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महागठबंधन में महासंग्राम : वामपंथी दलों ने कर रखी है नींद हराम!

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विष्णुकांत मिश्र
09 फरवरी 2024

Patna : बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग (NDA) की सरकार के अस्तित्व पर मच रहे सियासी शोर के बीच राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव की राजनीति (Politics) भी गर्म है. इस राज्य में छह सीटों पर चुनाव होना है. प्रक्रिया चल रही है. राजग और महागठबंधन, दोनों की तीन-तीन सीटें खाली होने वाली हैं. महागठबंधन (Mahagathbandhan) की खाली होने वाली सीटों में राजद (RJD) के मनोज कुमार झा और अशफाक करीम तथा कांग्रेस (Congress) के डा. अखिलेश प्रसाद सिंह की सीटें शामिल हैं. महागठबंधन के घटक दलों के विधायकों की जो कुल संख्या है उसमें उसके तीन उम्मीदवारों की पुनः जीत हो सकती है. तो क्या वर्तमान के ही तीनों की वापसी हो जायेगी या नये चेहरों को मौका मिलेगा? राजनीति में रुचि रखनेवाले लोग इसमें मगज खपा रहे हैं. क्या होगा क्या नहीं, यहां उसी की चर्चा की जा रही है.

दिखती है संभावना
पहले मनोज कुमार झा (Manoj Kumar Jha) की संभावनाओं पर नजर डालते हैं. मनोज कुमार झा राजद के प्रखर-प्रवीण व शालीन प्रवक्ता हैं. संबद्ध मुद्दों पर पार्टी के पक्ष को तर्कसंगत तरीके से रखते हैं. उनके वक्तव्यों से विद्वता टपकती है और गंभीरता भी झलकती है. उनकी इस खासियत को विरोधी भी मानते हैं. ‘सामाजिक न्याय’ के दायरे से परे रहने के बाद भी पटना और दिल्ली, हर जगह राजद के हित में मोर्चा संभाले रहते हैं. नेतृत्व की नाक नहीं कटने देते हैं. पार्टी में ऐसे गुणों से परिपूर्ण कोई विकल्प दूर-दूर तक नहीं दिखता है. इसलिए उन्हें दोबारा अवसर मिल सकता है. वैसे, बात राजनीति की है, दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता. पर, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस मामले में उन्हें हाशिये पर डालना राजद के लिए दुर्भाग्य को आमंत्रित करना होगा.

छाये हैं संशय के बादल
जहां तक अशफाक करीम (Ashfak Karim) की बात है, तो दूसरे प्रसंग में उन्हें भी राजद के लिए अपरिहार्य माना जाता है. इसके बावजूद सदस्यता के दोहराव पर संशय के बादल छाये हुए हैं. लोकसभा (Loksabha) की सदस्यता की लम्बी चाहत रखने वाले अशफाक करीम को संसदीय चुनाव में उम्मीदवार बनाये जाने पर मंत्रणा हुई थी. कटिहार (Katihar) संसदीय क्षेत्र को उनके लिए चिह्न्ति किया गया था. पर, कांग्रेस की प्राथमिकता सूची से उसे बाहर कर देना आसान नहीं है. इसलिए कि कटिहार से कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तारिक अनवर (Tarik Anwar) चुनाव लड़ते हैं. इस बार भी लड़ेंगे ही. अशफाक करीम को मौका नहीं मिल पायेगा. उधर, उनके लिए लोकसभा चुनाव का क्षेत्र तलाशने के क्रम में राज्यसभा में उनकी जगह रोगग्रस्त पिता लालू प्रसाद (Lalu Prasad) को नयी जिन्दगी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाली बेटी रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) को अवसर मिलने की संभावना जगी थी. हालांकि, कुछ ही समय बाद खुद-ब-खुद वह संभावना लुप्त हो गयी.

बात राजश्री यादव की
इधर, राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) की पत्नी राजश्री यादव (Rajshree Yadav) के नाम की चर्चा होने लगी है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नयी सरकार के शक्ति परीक्षण के संदर्भ में जदयू (JDU) विधायकों में टूट से संबंधित अचानक आये उनके बयान से इस चर्चा को बल मिला है. खुद को राजनीतिक मामलों से अलग रखने वाली राजश्री यादव के जदयू के 17 विधायकों के पार्टी से अलग हो जाने संबंधित बयान को राजनीति उसी नजरिये से देख रही है. यह सब तो है, लेकिन रोहिणी आचार्य या फिर राजश्री यादव पर निर्णय शायद ही हो पायेगा. कारण कि राजनीति के वर्तमान दौर में परिवारवाद को जिस ढंग से राजनीति का बड़ा मुद्दा बना दिया गया है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस आक्रामक अंदाज में इस पर प्रहार कर रहे हैं, उसके मद्देनजर राजद नेतृत्व फिलहाल इससे बचना चाहेगा. वैसे, पार्टी अपनी है, निर्णय खुद लेना है. उस लिहाज से ऐसी कोई आलोचना उसके लिए कोई खास मायने नहीं रखती है.

उद्वेलित है यह समुदाय भी
सवाल अब यह उठता है कि अशफाक करीम की सदस्यता के दोहराव की गुंजाइश नहीं बनती है, तो फिर राजद का दूसरा उम्मीदवार कौन होगा? इस सवाल पर पार्टी में मंथन चल रहा है. लोकसभा का चुनाव ज्यादा नहीं, दो-ढाई माह दूर है. उसे देखते हुए राजद का निर्णय सामाजिक समीकरण अनुकूल बनाये रखने की सोच पर ही आधारित होगा. लम्बे समय से मुस्लिम समुदाय उसकी वोट की राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस समुदाय को वह कतई रुष्ट नहीं करना चाहेगा. जदयू (JDU) के महागठबंधन से अलग हो जाने के बाद तो और भी नहीं. राजनीति की हल्की-फुल्की समझ रखने वाले लोग भी ऐसा कहेंगे. गौर करने वाली बात यहां यह भी है कि जाति आधारित गणना के आंकड़ों पर केन्द्रित ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के नारे ने इस समुदाय को भी उद्वेलित कर रखा है.

गैर मुस्लिम विकल्प
सत्ता और सियासत में दीर्घ उपेक्षा से मुस्लिम समुदाय पहले से व्यथित है ही, अशफाक करीम का विकल्प किसी गैर मुस्लिम को बनाया गया, तो राजद की राजनीति पर असर क्या पड़ सकता है , यह बताने की शायद जरूरत नहीं. ऐसे में किसी दूसरे मुस्लिम नेता की किस्मत चमक जाये, तो वह हैरान करने वाली बात नहीं होगी. पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दिकी (Abdul Bari Siddqui) और दिवंगत पूर्व बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन (Sahabuddin) की पत्नी हीना शहाब (Hina Shahab), दो ऐसे नाम हैं जो इसकी पात्रता रखते हैं. साथ में आकांक्षा भी. इनमें किसी पर नेतृत्व की नजरें इनायत होती भी है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा. महागठबंधन में राज्यसभा की तीसरी सीट पर बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह (Dr Akhilesh Prasad Singh) काबिज हैं. दोबारा सदस्यता हासिल करने के लिए वह सब कुछ कर रहे हैं, जो कर सकते हैं. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की ‘कृपा’ पाने के लिए हर उपक्रम कर रहे हैं.


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वामपंथ को क्यों नहीं?
इसके बाद भी डा. अखिलेश प्रसाद सिंह का रास्ता आसान नहीं दिख रहा है. वामपंथी दल अवरोध खड़ा कर रहे हैं. 2018 में उनकी राह निष्कंटक थी. कांग्रेस के 27 विधायक थे. 03 विधायकों की संख्या वाले वामपंथी दल तब महागठबंधन में नहीं थे. वैसी स्थिति में कांग्रेस के दावे को स्वीकार करने में राजद को कोई परेशानी नहीं हुई थी. इस बार कांग्रेस के मात्र 19 विधायक हैं, वामपंथी दलों के 16. भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य (Dipankar Bhattacharya) को उम्मीदवार के रूप में पेश कर वामपंथी दलों ने महागठबंधन की तीसरी सीट पर दावेदारी पेश कर रखी है. सवाल उठाया जा रहा है कि जब 19 विधायकों के संख्या बल पर कांग्रेस को राज्यसभा और विधान परिषद की एक- एक सीट दी जा सकती है तो 16 विधायकों की हैसियत वाले वामपंथी दलों को राज्यसभा की एक सीट क्यों नहीं? यही सवाल महागठबंधन के रणनीतिकारों की नींद हराम किये हुए है.

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