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उनकी मुट्ठी में… बांका का परिणाम!

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राजीव पांडेय
24 अप्रैल 2024

Banka : यादव और मुस्लिम बहुल‌ बांका संसदीय क्षेत्र में क्षत्रिय मतों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, पर‌ परिणाम के रुख़ को मोड़ने की हैसियत‌ अवश्य रखत़ी है. इसके मद्देनजर क्षत्रिय समाज के उम्मीदवार मैदान में उतरते रहे हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि 2008 के परिसीमन के बाद के भौगोलिक स्वरूप बाले बांका संसदीय क्षेत्र में इस बार क्षत्रिय समाज का उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं है. परिसीमन के बाद तीन चुनाव (Election) और एक उपचुनाव हुए. सभी में क्षत्रिय समाज की मजबूत मौजूदगी थी. 2009 में दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और 2010 के उपचुनाव में उनकी पत्नी पुतुल कुमारी (Putul Kumari) की जीत भी हुई. उपचुनाव दिग्विजय सिंह के असामयिक निधन के कारण हुआ था. पुतुल कुमारी 2014 में भाजपा और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरीं, दोनों ही बार मात खा गयीं.

पिछड़ गये गिरधारी तब
पुतुल कुमारी इस बार भी भाजपा (BJP) की उम्मीदवारी चाहती थीं. पर, उनकी चाहत गठबंधन की विवशता की भेंट चढ़ गयी. परिणामस्वरूप वह चुनाव से अलग हैं, शरीर से ही नहीं मन से भी. इसे इस रूप में सहजता से समझा जा सकता है. मतदान 26 अप्रैल 2024 को होना है. कारण जो हो बांका संसदीय क्षेत्र में उनकी कहीं कोई सक्रियता नहीं दिख रही है. पता नहीं भाजपा से जुड़ी हैं भी या नहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की चुनावी सभा से भी उन्होंने दूरी बनाये रखी. उनके समर्थकों में क्या संदेश गया होगा, आसानी से समझा जा सकता है. सामान्य समझ है कि एनडीए (NDA) प्रत्याशी गिरधारी यादव (Girdhari Yadav) पिछड़‌ गये, तो उसका एक बड़ा कारण इसे भी माना‌ जा सकता है. वैसे, पुतुल कुमारी के समर्थक चमड़ी झुलसा देने वाली कड़ी धूप में भी एनडीए की जीत के लिए पसीना बहाते नजर आ रहे हैं. मतदान के दिन क्या होता है, सब कुछ उस पर निर्भर करेगा.

मोदी की भी गारंटी नहीं
करीब-करीब ऐसी ही तटस्थता‌ जदयू (JDU) के विधायक मनोज यादव (Manoj Yadav) ने बना रखी है. कहते हैं कि उम्मीदवारी की दावेदारी उनकी भी थी. बहरहाल, जदयू उम्मीदवार गिरधारी यादव के लिए परेशानी की सबसे बड़ी बात‌ यह है कि सत्ता विरोधी रुझान से वह पार नहीं पा रहे हैं. पार पाने का सार्थक प्रयास भी करते नहीं दिख रहे हैं. पूर्व मंत्री रामनारायण मंडल हों या फिर विधायक निक्की हेम्ब्रम, भाजपा‌ के तमाम नेताओं-कार्यकर्ताओं का साथ उन्हें मिल रहा है. पर, एनडीए (NDA) समर्थकों के एक बड़े तबके में उदासीनता भी जगह बनाये हुए है.‌‌ विश्लेषकों की समझ है कि यह उदासीनता मतदान के दिन तक बनी रह गयी तो परिणाम को मोदी (Modi) की गारंटी भी नहीं बदल पायेगी. कहने का तात्पर्य यह कि चुनाव अभियान के आखिरी दौर में गिरधारी यादव अपनी अकड़ को ताक पर रख उदासीन एनडीए समर्थकों को उत्साहित नहीं कर पाये, मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए प्रेरित नहीं कर‌ पाये, तो फिर क्या होगा यह बताने की शायद जरूरत नहीं.


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नहीं पड़ेगा असर तटस्थता का
सरसरी तौर पर देखें, तो एनडीए समर्थकों की उदासीनता का लाभ महागठबंधन के राजद (RJD) उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव (Jaiprakash Narayan Yadav) को मिलता नजर आयेगा. पर, मुकम्मल रूप में वैसा है नहीं. राजद में भी कई अवरोध हैं. बांका के ढाका मोड़ निवासी गोड्डा के पूर्व विधायक संजय यादव (Sanjay Yadav) भी राजद की उम्मीदवारी के प्रबल दावेदार थे. ऐसी चर्चा है कि मायूसी मिलने के बाद वह तटस्थ हो गये हैं. लोगों को क्षेत्र में उनकी कोई चुनावी सक्रियता नहीं दिख रही है. जदयू के विधायक मनोज यादव उनके भाई हैं. दोनों भाइयों की तटस्थता का चुनाव पर कोई असर पड़ेगा, इसकी संभावना नहीं के बराबर है.

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