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झारखंड : बदल न दे सियासत का रंग हाशिये का गुस्सा!

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महेश कुमार सिन्हा
25 अप्रैल 2024

Ranchi : चतरा से आवाज उठी है. कितनी दूर तक जायेगी नहीं मालूम. असर दिखने-दिखाने से पहले अपनों के ही कोसने-समझाने पर गुम हो जाये, तो वह चौंकने-चौंकाने‌ वाली बात नहीं होगी. पर, जिस मुद्दे को लेकर आवाज उठायी गयी है वह अनसुलझा रहा तो समुदाय विशेष में सुलग रहा असंतोष कभी न कभी झारखंड (Jharkhand) की सियासत का रंग अवश्य बदल दे सकता है‌. क्या होगा, क्या नहीं यह भविष्य की बात है. फिलहाल आवाज उठाने वालों ने खुले तौर पर कह दिया है कि चतरा (Chatra) में महागठबंधन का उम्मीदवार मुस्लिम समाज का नहीं हुआ तो वे चुनाव का बहिष्कार कर देंगे. मतलब मतदान नहीं करेंगे.

प्रत्याशी बदलने की मांग
हो सकता है यह भावनात्मक उफान मतदान (Voting) की तारीख करीब आते-आते लुप्त हो जाये. मुट्ठियां लहराने वाले लोग उसी उम्मीदवार (Candidate) के पक्ष में मतदान भी कर दें जिसका विरोध कर रहे हैं. पर, उनके इस तर्क में दम है कि चतरा में मुस्लिम मतों की संख्या अधिक‌‌ रहने के आधार पर अवसर इसी समुदाय को मिलना चाहिये. महागठबंधन में इस बार चतरा की सीट कांग्रेस (Congress) के कोटे में है. उम्मीदवारी के एन त्रिपाठी (K N Tripathi) को मिली है, जो इस समुदाय के एक तबके को‌ स्वीकार्य नहीं हैं. यह तबका प्रत्याशी बदलने की मांग‌ कर रहा है. उसकी भावना का कद्र‌ शायद ही हो पायेगा.

गजब की एकजुटता दिखी
ऐसी ही कुछ आवाज गोड्डा (Godda) संसदीय क्षेत्र में उठी थी. कांग्रेस के दो बडे़ दावेदारों – प्रदीप यादव (Pradip Yadav) और फुरकान अंसारी (Furkan Ansari) को दरकिनार कर उम्मीदवारी महागामा की विधायक दीपिका सिंह पांडेय (Dipika Singh Pandey) को दे दी गयी थी. भारी विरोध हुआ. विधायक प्रदीप यादव ने पिछड़ों की हकमारी का सवाल उठाया तो फुरकान अंसारी और उनके मंत्री पुत्र इरफान अंसारी (Irfan Ansari) ने मुसलमानों की उपेक्षा का मुद्दा गरम कर दिया. गोड्डा की राजनीति (Politics) में फुरकान अंसारी और प्रदीप यादव के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है, आगे भी रहेगा. परन्तु, दीपिका सिंह पांडेय की उम्मीदवारी के खिलाफ दोनों में गजब की एकजुटता कायम हो गयी. यह देख राजनीति तो चकित रह ही गयी, कांग्रेस नेतृत्व भी दबाव में आ गया.

छीन ली गयी उम्मीदवारी
दीपिका सिंह पांडेय की उम्मीदवारी छीन कर प्रदीप यादव को दे दी गयी. फुरकान अंसारी और इरफान अंसारी के हाथ में शून्य ही रहा. दीपिका सिंह पांडेय की जगह दूसरे किसी की भी उम्मीदवारी स्वीकार कर लेने की शर्त की वजह से दोनों अब मुंह नहीं खोल पा रहे हैं. जो हो, इरफान अंसारी ने महागठबंधन में मुसलमानों की उपेक्षा के मामले को तार्किक ढंग से उठाया था. ध्रुवीकरण रोकने के नाम पर हक से वंचित कर दिये जाने पर गहरी आपत्ति जतायी थी. झारखंड (Jharkhand) में 14 संसदीय क्षेत्र हैं. मुसलमानों की अनुमानित आबादी तकरीबन 18 प्रतिशत है. आमतौर पर इस समुदाय को एनडीए (NDA) से अपेक्षा नहीं रहती है. एनडीए भी इसका ख्याल नहीं रखता है. इसे दुख इस बात का है कि महागठबंधन ने भी हाशिये पर डाल दिया है. 2019 की तरह इस बार भी मुस्लिम समाज से कोई उम्मीदवार नहीं बनाया है.


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ध्रुवीकरण रोकने के लिए
इरफान अंसारी को ज्यादा गुस्सा इस बात पर हुआ कि दो-‌तीन‌ प्रतिशत आबादी वाले को दो‌-तीन उम्मीदवारी दे दी गयी हैं, तो 18 प्रतिशत को शून्य में समेट दिया गया है. हालांकि, संसदीय चुनावों में पहले भी इस समुदाय को महत्व नहीं मिलता था. यह इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि 2004 के बाद झारखंड से मुस्लिम समाज का कोई सांसद निर्वाचित नहीं हुआ है‌. 2004 में गोड्डा (Godda) से फुरकान अंसारी विजयी हुए थे. 2009 और 2014 में भी कांग्रेस ने ‌उन्हें अवसर उपलब्ध कराया था. दोनों बार हार का मुंह देखना पड़ गया. 2019 में ध्रुवीकरण रोकने के लिए‌ उन्हें हाशिये पर डाल प्रदीप यादव को महागठबंधन का उम्मीदवार बना दिया गया. प्रदीप यादव उस वक्त झाविमो में थे. आमने- सामने के मुकाबले में ‘धर्मनिरपेक्ष’ प्रदीप यादव भाजपा‌ प्रत्याशी निशिकांत दूबे (Nishikant Dubey) से 01 लाख 84 हजार 227 मतों के भारी अंतर से मात खा गये.

आखिर, कब तक….
इस बार भी सीधा मुकाबला  है. ध्रुवीकरण न होने देने के लिए फुरकान अंसारी को फुर्सत में रखने का निर्णय सही साबित होता है या नहीं, देखना दिलचस्प होगा. गोड्डा संसदीय क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी लगभग 21 प्रतिशत है. अन्य सामान्य सीटों में कोडरमा (Kodarma) में 20.04 गिरिडीह में 17, धनबाद में 16, रांची में 15 और चतरा में 13 प्रतिशत मुस्लिम हैं. इन क्षेत्रों के बुद्धिजीवी मुसलमानों को यह सवाल कचोट रहा है कि धर्मनिरपेक्ष मतों का बिखराव रोकने के नाम पर आखिर कब तक इस समुदाय को हक से वंचित रख दरी बिछाने की भूमिका निभाने को बाध्य किया जाता रहेगा?

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