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चैत, चैती और चैता : आयल चइत उत्पतिया हो रामा…

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भारतीय ऋतु चक्र में चैत को ‘मधुमास’ कहा गया है. मधुमास मतलब मिलन का महीना. इसमें माधुर्य है, संयोग का उल्लास है, तो विरह की वेदना भी है. इस दृष्टि से विरहणियों के लिए इसे बेहद पीड़ादायक माना जाता है. फागुन उन्मादी महीना है तो चैत पिया-वियोग की पीड़ा जगा-बढ़ा देने वाला उत्पाती महीना. इसलिए इसे फागुन की परिणति के तौर पर देखा और समझा जाता है: चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत के रतिया… इसी संयोग और वियोग पर आधारित सुरूचिपूर्ण आलेख का यह तृतीय अंश है :


शिवकुमार राय
14 अप्रैल 2024

प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री डा. शांति जैन (Dr. Shanti Jain) के एक आलेख में चैती की विशद व्याख्या की गयी है. उसमें कहा गया है-‘चैती गीतों में प्रेम के विविध रूपों की व्यंजना है. इनमें संयोग शृंगार की कहानी भी रागों में लिखी हुई है. कहीं आलसी पति को सूर्योदय के बाद सोने से जगाने का वर्णन है तो कहीं पति-पत्नी के प्रणय-कलह की झांकी देखने को मिलती हैं. कहीं ननद और भौजाई के पनघट पर पानी भरते समय किसी दुश्चरित्र पुरुष द्वारा छेड़खानी का उल्लेख है तो कहीं सिर पर मटका रखकर दही बेचनेवाली ग्वालिनों से कृष्ण के द्वारा गोरस मांगने का वर्णन है. कहीं कृष्ण-राधा के प्रेम-प्रसंग हैं तो कहीं राम-सीता का आदर्श दांपत्य प्रेम है. कहीं दशरथनंदन के जन्म का आनंदोत्सव है तो कहीं राम और उनके भाइयों का नैसर्गिक प्रेम. कहीं स्वीकिया तथा कहीं परकीया नायिका के प्रेम के विविध रूप दिखाये गये हैं.

विभिन्न कथानकों का समावेश
तात्पर्य यह कि चैती गीतों में विभिन्न कथानकों का समावेश पाया जाता है. इन गीतों में वंसत की मस्ती एवं इंद्रधनुषी भावनाओं का अनोखा सौंदर्य है. इनके भावों से छलकती रसमयता लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है…. चैती गीतों में कहीं-कहीं भावनाओं का इतना प्रभावशाली चित्रण हुआ है जो हृदय को छू जाता है. इनमें दैनिक जीवन के शाश्वत क्रिया कलापों का चित्रण है. साथ ही इनमें चित्र-विचित्र कथा प्रसंगों एवं भावों के अतिरिक्त सामाजिक जीवन की कुरीतियां भी चित्रित हुई हैं.’

गड़ी गले छतिया में…
आलेख में विरहणियों की व्यथा की बेहतरीन प्रस्तुति है. उसमें वर्णित है कि कोई नायिका खेत में बैगन तोड़ने जाती है और उसकी छाती में कांटा गड़ जाता है-
बैगन तोड़े गेलौं ओहो बैगन बरिया
गड़ी गेल छतिया में कांटा हो रामा
इस गीत में कांटा गड़ जाने का तात्पर्य विरह-व्यथा की तीव्रता ही है. कोई किशोरी बधू देखते-देखते युवा अवस्था में प्रवेश कर जाती है, किन्तु चैत के महीने में उसका प्रिय नहीं लौटता. यह उसे बड़ा कलेश देता है-
चइत मास जोवना फुलायल हो रामा
कि सईयां नहीं आयल

पिया न भेजे पतिया


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प्रेमीजनों के लिए उपद्रवी चैत के मादक महीने में प्रियतम नहीं आये तो बाद में आना किस काम का?
चैत बीती जयतई हो रामा
तब पिया की करै अयतई

कम से कम प्रिय की पाती भी आ जाये तो थोड़ा चैन मिले-
आयल चइत उतपतिया हो रामा
पिया न भेजे पतिया
विरहणी अपने प्रियतम को संदेश भेजती है-चैत मास में वन में टेसू फूल गये हैं. भौरें उसका रस ले रहे हैं. तुम मुझे यह दुख क्यों दे रहे हो. तुम्हारी प्रतीक्षा करते-करते वियोगजनित दुख से रोते हुए मैंने अपनी आंखें गंवा दी है.

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