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चुनावी राजनीति : बढ़ रही अहमियत सिने सितारों की

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राजकिशोर सिंह
07 दिसम्बर 2023

New Delhi : राजनीति में सक्रियता और चुनावों में सहभागिता का मकसद जो हो, सिने सितारे संसदीय चुनावों में विजय पताका लहरा लोकसभा में पहुंचते रहते हैं. राजनीतिक दलों के समर्पित जमीनी कार्यकर्त्ताओं की हकमारी कर फिल्मी चमक-दमक के सहारे कामयाबी हासिल करनेवाले ऐसे सितारे आमतौर पर मतदाताओं की अपेक्षाओं एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर खरा नहीं उतरते हैं. इसके बावजूद मतदाता (Voter) उन पर लट्टू हो जाते हैं. परिणामतः नेताओं की तुलना में उन्हें आसान जीत मिल जाती है. इसी वजह से राजनीति (Politics) में उनकी अहमियत दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है.

लोकतंत्र का मंदिर
देश की संसद को लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है. यह धारणा 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के संसद के समक्ष शीश नवाने से भी पुष्ट हुई थी. गौरतलब है कि हिन्दुस्तान के तकरीबन 135 करोड़ लोगों में से मात्र 788 को ही इस मंदिर में पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त होता है. लोकसभा के कुल 543 सदस्यों का चयन सीधे तौर पर जनता करती है तो राज्यसभा के 245 सदस्यों में से अधिकतर विधायकों द्वारा चुने जाते हैं. शेष का मनोनयन (Nomination) राष्ट्रपति करते हैं.

अनुभव निराशाजनक
फिल्म जगत से लोकसभा और राज्यसभा में पहुंचने वाले तमाम सांसदों के कार्यकलापों का अनुभव करीब-करीब निराशाजनक (Hopeless) ही रहा है. ऐसे अधिसंख्य सितारे मतदाताओं को मोहित कर चुनाव जीतने के अपने लक्ष्य को इत्मीनान से प्राप्त तो कर लेते हैं, पर जनप्रतिनिधि के रूप में अपने दायित्व का सम्यक निर्वहन नहीं कर पाते हैं. इतिहास (History) बताता है कि अधिकतर ऐसे सांसद सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं बनते हैं. कभी कोई सवाल नहीं उठाते हैं, महत्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद में शामिल नहीं होते हैं.


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जीत का सिलसिला
ऐसे अधिकतर फिल्मी सितारे सांसद जनता के पैसों पर अय्याशी करते हैं और सिने संसार में अपनी हैसियत बढ़ाते हैं. आश्चर्य है कि इन नाकामियों के बावजूद चुनावों में उनकी जीत का सिलसिला बना हुआ है. इसे फिल्म जगत की दूरस्थ चकाचौंध का ही असर माना गया कि पूर्व की तुलना में 2019 के संसदीय चुनाव में फिल्मी सितारों को अधिक तरजीह मिली. खासकर, उत्तर भारत में भाजपा (BJP) और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया.

चिकने चेहरों पर दांव
कुछ अपवादों को छोड़ ऐसे तमाम निवर्तमान सांसदों को तो दोबारा अवसर मिला ही, कई नये चिकने चेहरों पर भी दांव खेला गया. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने बंगाली फिल्मों की दो खूबसूरत अभिनेत्रियों – नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती को मैदान में उतार सियासत और सिने जगत दोनों को चौंका दिया. अभिनेता सनी देओल (Sunny Deol) भाजपा में और अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस में शामिल हो उसके उम्मीदवार बन गये. भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार रवि किशन शुक्ला और दिनेश लाल यादव निरहुआ भी भगवा में रंग गये तो मशहूर सूफी गायक हंसराज हंस भी उसी राह गये.

कई मुंह की खा गये
बहुचर्चित पंजाबी पॉप सिंगर दलेर मेंहदी को भी भाजपा रास आयी, लेकिन उन्हें उम्मीदवारी नहीं मिल पायी. कुछ ऐसी ही स्थिति अभिनेता और गायक अरुण बख्शी की रही. उर्मिला मातोंडकर (Urmila Matondkar) के बाद भाजपा के बहुचर्चित पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का कांग्रेस से जुड़ाव हुआ. इन तमाम नामचीन फिल्मी सितारों (Movie Stars)में कुछ की विजय हुई तो ढेर सारे निराश हुए. दल बदलने वाले शत्रुघ्न सिन्हा, जयाप्रदा, दिनेश लाल यादव निरहुआ, मुनमुन सेन, राजबब्बर, पूनम सिन्हा, प्रकाश राज आदि मुंह की खा गये. बाद में उपचुनावों में शत्रुघ्न सिन्हा और दिनेशलाल यादव निरहुआ निर्वाचित हो गये.

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