालांकि, विधायकों के ‘आया राम, गया राम’ की वजह से वह ज्यादा दिनों तक सत्ता का सुख नहीं भोग सके, पर ‘जिगर के टुकड़ों’ के दिलों में बस जरूर गये. महामाया प्रसाद सिन्हा के बाद इस समाज के अनेक लोग सत्ता और सियासत के विभिन्न पदों पर रहे, पर मुख्यमंत्री जैसा कोई बड़ा ओहदा हासिल नहीं हो पाया है.

धैर्य खो अवसर गंवा दिया
राज्य की विभिन्न सरकारों में ठाकुर प्रसाद (Thakur Prasad), उमेश्वर प्रसाद वर्मा (Umeshwar Prasad Verma), सुधा श्रीवास्तव (Sudha Srivastava), ओपी लाल (O P Lal), नितिन नवीन (Nitin Naveen ) आदि को मंत्री का पद मिला, उससे ऊपर कुछ नहीं. गौर करनेवाली बात यह भी कि पूर्व में राज्य मंत्रिमंडल में नाम के लिए ही सही, कायस्थ समाज का प्रतिनिधित्व आमतौर पर रहता ही था. सुधा श्रीवास्तव के असामयिक निधन के बाद वह भी खत्म है. 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के प्रधान सचिव रहे यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को राजनीति में मिले आशातीत उभार में मुख्यमंत्री पद की संभावना जगी थी. अपनी अकड़ में उसे उन्होंने खुद खत्म कर दिया. घोर पिछड़ावादी राजनीति के स्वरूप वाले बिहार (Bihar) में नहीं, तो झारखंड (Jharkhand) में उन्हें यह पद हासिल हो जा सकता था. लेकिन, धैर्य खो देने के कारण अवसर हाथ से निकल गया.


एक समय में रविशंकर प्रसाद का राजनीतिक कद इतना बड़ा बन गया कि उसी एक से ‘पूर्णता’ का अहसास होता था. इन सबको दृष्टिगत रख यह कहने में गुरेज नहीं कि बिहार में अन्य दलों में कायस्थ समाज के लिए ‘सुखाड़’ है तो थोड़ी बहुत हरियाली भाजपा में ही है.


भाजपा ने दिया बड़ा ओहदा
भारतीय प्रशासनिक सेवा से मुक्त होने के बाद यशवंत सिन्हा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर (Chandrashekhar) की निकटता हासिल कर जनता पार्टी में शामिल हुए थे. उसी दौरान केन्द्र में मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. बाद में भाजपा (BJP) में शामिल हो गये. भाजपा ने उन्हें बिहार विधानसभा में नेता, प्रतिपक्ष का ओहदा दिया. इस पद पर रहते भाजपा प्रत्याशी के रूप में हजारीबाग (Hajaribagh) संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े और निर्वाचित भी हुए. केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के नेतृत्व में भाजपानीत राजग की सरकार बनी तो उसमें अलग-अलग समय में वित्त और विदेश मंत्री रहे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की प्रथम सरकार में उनके पुत्र जयंत सिन्हा (Jayant Sinha) को राज्यमंत्री का पद मिला.

‘हाशिये का शेर’
भाजपा में फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughan Sinha) भी प्रभावशाली नेताओं में शुमार थे. काफी मान-सम्मान था. केन्द्र में दो बार मंत्री बनने का मौका मिला. बाद के दिनों में अहंकार ऐसा छाया कि यशवंत सिन्हा की तरह वह भी ‘हाशिये का शेर’ बनकर रह गये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के विरुद्ध दोनों की ‘युगलबंदी’ हुई. असर उलटा रहा. भाजपा की राजनीति (Politics) में इन नेताओं के उभरने से पहले पूर्व सांसद डा. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव (Dr Shailendranath Srivastava) का भी अच्छा खासा प्रभाव था. पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा (Naveen Kishor Sinha) ने भी खुद को स्थापित कर लिया. बाद के दिनों में पूर्व सांसद आर के सिन्हा (R K Sinha) की बड़ी सियासी हैसियत बन गयी. बाद के दिनों में रविशंकर प्रसाद (Ravishankar Prasad) का जलवा रहा. नरेन्द्र मोदी की सरकार के दूसरे सोपान में उन्हें विधि मंत्रालय संभालने का अवसर मिला. फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.


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शिकायत दूर हो गयी
विश्लेषकों का मानना रहा कि एक समय में रविशंकर प्रसाद का राजनीतिक कद इतना बड़ा बन गया कि उसी एक से ‘पूर्णता’ का अहसास होता था. इन सबको दृष्टिगत रख यह कहने में गुरेज नहीं कि बिहार में अन्य दलों में कायस्थ समाज के लिए ‘सुखाड़’ है तो थोड़ी बहुत हरियाली भाजपा में ही है. फिलहाल राज्य में इस बिरादरी के तीन विधायक – अरुण कुमार सिन्हा (Arun Kumar Sinha), नितिन नवीन (Nitin Naveen) और रश्मि वर्मा (Rasmi Verma) एवं एक विधान पार्षद – संजय मयुख (Sanjay Mayukh) हैं. सभी भाजपा के ही हैं. इसके बाद भी इस समाज को इसका मलाल रहा कि भाजपा नेतृत्व ने ठाकुर प्रसाद के बाद बिहार में किसी और को मंत्री बनने का अवसर उपलब्ध नहीं कराया . ठाकुर प्रसाद 1977 में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री थे. हालांकि, इस समाज की उक्त शिकायत राजग की पिछली सरकार में नितिन नवीन को मंत्री बनाये जाने से दूर हो गयी.

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