लाचार दिख रहे नीतीश कुमार !
विशेष प्रतिनिधि
14 मार्च 2024
Patna : आमलोगों की यह धारणा अब धीरे -धीरे पुष्ट हो रही है कि बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नहीं,अप्रत्यक्ष रूप से अमित शाह की सरकार चल रही है. राजग में भी उनकी ही मर्जी को महत्व मिल रहा है. संसदीय सीटों के बंटवारे में नीतीश कुमार की इच्छा के विपरीत पशुपति कुमार पारस को हाशिये की ओर सरका चिराग पासवान को तवज्जो दिया जाना इसका ज्वलंत उदाहरण (Vivid Example) है. सिर्फ यही नहीं, ऐसे और भी कई मामले हैं.जो इस सामान्य समझ को ठोस आधार प्रदान करते हैं. इन सबके मद्देनजर विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के प्रभुत्व वाले दिन उसी दिन समाप्त हो गये, जब उन्होंने भाजपा के सान्निध्य में नौंवी बार सत्य और निष्ठा की शपथ ली थी. राजनीति ने महसूस किया कि वह इससे पहले के आठ समारोहों से अलग था, जिसमें नीतीश कुमार की कोई शर्त लागू नहीं हुई.
पड़ गया उनपर असर
राजनीति (Politics) के गलियारे की चर्चाओं पर विश्वास करें, तो नीतीश कुमार की पहली शर्त थी कि सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा इस सरकार में नहीं रहेंगे. अमित शाह (Amit Shah) ने इस शर्त को यह कह काट दिया कि ये दोनों न सिर्फ रहेंगे बल्कि आपके दायें-बायें रहेंगे और इस बात का भी ख्याल रखेंगे कि आप इधर – उधर नहीं करेंगे. नीतीश कुमार की दूसरी शर्त यह थी कि सुशील कुमार मोदी को साथ रखेंगे. उधर से कह दिया गया कि साथ कहां रखेंगे? डिप्टी के एक के बदले दोनों पद तो भर दिये गये हैं. इस शर्त का असर इस रूप में देखिये, नीतीश कुमार से दोस्ती के फेर में सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) बेचारे बन गये. डिप्टी चीफ मिनिस्ट्री पहले खिसक गयी थी, फेरबदल में राज्यसभा वाली कटपीस की सीट भी हाथ से निकल गयी.
शर्त यह भी जुड़ गयी
कहते हैं कि नीतीश कुमार की तीसरी शर्त यह थी कि विधानसभा का अध्यक्ष जदयू का होगा. इस शर्त को बिना समय गंवाये खारिज कर दिया गया. उनकी चौथी शर्त मान ली गयी. यह कि गृह और सामान्य प्रशासन विभाग उनके पास ही रहेगा. लेकिन, इसके साथ यह शर्त जुड़ गयी कि डीएम और एसपी के अलावा एसडीओ और डीएसपी के पदों पर तैनाती में भाजपा (BJP) के मंतव्य को वरीयता दी जायेगी. जानने वाली बात यहां यह भी है कि नीतीश कुमार का आग्रह था कि लोकसभा चुनाव के समय दरभंगा की सीट जदयू को दे दी जाये. अमित शाह ने दोनों होठों को बंद कर उस पर अपनी अंगुली रख दी. संकेत यह कि दरभंगा भाजपा लड़ेगी. नीतीश कुमार जिन्हें संसद (Parliament) में भेजने के लिए व्याकुल हैं, उन्हें राज्यसभा में भेज दें. नीतीश कुमार ने वैसा ही किया.
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देखा, सबने देखा
नीतीश कुमार की शर्त सुनने के बाद अमित शाह ने कुछ अपनी शर्तें भी रखीं. उनमें पहली यह कि आपके सांसद लोकसभा के चलते सत्र में विपक्षी गठबंधन को खरी-खोटी सुनायेंगे. इडी और सीबीआई की मुक्त कंठ से प्रशंसा करेंगे. नीतीश कुमार ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार किया, लागू भी किया. सबने देखा कि पिछले सत्र में इन एजेंसियों के कार्यकलापों की धज्जियां उड़ाने वाले उनके वही सांसद लोकसभा में केंद्र सरकार (Central Government) की उन्हीं एजेंसियों की शान में कसीदे काढ़ रहे हैं. दोनों एजेंसियों पर लगे इन आरोपों की बिना वाशिंग मशीन की मदद के धुलाई कर रहे हैं कि ये एजेंसियां विपक्षी नेताओं के घर पर छापे मारती हैं. परेशान करती हैं.
होगा, आगे बहुत कुछ होगा
अमित शाह की शर्तें यहीं समाप्त हो गयीं वैसी बात नहीं. यूं कहें कि अभी तो शुरू हुई हैं. चर्चाओं पर भरोसा करें, तो नीतीश कुमार चाहते थे कि चिराग पासवान को किनारे कर राजग में पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) को महत्व मिले. लेकिन, हो गया इसके उलटा. अभी ऐसा और भी बहुत कुछ होना है. आगे देखियेगा कि नीतीश कुमार ने 2019 में जीती अपनी कई संसदीय सीटें अमित शाह को समर्पित कर दिया है. बहरहाल, राजग (NDA) में चिराग पासवान (Chirag Paswan) के सम्मान की वापसी कलेजे पर मूंग दलने के समान ही है!
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