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यह राज है भाजपा में नीतीश कुमार की गर्मजोशी भरी अगवानी का!

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विशेष प्रतिनिधि
27 जनवरी 2024

Patna : राज्य में सत्ता परिवर्तन सनिक्कट दिखने के बावजूद नीतीश कुमार को लेकर भाजपा की दुविधा देखने और समझने के लायक है. वह इस दुविधा से उबर नहीं पा रही है. कारण स्पष्ट है. भाजपा की बिहार प्रदेश इकाई नीतीश कुमार से सख्त परहेज करती है. प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने बजाब्ते इस संकल्प के साथ ‘भगवा मुरेठा’ बांध रखा है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सत्ता से उतारने के बाद ही इसे वह अपने सिर से उतारेंगे. उधर, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 2024 के संसदीय चुनाव की बाबत जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं है. उसका मानना है कि दक्षिण के राज्यों में पार्टी लगभग साफ होने के करीब है. ले – देकर हिन्दी पट्टी के राज्यों पर आसरा है.

प्रकृति का है यह नियम
2019 के चुनाव में हिन्दी पट्टी के राज्यों ने सर्वोत्तम योगदान (Outstanding Contribution) किया था. उपलब्धियां उच्च शिखर पर पहुंच गयी थीं. शिखर के बाद आदमी हो या संस्थान, नीचे की ओर ढुलता है. भाजपा इस प्राकृतिक नियम का अपवाद नहीं हो सकती है. इसलिए बिहार में प्रयोग का खतरा मोल नहीं लेना ही उचित होगा. होता वैसा ही कुछ दिख रहा है. हो गया, तो फिर सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) के संकल्प और ‘पगड़ी’ का क्या होगा? ‘पगड़ी’ गिर गयी, तो फिर भाजपा की ‘पगड़ी’ बच पायेगी क्या? इसलिए कि ‘भगवा पगड़ी’ से सिर्फ सम्राट चौधरी का ही नहीं, बिहार के अधिसंख्य भाजपा कार्यकर्ताओं की भी भावना बंधी है. सवाल प्रदेश भाजपा द्वारा नीतीश कुमार के खिलाफ पार्टी के पक्ष में बनाये गये राजनीतिक माहौल (Political Environment) का भी है.

तर्क यह रखा गया
भाजपा के एक हिस्से की समझ है कि नीतीश कुमार के बदले राजपाट लालू – राबड़ी परिवार में आ जाये. ऐसा होने पर आमने- सामने की लड़ाई होगी. नीतीश कुमार की राजनीति समाप्त हो जायेगी. दो हिस्से में राजनीति होने का लाभ नीतीश कुमार को मिलता रहा है. उनकी अपनी कोई राजनीतिक पहचान नहीं रही है. लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के जितने विरोधी हैं, सब नीतीश कुमार के खाते में जमा होते रहे हैं. अगर भाजपा एक तरफ रही तो नीतीश कुमार के तमाम विरोधी उसके पक्ष में चले आयेंगे . बस, तब किसी और चीज की जरूरत नहीं रह जायेगी. कायदे से यह रणनीति बेहतर मानी गयी. लेकिन, इसके जोखिम (Risk) का आकलन भी किया गया.


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1990 का‌ उदाहरण
आकलन यह कि एक बार लालू – राबड़ी परिवार में शासन चला गया तो अगले 20 साल तक भाजपा राज्य में सरकार बनाने से वंचित रह जायेगी. ऐसा होने पर भाजपा (BJP) नेतृत्व की अभी वाली पीढ़ी बिना सत्ता सुख भोगे विदा हो जायेगी. डर निरर्थक नहीं है. भाजपा में जो लोग इस आकलन से जनित डर को निरर्थक मान रहे हैं, उन्हें 1990 का उदाहरण दिया जा रहा था. उस समय लालू प्रसाद की सरकार अल्पमत (Minority) की थी. यहां तक कि सरकार बनाने के लिए लालू प्रसाद को भाजपा की मदद भी लेनी पड़ी थी. भाजपा ने बाहर से समर्थन देने का पत्र लिखकर राज्यपाल (Governor) को दिया था, तभी लालू प्रसाद को शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित किया गया था.

तेजस्वी के हाथ में गया तब!
उसके बाद क्या हुआ, सबको पता है. सभी दलों में तोड़फोड़ करके लालू प्रसाद ने अपनी सरकार को अपराजेय बना दिया. 1990 में आज गिरी-कल गिरी की भविष्यवाणी (Prediction) को गलत ठहराते हुए सरकार 15 साल तक चली. वह भी उस हालत में जब सरकार पर पशुपालन घोटाला का बड़ा आरोप लगा था. तेजस्वी प्रसाद यादव पर तो कोई आरोप भी नहीं लग पायेगा.यही आकलन भाजपा को सरकार बनाने के लिए प्रेरित कर रहा है. भाजपा के चतुर सुजान यही कह रहे हैं कि उम्र के कारण लालू प्रसाद को कुछ ही दिन झेलना पड़ेगा. शासन तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) के हाथ में गया तो अनंत काल तक प्रतीक्षा करनी होगी.

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