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राजद ने ठुकरा दिया तब क्या करेंगे देवेन्द्र?

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राजेश पाठक
15 मार्च 2024

Madhubani : झंझारपुर संसदीय क्षेत्र में महागठबंधन में इकलौता दावा राजद का बनता है. पूर्व सांसद देवेन्द्र प्रसाद यादव उसके संभावित उम्मीदवार हैं, ऐसा राजनीति महसूस कर रही है. वह अभी राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. 2024 का संसदीय चुनाव लड़ने की जोरदार तैयारी कर रहे हैं. उनकी इस तैयारी के बीच यह सवाल भी फन काढ़े हुए है कि हर चुनाव में उम्मीदवार रहने वाले पूर्व सांसद देवेन्द्र प्रसाद यादव (Devendra Prasad Yadav) का राजद में दावेदारी खारिज हो जाने पर भविष्य क्या होगा? क्या वह फिर दूसरे किसी राजनीतिक शामियाने में आसन जमायेंगे? यह सवाल इसलिए कि उम्मीदवारी नहीं मिलने पर दल बदल लेना या फिर निर्दलीय (Independent) मैदान में कूद जाना उनकी फितरत है.

राजद का उम्मीदवार बन गये
2004 से उनमें यह प्रवृत्ति कुछ अधिक देखी जा रही है. तब वह सीटिंग सांसद थे. जदयू (JDU) नेतृत्व ने उन्हें नजरंदाज कर पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र (Dr. Jagannath Mishra) को उम्मीदवार बना दिया. इस खुन्नस में देवेन्द्र प्रसाद यादव राजद का उम्मीदवार बन गये. संयोगवश जीत भी गये. संयोगवश (Coincidentally) इसलिए कि उनकी जीत मात्र 12 हजार 965 मतों के अंतर से ही हुई. चुनाव के आंकड़ों से इसे बड़ी सरलता से समझा जा सकता है. उस चुनाव में देवेन्द्र प्रसाद यादव को प्राप्त 03 लाख 23 हजार 400 मतों के मुकाबले डा. जगन्नाथ मिश्र को 03 लाख 10 हजार 565 मत मिले थे. पूर्व विधायक देवनाथ यादव समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार थे.42 हजार 859 मत झटक कर उन्होंने परिणाम के रुख को बदल दिया.

हैरानी भरा निर्णय था जदयू का
ऐसा माना जाता है कि अखाड़े में वह नहीं होते तो खुशी और गम का स्वरूप बदला हुआ दिख सकता था. खैर, हार-जीत अपनी जगह है. पिछड़ों-अतिपिछड़ों के इस सर्वाधिक मजबूत गढ़ से किसी सवर्ण, वह भी ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाना जदयू का हैरानी भरा निर्णय था. घोर पिछड़ावादी मानसिकता (Extremely Backward Mentality) के बीच ब्राह्मण उम्मीदवार को 03 लाख से अधिक मत मिल जाना भी अपने आप में चौंकाने वाली चुनावी उपलब्धि रही. इससे डा. जगन्नाथ मिश्र के जनाधार के नहीं सिकुड़ने की धारणा को तो मजबूती मिली ही, अतिपिछड़ों पर नीतीश कुमार की पकड़ की पुष्टि भी हुई.


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बाजी भाजपा के हाथ लग गयी
देवेन्द्र प्रसाद यादव के लिए 2009 के चुनाव को अपवाद माना जा सकता है. इस रूप में कि तब वह राजद के ही उम्मीदवार हुए, लेकिन जीत नहीं पाये. जदयू के मंगनीलाल मंडल (Manganilal Mandal) से मात खा गये. 2014 में राजद ने उन्हें हाशिये पर डाल दिया, जदयू का उम्मीदवार बन गये. उधर, जदयू ने मंगनीलाल मंडल को उपेक्षित कर दिया तो राजद के शरणागत हो उसका उम्मीदवार बन गये. इन दोनों की भिड़ंत में बाजी भाजपा के वीरेन्द्र कुमार चौधरी के हाथ लग गयी. 2014 की अप्रत्याशित हार (Unexpected Defeat) के बाद देवेन्द्र प्रसाद यादव समाजवादी पार्टी से जुड़ गये. उसने उन्हें बिहार प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया. लेकिन, 2019 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) से कुछ ही समय पूर्व उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा (Resign) दे उसका साथ छोड़ दिया.

जदयू में विलय कर दिया
देवेन्द्र प्रसाद यादव की अपनी एक पार्टी है- समाजवादी लोकतांत्रिक दल. 2014 में इसका विलय उन्होंने जदयू में कर दिया था. 2019 में न तो राजद ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और न जदयू ने. समाजवादी लोकतांत्रिक दल का बैनर लिये वह निर्दलीय मैदान में उतर गये. 25 हजार 630 मतों में सिमट कर रह गये. 2022 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में भी उन्हें करीब-करीब ऐसे ही हालात से दो-चार होना पड़ा. भविष्य संवारने के ख्याल से 23 मार्च 2022 को राजद में लौट गये. अपनी पार्टी समाजवादी लोकतांत्रिक दल का उसमें विलय कर दिया. 25 नवम्बर 2022 को उन्हें राजद (RJD) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया. (जारी)

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