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किशनगंज : कट गयी फिर डोर‌?

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अशोक कुमार
26 अप्रैल 2024

Kishanganj : किशनगंज में कांग्रेस उम्मीदवार डा. जावेद आजाद (Dr. Javed Azad) की दोबारा जीत होती है या नहीं, अवाम को इसमें ज्यादा रुचि नहीं है. लोग जिज्ञासु इस बात को लेकर हैं कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Ovaisi) की पार्टी एमआईएम का क्या होगा? मंशा फलीभूत होगी या फिर निराशा के समंदर में ही डुबकी लगानी पड़ जायेगी? इन सवालों का सीधा जवाब तो नहीं दिया जा सकता, पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि शुक्रवार (Friday) को मतदान में एमआईएम की मुस्कान खिलने जैसी कोई तस्वीर उभरती नहीं दिखी. असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार अख्तरूल ईमान‌ (Akhtarul Iman) को मतदाताओं का उतना बड़ा समर्थन मिलता नजर नहीं आया जितना 2019 में मिला था.

गजब की दीवानगी थी तब
असदुद्दीन ओवैसी के प्रति तब मुसलमानों के एक बड़े तबके में गजब की दीवानगी थी. उसी उन्माद में अख्तरूल ईमान को 02 लाख 95 हजार 029 मत मिल गये थे‌. हालांकि, इसके बाद भी मुख्य मुकाबले में वह नहीं आ पाये थे. 37 हजार 522 मतों के अंतर से तीसरे स्थान पर अटक गये थे. उस दीवानगी का दायरा इस बार सिमटा-सिमटा सा दिखा‌. इससे एमआईएम को मतों की अनुमानित प्राप्ति का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है. वैसे, मतदाताओं के मिज़ाज और मतदान के रूख से संकेत यही मिला कि अख्तरूल ईमान 2019 की मत संख्या के आसपास भी पहुंच जायें, तो वह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी.

सब हवा हो गये
चुनाव से पहले कांग्रेस उम्मीदवार डा. जावेद आजाद के खिलाफ तमाम तरह की शिकवा-शिकायतें थीं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की किशनगंज यात्रा के दौरान भी यह मुद्दा उठा था. विरोध में हवा-सी चल रही थी. पर, मतदान केंद्रों पर वैसी कोई प्रतिकूलता नजर नहीं आयी. ऐसा माना जा रहा है कि अमित शाह (Amit Shah) द्वारा कटिहार (Katihar) की चुनावी सभा में दिये गये बंगलादेशी घुसपैठ से संबंधित बयान ने कांग्रेस की पतली हालत को सुधार दिया. मतदान केंद्रों पर इसकी स्पष्ट झलक दिखी. बड़ी बात यह कि इस मामले में एमआईएम का तिलिस्म टूटता नज़र आया. कुछ लोग इसे राहुल गांधी की ‘ भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का असर कह सकते हैं, पर हकीकत यह‌ नहीं है.


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नहीं मिली बड़ी चुनौती
स्थानीय परिस्थितियों ने मझधार में फंसे डा. जावेद आजाद का बेड़ा करीब-करीब पार लग़ा दिया. विश्लेषकों ने महसूस किया कि एमआईएम तो कांग्रेस (Congress) के समक्ष कोई बड़ी चुनौती पेश नहीं ही कर पाया, एनडीए (NDA) भी बिखरा-बिखरा दिखा. 2019 के जैसा दमखम नहीं दिखा पाया. एनडीए समर्थक मतदाताओं में बाजी पलट देने जैसे जोश और जज्बे का अभाव जदयू नेतृत्व को चिंता में डालने जैसा रहा. पूर्व विधायक मास्टर मोजाहिद आलम (Mojahid Alam) जदयू के उम्मीदवार हैं.

करना होगा इंतजार
चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि किशनगंज संसदीय क्षेत्र में सवा तीन लाख के आसपास एनडीए समर्थक मत हैं. उम्मीदवार कोई हो, आमतौर पर लगभग इतने मत मिलते ही हैं. 2019 में महमूद अशरफ (Mahmood Ashraf) जदयू के उम्मीदवार‌ थे. छवि विवादास्पद रहने के बाद भी 03 लाख 32 हजार 551 मत पा गये थे. एनडीए समर्थक मतदाताओं की मायूसी जदयू (JDU) को इस बार वहां तक शायद ही पहुंचने देगी. वैसे, मुख्य मुकाबला कांग्रेस और जदयू में ही परिलक्षित हुआ. एमआईएम मुख्य संघर्ष में आने के लिए संघर्ष करता रहा. बहरहाल, अंतिम बाजी किसके हाथ लगती है, यह जानने-समझने के लिए 04 जून 2024 तक तो इंतजार करना ही पड़ जायेगा.

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