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बड़ा सवाल : बंगाल के खेला पर चुप क्यों है कवि!

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अनिल विभाकर
01 फरवरी 2024

मैंने बिलकिस बानो (Bilkis Bano) पर एक नयी कविता पढ़ी. मगर तीस साल से जलावतनी झेल रही उन कश्मीरी महिलाओं के दर्द पर किसी क्रांतिकारी कवि की कोई कविता अब तक नहीं दिखी जिनकी न सिर्फ अस्मत लूटी गयी बल्कि उनके सामने ही दरिंदों ने उनके बच्चों का कत्ल कर दिया. मैंने मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) पर कई कविताएं पढ़ीं मगर पालघर (Palghar) में मारे गये निहत्थे साधुओं पर किसी भी महान क्रांतिकारी कवि की कलम से एक शब्द नहीं फूटा. मैंने फिलिस्तीन की गाजापट्टी के लोगों पर इन दिनों कई कविताएं पढ़ीं मगर इसराइल के लोगों के दुख-दर्द पर कोई कविता नहीं दिखी. ऐसा लगता है कि इसराइल के लोगों के जीवन में जैसे केवल सुख ही सुख हों. उदयपुर के कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) पर भी किसी क्रांतिकारी कवि की कोई कविता पढ़ने-सुनने को मुझे नहीं मिली. दर्जी कन्हैयालाल का किस तरह सिर कलम किया गया यह बताने की जरूरत नहीं.

तब हृदय द्रवित नहीं हुआ
पश्चिम बंगाल (West Bengal) के पुरुलिया में गंगासागर जा रहे निहत्थे साधुओं पर हुए कातिलाना हमले पर भी मुझे कोई कविता पढ़ने को नहीं मिलेगी यह तय है. यह मेरा दृढ़ विश्वास है क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के बाद सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के आतताइयों ने लाखों हिंदुओं के घरों में जिस तरह आगजनी,लूटपाट की और महिलाओं की अस्मत लूटी उसपर किसी क्रांतिकारी कवि-कथाकार का हृदय द्रवित नहीं हुआ. किसी ने कोई कविता-कहानी नहीं लिखी. गुजरात दंगे (Gujarat Riots) पर तो महान कवियों ने सालों दिल खोल कर कविताएं लिखीं,मगर इससे पहले गोधरा में कुछ हुआ यह उन्हें दिखा ही नहीं. कोई कविता नहीं,एक शब्द नहीं लिखा गोधरा पर.

शर्मिंदगी महसूस हुई
हां, यह बात गौर करने की है, उनलोगों ने अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त किये जाने पर दिल खोलकर कविताएं लिखीं. इस विषय पर कविताओं के कई-कई संग्रह छपे. शहर-शहर चौराहों पर डफली बजा-बजा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, लोकतंत्र और संविधान की हत्या का काव्यात्मक और गीतात्मक विलाप किया उन लोगों ने. भाषणों में कहा कि अयोध्या (Ayodhya) में उस स्थान पर राम मंदिर तो बिल्कुल नहीं बनना चाहिए जहां बाबरी मस्जिद थी. वहां पर अस्पताल, धर्मशाला या शौचालय बना देना चाहिए. कुछ क्रांतिकारी कवि तो इतने आहत थे कि अयोध्या की घटना पर वे हिंदू होने पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे.

आपातकाल का समर्थन
एक ने तो अपनी एक कविता में लिखा भी-मैं हिंदू हूं, इसलिए शर्मिंदा हूं. शर्मिंदगी महसूस कर रहे इस कवि को आगे चलकर साहित्य आकदमी पुरस्कार मिला. हिंदू होने पर शर्मिंदा इस क्रांतिकारी कवि के समर्थन में खड़े कई अन्य कवि भी साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गये. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन सभी क्रांतिकारी कवियों ने देश में इमरजेंसी लगाये जाने का दिल खोलकर समर्थन किया था. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) उन्हें कहीं से तानाशाह नहीं बल्कि लोकतंत्र की देवी लगती थीं. हिंदी के इन महान कवियों ने सचमुच महान साहित्य की रचना की है भाई! इन महान कवियों को नहीं लगता कि भारत में पिछले दस साल से लोकतंत्र है. अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir) बनने से तो वे दुखी हैं ही,संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का बेरोकटोक उपयोग भी कर रहे हैं.

अमर्यादित टिप्पणियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर दिल खोलकर अमर्यादित टिप्पणियां कर रहे हैं. नरेन्द्र मोदी का विरोध करते – करते देश तक का विरोध कर रहे हैं. इतना होने के बाद भी उनके खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही. इतनी आजादी के बावजूद उन्हें लगता है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार फासीवादी है. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) इन महान बुद्धिजीवियों को न्याय और लोकतंत्र की देवी लगती हैं. उन्हें यह नहीं लगता कि पश्चिम बंगाल में कहीं कोई किसी तरह की अराजकता है. पुरुलिया में गंगासागर जा रहे साधुओं की बेरहम पिटाई पर वे चुप हैं. केरल,तमिलनाडु और पंजाब को छोड़ इन महान बुद्धिजीवियों को कहीं भी किसी राज्य में सुशासन इसलिए नहीं दिखता क्योंकि वहां भाजपा या भाजपा गठबंधन (BJP Alliance) की सरकारें हैं.

बहुत उदास हैं…
साढ़े पांच सौ साल बाद अयोध्या अयुध्य हुई. नये मंदिर में रामलला प्राणप्रतिष्ठित हो गये. सुप्रीमकोर्ट के आदेश से वहां राम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम का मंदिर बनने से पूरे विश्व के हिंदू आह्लादित हैं मगर कथित अल्पसंख्यकों के ये हृदयसम्राट कवि-लेखक इससे बहुत उदास हैं. ये कवि,लेखक और बुद्धिजीवी हमास (Hamas), हूती (Houthi) और मालदीव (Maldives) के समर्थन में खड़े हैं. भारत का लक्षद्वीप (Lakshadweep) पर्यटन का स्थल बने यह उन्हें नागवार लग रहा है. ताज्जुब तो यह कि प्रधानमंत्री की लक्षद्वीप यात्रा पर मालदीव  ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जिस तरह आपत्तिजनक और अवांछित टिप्पणी की उस पर इन क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों के मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

तनिक भी नहीं जगा देशप्रेम
लक्षद्वीप भारत का अभिन्न अंग है. प्रधानमंत्री वहां गये और लक्षद्वीप की नैसर्गिक छटा की कुछ छवियां दिखाकर पर्यटकों से इस तरफ ध्यान देने की अपील की. यह बात मालदीव सरकार को अच्छी नहीं लगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मालदीव के बारे में एक शब्द नहीं कहा मगर वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जु (Mohamed Muizzu) के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध घोर आपत्तिजनक और अवांछित टिप्पणियां कीं. इस बात पर यहां के क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों (Intellectuals) का देशप्रेम तनिक भी नहीं जागा. इसके विपरीत वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर मालदीव के समर्थन में तरह-तरह की दलीलें दें रहे हैं. अखबारों में लेख लिख रहे हैं.


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इसलिए रहे चुप
मालदीव के समर्थन में वे ऐसा इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि उसके साथ चीन है जो भारत के खिलाफ वहां गहरी साजिश रच रहा है. अपने से असहमत लोगों को वे धर्मनिरपेक्ष (Secular) मानते ही नहीं. इसीलिए वे बिलकिस बानो पर फिर से कविता (Poem) लिखने लगे . बंगाल में खुलकर ‘खेला’ हो रहा है और वे चुप हैं. पालघर की घटना पर वे इसलिए चुप रहे. पुरुलिया की घटना पर वे इसलिए चुप रहेंगे. दरअसल वे देशहित का उल्लंघन करने के आदी हैं. उल्लंघन करने का आदी एक क्रांतिकारी कवि ने लिखी है ‘एक अलग पृथ्वी’ शीर्षक से एक कविता. उसे पढ़ने से ऐसा लगता है जैसे पूरी धरती पर सब जगह गणतंत्र ही गणतंत्र है. और गणतंत्र (Republic) से वह काफी चिंतित है.

पुरस्कारों की माला
कविता के अंत में वह लिखता है-‘ओ सूर्य!, कुछ करो, कुछ ऐसा करो/कि एक और पृथ्वी बनाओ/ जिसे मुल्कों में न तक्सीम किया जा सके/ जो हर बेवतन का वतन हो / जहां हर गणतंत्र से निष्कासित कवि के लिए अपना घर हो!’ महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कवि के गले में ढेर सारे पुरस्कारों की माला है और यह कवि अब तक गणतंत्र से निष्कासित नहीं हुआ है. वह बड़े सुख-चैन से रह रहा है इस धरती पर.

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