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अनुकूल हो या प्रतिकूल … टगेंगे खूूंटी से टंगेंगे!

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विशेष प्रतिनिधि
10 मई 2024

Patna : भाजपा को ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ कहा जाता है तो उसकी खास वजह है. यह कि इस पार्टी में डिफरेंस यानी मतभेद है. यह हर जगह है. यह अलग बात है कि मतभेद रखने वाला कमजोर पड़ता है तो उसे खूंटी पर टांग दिया जाता है. ठीक उसी तरह जैसे पार्टी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lalkrishna Advani) तकरीबन एक दशक से खूंटी पर टंगे हुए हैं. उनकी लाचारगी को इस रूप में समझिये.‌ लालकृष्ण आडवाणी‌ राम मंदिर (Ram Mandir) आंदोलन के मुख्य सूत्रधार थे. उनके लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है. राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान में आने के बदले न आने का‌ आमंत्रण दे दिया गया था.

हो रही है तैयारी
खैर, यहां सवाल लालकृष्ण आडवाणी जैसे बड़़े नेताओं का नहीं, उन्हीं की तरह खूंटी में टंगने की प्रतीक्षा में जुड़े बिहार (Bihar) के नेताओं का है. रोचक बात यह है कि खूंटी में टांगने का उपाय उन नेताओं का किया जा रहा है, जो मजबूत दिखाई देते हैं. पार्टी‌ के अंदर चर्चा है कि सबसे पहले प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) को खूंटी में टांगने की तैयारी चल रही है. भाजपा के रणनीतिकारों को बड़ी उम्मीद थी, सम्राट चौधरी स्वजातीय कुशवाहा समाज को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के ‘लव-कुश शामियाने’ से उठा ‘भगवा शामियाने’ में ले आयेंगे. इसी उत्कंठा में उपमुख्यमंत्री का पद दे उनका बल दूना कर दिया गया. परन्तु, संसदीय चुनाव के दो चरणों में दिखे कुशवाहा मतों के रूख ने उनके खूंटी में टंगने की आशंका को विस्तार दे दिया है.

राजद की ओर मुड़ गये
विश्लेषकों‌ का मानना है कि और कुछ हो या नहीं, प्रदेश अध्यक्ष के पद से रूखसती तो तय है ही. चुनाव में हुआ यह कि ‘लव-कुश शामियाने’ से कुशवाहा समाज के मत उठ तो गये, पर भाजपा (BJP) की ओर मुखातिब न हो राजद की ओर मुड़ गये. उधर, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Ray) मध्य प्रदेश में बिरादरी के विधायक को मुख्यमंत्री का पद मिलने से खासे उत्साहित हो गये. उनके खेमे को लगा कि बाजी पलटने का यही सही समय है. इसका लाभ उठाने के ख्याल से उन्होंने पूरे तामझाम से पटना में अत्यंत पिछड़ी जातियों का सम्मेलन आयोजित करा दिया.

भीड़ इतनी ही जुटी
इरादा संभवत: यह था कि भीड़ जुटाकर केंद्रीय नेतृत्व को बता देंगे कि देखो, जिस अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए आप बेचैन हो, वह हमारी मुट्ठी में है. लेकिन, सम्मेलन में इतनी कम भीड़ जुटी कि नित्यानंद राय गश खाकर गिरते-गिरते बचे. सूत्रों के मुताबिक भाजपा नेतृत्च को रिपोर्ट गयी कि जितने लोग सम्मेलन के हाल में बैठे थे, उससे अधिक लोग मंच पर बैठे हुए थे. सबूत के तौर पर सम्मेलन का वीडियो भेज दिया गया. इससे नाराज नित्यानंद राय के खेमे ने कथित रूप से प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी.


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दुश्मन का दुश्मन दोस्त
केंद्रीय नेतृत्व को बताया गया कि प्रदेश अध्यक्ष खानदानी तौर पर यादव विरोधी हैं. उस समय भी यादव उम्मीदवार को वोट नहीं देते थे, जब उनका परिवार लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की पार्टी में था. पार्टी नेतृत्व को बताया यह भी गया कि प्रदेश अध्यक्ष की बोली-वाणी से भी भाजपा समर्थक पढ़ा-लिखा तबका नाराज रहता है. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. इस मान्य और स्थापित सिद्धांत के आधार पर इस मुहिम को विजय कुमार सिन्हा का भी अंदरूनी समर्थन मिल गया. विजय कुमार सिन्हा को याद दिलाया गया कि किस तरह मंत्री रहने के समय प्रदेश अध्यक्ष ने भरी सभा में उनका अपमान किया था.

दिख रहा असर
चुनाव के पहले की इन बातों को न नित्यानंद राय सच मानेंगे और न सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) व विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha). तीनो के तीनो इसे बकवास कहेंगे. क्या कहते हैं क्या नहीं, यह अलग विषय है. संसदीय चुनाव में उस मुहिम का भाजपा की संभावनाओं पर‌ गहरा असर पड़ता दिख रहा है. यह भी स्थापित हो रहा है कि स्वजातीय समाज पर भी इन तीनों नेताओं की पकड़ नहीं है. ऐसे में चुनाव के परिणाम अनुकूल हों या‌ प्रतिकूल, इनका खूंटी में टंगना‌ करीब-करीब तय‌ है.भाजपा के लोगों को प्रतीक्षा इस बात की है कि चुनाव परिणाम आने के बाद खूंटी पर पहले कौन टंगता है!

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