तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

विशेष राज्य : फिर अलाप रहे बेसुरा राग !

शेयर करें:

विष्णुकांत मिश्र
23 नवंबर 2023

Patna : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति आधारित गणना, आर्थिक सर्वेक्षण और आरक्षण प्रतिशत में बढ़ोतरी के रूप में धड़ाधड़ जो तीन ‘राजनीतिक बम’ फोड़े , लगता है सब के सब ‘फुस्स’ हो गये हैं. तभी तो विशेष राज्य (Special State) का तकरीबन तेरह वर्षीय बेसुरा राग फिर से अलापने लगे हैं. वैसे भी जनता को भरमाने के मोहक मुद्दे का अकाल पड़ जाता है तो वह इस खास राग को छेड़ देते हैं. चुनाव के वक्त तो अवश्य ही. इधर, इसे फिर अलापने लगे हैं. कह रहे हैं कि विशेष राज्य के लिए आंदोलन (Movement) करेंगे, मुद्दे को घर- घर तक ले जायेंगे. लेकिन, बड़ा सवाल यहां यह है कि आंदोलन के लिए उन्होंने छोड़ क्या रखा है? अपनी जिद में पूर्व के आंदोलनों में लाखों-करोड़ों खर्च कर अधिकार यात्रा निकाली, राज्यव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलवाया. अलग – अलग तारीख में पटना और दिल्ली में अधिकार रैली आयोजित की. अब कया सब करेंगे?

बना रखा है स्थायी मुद्दा
दरअसल ‘विशेष राज्य’ को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपनी राजनीति का स्थायी मुद्दा बना रखा है. इसलिए आंदोलन-दर – आंदोलन के बावजूद यह न खत्म हुआ है और न खत्म होने वाला है. सोची-समझी रणनीति के तहत उन्होंने इसे राख के नीचे दबा रखा है. जब कभी जनाधार खिसकने, सत्ता हाथ से फिसलने का आभास होता है, केन्द्र के साथ रिश्तों में खटास भरती है, मुद्दे को नये सिरे से सुलगा देते हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि नीतीश कुमार और उनके सलाहकार- रणनीतिकार इस तथ्य को अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा नामुमकिन नहीं, तो उतना आसान भी नहीं है जितना मतलब के मुताबिक लोगों के कान में वे भरते रहते हैं.

2012 में पटना में हुई थी विशेष राज्य के लिए अधिकार रैली.

हर कोई चाहेगा ऐसा
विश्लेषकों (Analysts) का मानना है कि नीतीश कुमार के दावे के आधार पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिला, तो फिर देश का शायद ही कोई राज्य समान्य रह जायेगा. सब के सब विशेष हो जायेंगे. वैसे, इस मांग में बिहार (Bihar) का हित समाहित है. विशेष राज्य का दर्जा मिले, विकास का नया द्वार खुले, ऐसा हर कोई चाहेगा. पर, नीतीश कुमार के इस ‘खंडित एकला अभियान’ से ऐसा कुछ हासिल हो जायेगा, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती है. ‘एकला’ इस मायने में कि इसे उन्होंने बिहार का नहीं, गठबंधन (Alliance) का भी नहीं, जदयू का अभियान बना रखा है. बात जब बिहार के हित की है, तो अन्य राजनीतिक दलों, यहां तक कि गठबंधन के सहयोगी दलों को इससे दूर रखने की नीति और नीयत तो ऐसा ही कुछ दर्शाता है. वर्तमान में महगठबंधन के मुख्य घटक राजद का रुख जो हो, पूर्व में वह इस अभियान को राजनीतिक शिगूफा (Political Dilemma) ही मानता और बताता रहा है.


ये भी पढें :
जदयू में तैर रहा सवाल, किसकी गलेगी दरभंगा में दाल!
तब उस सरकार को ‘भूमिहार राज’ कहा था जेपी ने!
पीएम क्या, अब सीएम लायक भी नहीं रहा मेटेरियल!
अन्य की बात छोड़िये, खुद पर भी विश्वास नहीं उन्हें!


मान रहे हैं राजनीतिक चाल
दरअसल सारा श्रेय खुद बटोरने के ख्याल से नीतीश कुमार सहयोगी दलों को दूर – दूर रख रहे हैं. वैसे, ‌इस हकीकत को समझने वाले राजनीतिक दल खुद इससे दूरी बनाये हुए हैं. कोई साथ है भी तो उसकी भूमिका हां में हां मिलाने भर की है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने की खुशी सबको होगी. पर, इस मुहिम को लोग मूल मुद्दों से आमलोगों का ध्यान भटकाये रखने की नीतीश कुमार की राजनीतिक चाल (Political Move) के रूप में देख रहे हैं. विशेष कर उन तबकों का ध्यान भटकाने का , जिनकी तरसतीं आंखों में पहले ‘सामाजिक न्याय’ और फिर ‘सुशासन’ की ‘सुहावनी राजनीति’ में उत्थान और उन्नति के ऊंचे ख्वाब बसाये गये थे. ख्वाब अधूरे क्यों रह गये? हसरतें पूरी क्यों नहीं हो पायीं? इन चूभते सवालों से बचने के लिए ही तरह-तरह के सियासी स्वांग रचे जा रहे हैं. जाति आधारित गणना, आर्थिक सर्वेक्षण और आरक्षण प्रतिशत में बढ़ोतरी और कुछ नहीं,‌ उसके ही नये रंग – रूप हैं.

#Tapmanlive

अपनी राय दें