चैत, चैती और चैता : चढ़ल चइत चित लागेल न हो रामा…
भारतीय ऋतु चक्र में चैत को ‘मधुमास’ कहा गया है. मधुमास मतलब मिलन का महीना. इसमें माधुर्य है, संयोग का उल्लास है, तो विरह की वेदना भी है. इस दृष्टि से विरहणियों के लिए इसे बेहद पीड़ादायक माना जाता है. फागुन उन्मादी महीना है तो चैत पिया-वियोग की पीड़ा जगा-बढ़ा देने वाला उत्पाती महीना. इसलिए इसे फागुन की परिणति के तौर पर देखा और समझा जाता है: चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत के रतिया… इसी संयोग और वियोग पर आधारित सुरूचिपूर्ण आलेख का यह प्रथम अंश है :
शिवकुमार राय
12 अप्रैल 2024
फागुन की मादकता चैत (Cait) की अलसायी रातों में लुप्त होने लगती है तब शृंगार का आकर्षण-सम्मोहन छाने लग जाता है. महाकवि कालिदास (great poet kalidas) ने ‘ऋतुसंहार’ में कहा भी है-‘चैत्र मास की वासंतिक सुषमा से परिपूर्ण लुभावनी शामें, छिटकी चांदनी, कोयल की कूक, सुगंधित पवन, मतवाले भौरों का गुंजार और रात में आसवपान- ये शृंगार-भाव को जगाये रखने वाले रसायन ही हैं.’ इन्हीं रसायनों के कारण भारतीय ऋतु चक्र (seasonal cycle) में चैत को ‘मधुमास’ कहा गया है. मधुमास मिलन का महीना है. इसमें माधुर्य है, संयोग का उल्लास है, तो विरह की वेदना भी है. इस दृष्टि से विरहणियों के लिए इसे बेहद पीड़ादायक माना जाता है. फागुन उन्मादी महीना है तो चैत पिया-वियोग की पीड़ा जगा-बढ़ा देने वाला उत्पाती महीना. इसलिए इसे फागुन (Phāgun) की परिणति के तौर पर देखा और समझा जाता है :
चांदनी चितवा चुरावे हो रामा
चैत के रतिया
मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोलै
मधुर पवन अलसावे हो रामा
चैत के रतिया
लोकमानस का समग्र रूप
भारत की ऋतु सुलभ लोक गायन की परंपरा में चैत माह के लिए भी विशेष गीत-संगीत है जिसे चैती, चैता, चैतार, चैतावर या घाटो कहा जाता है. श्रुति परंपरा में इस लोक गीत-संगीत की धारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी कंठ से कंठ होकर अविरल बह रही है. इसमें लोकमानस का समग्र रूप चित्रित-वर्णित है. वैसे तो मूल रूप में यह लोकगीत है, पर शास्त्रीय संगीत के कुछ मशहूर गायकों ने ठुमरी, ध्रुपद, धमार, दादरा (Thumri, Dhrupad, Dhamar, Dadra) शैली में गाकर इसे शास्त्रीय (Classical) स्वरूप में भी ढाल दिया है. इसे उपशास्त्रीय बंदिशों के रूप में भी गाया जाता है. आमतौर पर ये राग वसंत या मिश्र वसंत में निबद्ध होते हैं. इसकी खासियत है कि गीतों में संयोग और वियोग दोनों का सुंदर संयोजन होता है .बारहमासे में भी चैत महीना गीत-संगीत के माह के रूप में वर्णित है –
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जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
चढ़ल चइत चित लागेल न हो रामा
बाबा के भवनमा
बीर बभनमा सगुनमा विचारो
कब होइहें पिया से मिलनमा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागेल न हो रामा
शुरुआत त्रेता युग में हुई
चैती गायन की शुरुआत कब और कैसे हुई, इतिहास (History) में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है.पर, चर्चित लेखिका मीनाक्षी प्रसाद का मानना है कि भारतीय संस्कृति (Indian culture) में जन्म, नामकरण, यज्ञोपवीत संस्कार एवं अन्य तमाम वैदिक अनुष्ठानों के वक्त लोेकगीत और भजन गाये जाते हैं. भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) का जन्म चैत्र में हुआ. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि चैती गायन की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी. तर्क यह भी कि चैती में ‘हो रामा’ टेक लगाकर गाने का चलन है और राम जन्म, राम-सीता की होली और राम विवाह से संबंधित कई चैती गाये जाते हैं. मीनाक्षी प्रसाद के इस कथन पर सहमति-असहमति की बात अपनी जगह है, चैत महीना धार्मिक आस्थाओं एवं भावनाओं से जुड़ा है, यह निर्विवाद है. रामनवमी (Ram Navami) के दिन उत्सवी माहौल में रामजन्म एवं उनके जीवन से संबंधित प्रसंगों पर आधारित चैता या चैती गायन का अपना अलग महत्व है. उस दिन चैती धुन में रामायण पाठ (Ramayan Path) की भी परम्परा है.
चढ़ले चइतवा राम जनमलें हो रामा
घरे-घरे बाजेला आनंद बधइया हो रामा
दसरथ लुटावे अनधन सोनमा हो रामा
कैकेयी लुटावे सोने के मुनरिया हो रामा
#tapmanlive चित्र: सोशल मीडिया