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आखिर, गाज गिरवा ही दी गिरिराज ने उनके अरमानों पर!

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विनोद कर्ण
07 मार्च 2024

Begusarai : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बिहार में अभियान की शुरुआत औरंगाबाद (Aurangabad) और बेगूसराय (Begusarai) से हुई. दो मार्च को पहले औरंगाबाद और फिर बेगूसराय में उन्होंने हजारों करोड़ों की विविध योजनाओं-परियोजनाओं का शिलान्यास किया तो कुछ का विधिवत उद्घाटन. औरंगाबाद में लोग गदगद हुए. बेगूसराय को भी संतुष्टि मिली, पर थोड़ी-सी कसक रह गयी कि प्रधानमंत्री (Prime Minister) ने एकमुश्त इतनी सारी योजनाओं का शिलान्यास किया, बहुप्रचारित-बहुप्रतीक्षित शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल छूट कैसे गया? कोई तकनीकी वजह रही या इसके निर्माण की बाबत लोग अब तक जो देख-सुन रहे थे वे सब हवाबाजी थी?

चर्चा तक नहीं की प्रधानमंत्री ने
शिलान्यास की बात तो दूर,‌ नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में इस कथित प्रस्तावित गंगा पुल की चर्चा तक नहीं की. आखिर, ऐसा क्यों? आम लोगों के बीच तरह-तरह की बातें, तरह-तरह की चर्चाएं. आशंका यह भी कि बेगूसराय के साथ कहीं कोई छल तो नहीं हुआ? खैर, पूर्व में प्रचारित-प्रसारित संबंधित सरकारी कागजात के स्मरण में आने से दिल को तसल्ली मिली, छल नहीं हुआ है. मन में यह बात भी आयी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह जिम्मेदारी केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी (Nitin Gadkari) के लिए छोड़ दी हो.

बेगूसराय के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.

इन्हें हुई सबसे अधिक निराशा
भाजपा (BJP) के विरोधियों ने इस प्रकरण पर कुछ इस रूप में कटाक्ष किया कि पुल बन कर भले तैयार हो जाये, आवागमन भी शुरू हो जाये, नरेन्द्र मोदी सत्ता में रहे तो 2029 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) के वक्त इसका शिलान्यास कर देंगे! प्रधानमंत्री के बेगूसराय की सभा में शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल पर एक शब्द भी नहीं बोलने से तात्कालिक तौर पर किसी एक व्यक्ति को सर्वाधिक निराशा हुई तो वह सांसद प्रो. राकेश सिन्हा (Prof. Rakesh Sinha) हैं. ऐसा इसलिए कि बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की लम्बी ख्वाहिश रखने वाले प्रो. राकेश सिन्हा ने इसी गंगा पुल के सहारे चुनावी वैतरणी पार लग़ा लेने का ख्वाब बुन रखा है.

पहल उनकी ही थी
गौर करने वाली बात यह भी है कि इसी शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल अभियान से प्रो. राकेश सिन्हा को बेगूसराय में नयी पहचान बनी है. समर्थकों का मानना है कि उनकी इस पहचान से घबराये गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल का जिक्र नहीं होने दिया. प्रो. राकेश सिन्हा बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से भाजपा के मजबूत दावेदार हैं. उनकी दावेदारी गिरिराज सिंह को पच नहीं रही है. इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल (Ganga Bridge) की स्वीकृति मुख्य रूप से प्रो. राकेश सिन्हा की पहल से मिली है. वर्तमान में वहां भूमि सीमांकन का काम चल रहा है. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या आवंटित होने की प्रक्रिया जारी है.


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लग न जाये ग्रहण
ऐसे में बेगूसराय की सभा में नरेंद्र मोदी ने इसका उल्लेख नहीं किया तो निश्चय ही इसके पीछे कोई गहरा रहस्य हो सकता है. स्मरण कीजिये, कुछ समय पूर्व प्रो. राकेश सिन्हा ने खुले तौर पर कहा था कि ‘राहु-केतु’ की नजर नहीं लगे तो इस पुल को बनने में विलंब नहीं होगा. ऐसी बातें उन्होंने तब कही थी जब पुल के सर्वेक्षण का टेंडर रद्द हो गया था. हालांकि, सर्वेक्षण का काम बाधित नहीं हुआ था. दोबारा टेंडर कराने में प्रो. राकेश सिन्हा कामयाब हो गये थे. बहरहाल, पुल निर्माण की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है. पर, नरेन्द्र मोदी की सभा के बाद यह आशंका गहराने लगी है कि ‘राहु-केतु’ के कारण इस पर फिर ग्रहण लग जा सकता है

दूसरी कतार में मिली जगह
शाम्हो-मटिहानी गंगा पुल के प्रसंग में ही नहीं, मंच पर स्थान को लेकर भी प्रो. राकेश सिन्हा की ओर राजनीति का ध्यान गया. सभा का संयोजक पूर्व विधान पार्षद रजनीश कुमार (Rajnish Kumar) को बनाया गया था. आगे क्या होगा क्या नहीं, यह‌ वक्त के गर्भ में है. फिलहाल इस जिम्मेदारी को उनके राजनीति (Politics) की मुख्य धारा में लौटने के रूप में देखा जा रहा है. क्षेत्रीय सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के नाते सभा मंच पर कौन कहां बैठेगा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात किस-किस की होगी, यह गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने तय किया. लोगों ने‌ महसूस किया कि इसी वजह से बेगूसराय जिला निवासी राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश सिन्हा को मंच पर पहली कतार में बैठने का मौका नहीं मिला. वह दूसरी कतार में आसीन दिखे.

तब धरा रह जायेगा मंसूबा
इन सबसे स्पष्ट संकेत मिलता है कि प्रो. राकेश सिन्हा के बेगूसराय से संसदीय चुनाव लड़ने के अरमान शायद पूरे नहीं हो पायेंगे. उम्मीदवारी फिर से गिरिराज सिंह को ही मिल जा सकती है. अन्य दावेदारों के हाथ निराशा ही आयेगी. प्रो. राकेश सिन्हा के लिए परेशानी की बात यह भी है‌ कि बेगूसराय जिला भाजपा में उनकी इस पीड़ा को मुखरता देने वाला कोई नहीं है. विश्लेषकों की समझ है कि ऐसी स्थिति में उन्हें खुद‌ आवाज‌ उठानी होगी, अन्यथा बेगूसराय से संसदीय चुनाव लड़ने का मंसूबा धरा रह जा सकता है.

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